रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ क्यों आते हैं मानौरा, 200 साल से चलती आ रही है यह परंपरा, जानिए पूरी सच्ची बात
उड़ीसा राज्य का जगन्नाथपुरी चार धामों में से एक है। यहां आषाढ़ सुदी दूज को रथ यात्रा निकालने की पुरानी परंपरा है। इस रथ यात्रा में भगवान जगदीश, बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन मिलते हैं।
मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के मानौरा गांव का संबंध जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में से है। जिस समय जगन्नाथ का रथ यात्रा रुक जाती है, तो विदिशा के मानौरा में उत्सव शुरू हो जाती है।
विदिशा के मानौरा में यह पुरानी परंपरा 200 सालों से चली आ रही है। यहां पर भगवान जगदीश स्वामी का प्राचीन मंदिर है, जिसमें जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं।
मानौरा मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रामनाथ सिंह भगवान के यहां आने के पीछे की कहानी बताते हैं। वे बताते हैं कि यह मंदिर भगवान के भक्त और मानौरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का चिन्ह है।
दंपती भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चले जाते थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन ये दंपती हार नहीं माने ।
अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने के लिए हर वर्ष भगवान आषाढ़ी दूज को रथ यात्रा के दिन मानौरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी भगवती दास बताते हैं कि रथयात्रा की पूर्व संध्या को आरती और भोग लगाने के बाद जब शाम को भगवान को शयन कराते हैं तो उनके पट पूरी तरह से बंद किए जाते हैं,
लेकिन सुबह अपने आप थोड़ा-सा पट खुला हुआ मिलता है। जब रथ पर भगवान को बिठाया जाता है तो अपने आप उसमें कंपन होता है अथवा वह खुद ही लुढ़कने लगता है।
यही प्रतीक है कि भगवान मानौरा आगए वहाँ के मुख्य पुजारी के मुताबिक उड़ीसा की पुरी मेंभी पंडा रथयात्रा के दौरान जब वहां भगवान का रथ ठिठककर रुकता हैतो घोषणा करते हैंकि भगवान मानौरा पधार गएहैं।