मतदान कितने प्रकार के होते हैं? ( Voting kitane Types hai ) मतदान कितने प्रकार का होता हैं? भारत में चुनाव कितने प्रकार के होते हैं चुनाव कितने प्रकार के होते हैं वर्णन करें निर्वाचन व्यवस्था से क्या अभिप्राय है खुला मतदान क्या होता है मतदाता किसे कहते हैं मतदान क्यों जरूरी है मतदान प्रक्रिया को समझाइए प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली क्या है.
मतदान कितने प्रकार के होते हैं? ( Voting kitane Types hai )
मतदान हमारा लोकतंत्र का सबसे बड़ा अधिकार और हथियार है। लोग मतदान को 62 साल से इस लोकतंत्र के हथियार के रूप में प्रयोग करते आ रहे हैं, लेकिन इस हथियार की ताकत के बारे में कुछ ही मतदाता पहचान पाए हैं।
शायद यही वजह है कि विधानसभाओं से लेकर लोकसभा तक की सत्ता तक सुशासन दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। आप तो सोच रहे होंगे कि मैं तो वोट देता हूं, तो यह पोस्ट क्यों पढ़ू ।
तो आप रुकिये यह पोस्ट उन लोगों के भी लिए है, जो वोट डालते हैं और उन लोगों के लिए भी जो वोट कभी नहीं डालते। यहां पर हम बतायेंगे कि आखिर आपका वोट गलत लोगों को सत्ता तक कैसे पहुंचा देता है, उनके बारे में आप सबों को बताने वाले है।
हमारे देश में अधिकांश लोग ऐसे भी हैं जो केवल मतदान देने भर जाते हैं। उन्हें बस वोट डालने से अपना मतलब होता है, किसे वोट डालना है, क्यों वोट डालना है, यह वो कभी नहीं सोचते है।
यह इसलिए होता है क्योंकि उन्हें सिर्फ इतना मालूम है कि मतदान करना जरूरी है, लेकिन उन्हें ये पता नहीं कि इस अधिकार का प्रयोग कैसे करें। इस आधार पर देखा जाए तो कुल छह प्रकार के मतदाता होते हैं।
वोटर नंबर-1, जो सोचते हैं कि वोट बेकार नहीं हो
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता है , चुनाव की चुनावी हवा तेज होने लगती है, जो प्रत्याशियों/ उम्मीदवारों को जिताने में खास योगदान निभाते है। उस समय चारों तरफ एक ही दल की हवा होती है। ऐसे में एक अलग प्रकार के मतदाता वे भी होते हैं , जो सोचते हैं, कि मेरा वोट कभी बेकार नहीं जाना चाहिये।
वह उसी को वोट देते हैं, जिस उम्मीदवार की हवा माहौल उस क्षेत्र में होती है। इस प्रकार के मतदाओं के अंदर एक मानसिकता हमेशा यह रहती है कि अगर हमने अन्य पार्टी को वोट दे दिया तो मेरा वोट बेकार हो जायेगा। या कहे की वे सही गलत देखे बिना ही वोट करते है. ऐसे में चाहे प्रत्याशी जितना ही निकम्मा क्यों न हो उनको भी वोट कर देते हैं।
वोटर नंबर- 2, क्षेत्र को देख कर वोट देते हैं
सभी मतदाता अपने क्षेत्र की पार्टी को देखकर और सोच समझ कर ही वोट देते हैं, उनका ध्यान हमेशा राज्य के सुशासन यानि अच्छा शाषण की तरफ नहीं जाता है। बल्कि वे अपने क्षेत्र की प्रत्याशी को जीताने की सोच के साथ मतदान करते है। ये सभी लोग प्रत्याशी को जाने या नहीं जानें, या उनको पहचानते है या नहीं वे लोग सिर्फ अपने क्षेत्र को जानते हैं।
ये लोग उसी क्षेत्र के पार्टी के निशान पर बटन दबाने को आतुर होते है, और बटन दबा भी देते है ,जिसमें प्रत्याशी उनके इलाके या क्षेत्र का होता है। उन सभी का इससे मतलब नहीं है कि वहां का प्रत्शाशी ईमानदार है या कोई क्रिमिनल और या भ्रष्टाचारी या लालची। शायद ही उनकी समझ से लोकतंत्र की ताकत के बारे में जानकारी नहीं है।
वोटर नंबर- 3, जाति/धर्म को देखकर वोट देते हैं
ये सभी वे लोग होते हैं, जो अपनी जाति या धर्म के प्रत्याशी / उम्मीदवार के नाम पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेते है, और और बटन भी दबा देते हैं।
प्रत्याशी यदि उराव है तो उराव को, कुर्मी है तो कुर्मी को वोट देगा, यादव है तो यादव को, लोध हैं तो लोध को, और मुस्लिम है तो मुस्लिम को, सबसे खास बात यह है, कि सभी पार्टियां लोगों की इस नब्ज को अच्छी तरह पहचानते ही हैं, और जिस भी क्षेत्र में जिस जाति का बोलबाला होता है, वह प्रत्याशी भी उसी जाति का उतारते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने है – भाजपा की उमा भारती हैं, जिन्हें सोच समझ कर ही लोध के क्षेत्र से चुनावी मैदान पर उतारा गया था।
वोटर नंबर- 4, मीडिया की लहर में बहते हैं
चुनाव नजदीक देखकर मीडिया की आवाज और कलम दोनो काफी रफ्तार पकड़ लेती है। उस समय कुछ मीडिया संस्थान भी चुनावी रंग में रंगे नजर आते है। चुनाव के समय चुनावी हवा किसी भी पार्टी की ओर चल रही हो लेकिन उनकी हवां एकतरफा ही नजर आती है।
हमारे बहुत सारे वोटर अपनी चौतरफा सोच को ताक पर रख कर इन एकतरफा हवाओं के बहाव में बह जाते है। इन सभी की आखों पर मीडिया की पट्टी लग जाती है। इन सभी वोटरों की सोच प्रत्याशी, उम्मीदवारों के क्षेत्र और राज्य से दूर हो जाती है।
वोटर नंबर- 5, घर वालों के कहने पर देते हैं वोट
यह वो वोटर या मतदाता हैं, जिनसे अपने मां, बाप, दादा, दादी, चाचा, ताऊ, आदि जिस पार्टी को सपोर्ट करते है, उसी पार्टी को वोट देने को कहते हैं, वे सभी उसी पार्टी को वोट देते हैं, प्रत्याशी भले कोई भी हो, या पार्टी ने कभी भी कोई अच्छा काम किया हो या नहीं किया हो , वे लोग यह सब कुछ नहीं सोचते।
इस प्रकार के तमाम परिवार हमारे देश में हैं, जो पुश्तों से अभी तक भाजपा को वोट देते चले आ रहे हैं, या ऐसे परिवार हैं जिनके घर में ही दशकों से कांग्रेस का पंजा दिखाई देता है। इसी तरह के उदाहरण हैं- रायबरेली और अमेठी जैसे जगह पर , जहां कांग्रेस के अलावा किसी का सांसद अभी ता नहीं आया है।
दूसरी ओर वहीं गोरखपुर में भाजपा का गढ़ काफी समय पहले से रहा है। ऐसा नहीं है कि इन सभी पार्टियों ने इन शहरों का सर्वांगीण विकास किया है, फिर भी यहां सैंकड़ों परिवारों की सोच पार्टी से जुड़ चुका है।
वोटर नंबर – 6, जो सिर्फ विकास को देखते हैं
हमारे देश भारत में दुर्भाग्यवश इस प्रकार के वोटरों की संख्या देश में बहुत कम है। ये लोग वो मतदाता या वोटर हैं, जो बूथ पर मुहर लगाते वक्त या ईवीएम का बटन दबाते वक्त अपने मन में अपने शहर के विकास के बारे में सोचते हैं, ये लोग वो लोग हैं जो बूथ पर बटन दबाते वक्त सोचते हैं कि सड़कें बनी या नहीं है , महंगाई बढ़ी या घटी है , भ्रष्टाचार कितना हुआ है आदि।
बटन दबाते समय अगर उन्हें जरा भी लगता है कि “A ” पार्टी ने अच्छा काम किया है, तो वो “A ” पर ही बटन दबाएंगे, फिर चाहे वह मीडिया कुछ भी चिल्लाये, उनके मां-बाप कुछ भी कहें, या दोस्त यार कुछ भी बोलें, वो अपने मन की बात सुनते है ।
वोटर नंबर – 7, जो कभी वोट नहीं देते
इस श्रेणी के वोटर में हम उन लोगों को नहीं रख रहे हैं, जो अपने शहर से कही दूर रहते हैं और उन्हें भी नहीं शामिल कर रहे हैं, जो किसी कारणों से वोट नहीं दे पाते हैं। इस श्रेणी में वे सभी लोग आते हैं जो पूरी तरह स्वस्थ्य होने के बावजूद अपने घर से एक किलोमीटर के दायरे में स्थित मतदान केंद्र तक भी नहीं जाते है।
असल में वे लोग सिर्फ अपने साथ ही नहीं बल्कि अपने देश के साथ भी गद्दारी करते हैं। इस प्रकार के लोगों को अपने देश के मंत्रियों, अधिकारियों या देश की शासन व्यवस्था पर टिप्पणी करने का कोई हक़ और अधिकार नहीं है।
इस पोस्ट के माध्यम से मैं आप सबों को मतदान कितने प्रकार के होते हैं? इस बारे में समझाने की प्रयास किया है, आशा करता हूँ की आप सभी को समझ में आ गया होगा, यदि कोई पॉइंट मिस रह गया है तो हमें कमेंट करके जरूर बताये।