नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी पर कई एक्सपेरिमेंट अभी तक हुए हैं, पार्टी की तरफ से लिए गए फैसलों ने कई बार चौंकाया है.
आदिवासी समाज हमेशा से ही आम जिंदगी से कहीं दूर रहा है. बहुत कम ऐसा हुआ है कि इस आदिवासी समाज को बराबरी का दर्जा मिला हो. हालांकि अब हालात बदल रहे हैं और यह समाज भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है.
भारत की जनसंख्या का 8.6 फीसदी यानी लगभग 11 करोड़ की जनसंख्या आदिवासियों की है. देश की जनसंख्या के हिसाब से ये एक बड़ा हिस्सा है जिसे नजरंदाज किया जाता रहा है.
भारत में अनसूचित आदिवासी समूहों की संख्या 700 से अधिक है. साल 1951 के बाद से आदिवासियों को हिंदू आबादी के तौर पर पहचान मिली है उससे पहले इन्हें अन्य धर्म में गिना जाता था.
भारत सरकार ने इन्हें अनसूचित जनजातियों के रूप में मान्यता दी है. आदिवासियों की देश में सबसे ज्यादा आबादी मध्य प्रदेश में रहती है. इसके बाद ओडिशा और झारखंड का नंबर आता है.
आदिवासियों के हाशिए पर रहने का एक कारण उनकी शिक्षा से भी जुड़ा है. आपके सामने इस समाज में शिक्षा को लेकर कुछ आंकड़े रखेंगे जिससे पता चलेगा कि ये वर्ग हाशिए पर क्यों है?