विनिर्माण उद्योग पाठ 6 भूगोल NCERT Solution For Class 10th Geography 23 महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर के सीरीज में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आप सभी विद्यार्थियों को विनिर्माण उद्योग पाठ 6 से जुड़ी सभी परीक्षा उपयोगी लघु उत्तरीय प्रश्नों का उत्तर पढ़ने के लिए मिलेगा, यदि आप एक बार अध्ययन कर लेते हैं, तो आने वाले परीक्षा में अच्छा नंबर लेन में काफी मदद मिलेगी |
विनिर्माण उद्योग पाठ 6 भूगोल NCERT Solution For Class 10th Geography
विनिर्माण उद्योग पाठ 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
विनिर्माण उद्योग पाठ 6 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
विनिर्माण उद्योग पाठ 6अति लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
1आधारभूत उद्योग क्या है। उदाहरण देकर बताएँ।
उत्तर-तैयार माल की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का विभाजन निम्नांकित वर्गों में कर सकते है-
(क) मूल उद्योग-वे महत्त्वपूर्ण उद्योग, जिन पर अन्य अनेक उद्योग आधारित होते हैं. मूल उद्योग या बुनियादी उद्योग कहलाते हैं। जैसे- लोहा और इस्पात उद्योग तथा भारी मशीन निर्माण उद्योग इसी वर्ग के उद्योग हैं।
(ख) उपभोक्ता उद्योग-वे उद्योग जो वस्तुओं का उत्पादन मुख्यतः लोगों के उपभोग के लिए करते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं। माडर्न बेकरी, दिल्ली दुग्ध योजना और फाउंटेन पेन उद्योग उपभोक्ता उद्योग के उदाहरण है।
2 उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
उत्तर-(क) उद्योगों ने चार प्रकार के प्रदूषण को जन्म दिया है-
(a) वायु प्रदूषण,
(b) जल प्रदूषण,
(c) भूमि प्रदूषण,
(d) ध्वनि प्रदूषण।
(ख) उद्योगों से निकलने वाला धुऔं वायु तथा जल दोनों को प्रदूषित करता है। वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से अवांछनीय गैसों की मात्रा बढ़ जाती है तथा वायु प्रदूषित हो जाती है।
(ग) वायु में धूल, धुआँ तथा धुध मिले रहते हैं। इससे वायुमंडल प्रभावित होता है।
(घ) उद्योगों से निकला कचरा विषाक्त होता है और भूमि तथा मिट्टी को प्रदूषित करता है।
(ङ) खराद तथा आरा मशीनों से आवाज तथा प्रदूषक दोनों भारी मात्रा में निकलते हैं। इससे पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।
(च) जिस समय पर्यावरण के विभिन्न तत्व प्रदूषित हो जाते हैं तो पूरा पर्यावरण क्षति हो जाता है।
3 उद्योगों का क्या महत्व है?
उत्तर-विनिर्माण उद्योग पाठ 6 क्लास १० नोट्स उद्योगों का महत्व-
(क) उद्योग किसी देश की अर्थ-व्यवस्था और लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
(ख) उद्योगों के द्वारा लोगों के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है और उद्योग लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
(ग) उद्योगों के द्वारा निर्मित वस्तुएँ देश-विदेश में बेचकर विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है, जिससे राष्ट्रीय धन में वृद्धि होती है।
4 उद्योगों के वर्गीकरण के विभिन्न आधार कौन-से हैं ?
अथवा. उद्योगों के वर्गीकरण के चार प्रमुख आधार कौन-से हैं ? प्रत्येक वर्गीकरण के आधार का उपयुक्त उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर-उद्योगों के वर्गीकरण के आधार-
(क) कच्चे माल के स्रोत के आधार पर– इस आधार पर उद्योगों को दो भागों में बाँटा गया है-
(i) कृषि आधारित उद्योग- सूती वस्त्र उद्योग, पटसन, ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र, रबर, चीनी, कागज, वनस्पति, तेल आदि।
(ii) खनिज आधारित उद्योग- लौह-इस्पात, सीमेंट, मशीन, पेट्रो-रसायन, इलेक्ट्रिक उद्योग आदि।
(ख) प्रमुख भूमिका के आधार पर-
(i) आधारभूत उद्योग- लौह-इस्पात, सीमेंट, भारी मशीन आदि।
(ii) उपभोक्ता उद्योग-चीनी, कागज, पंखा, सिलाई मशीन आदि।
(ग) पूँजी निवेश के आधार पर-
(i) लघु उद्योग- पेन, बिस्कुट, कॉपी आदि।
(ii) वृहत् उद्योग-लौह-इस्पात उद्योग आदि।
(घ) स्वामित्व के आधार पर-
(i) सार्वजनिक क्षेत्र-सेल, एच० ई० सी०।
(ii) निजी क्षेत्र- रिलायंस, टाटा।
(iii) संयुक्त उद्योग।
(iv) सहकारी उद्योग।
पाठ 6 – विनिर्माण उद्योग भूगोल के नोट्स| Class 10th
5 स्वामित्व के आधार पर उद्योगों के वर्गीकरण की व्याख्या करें।
उतर-स्वामिच के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण-
(क) सार्वजनिक क्षेत्र में लगे सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग जैसे- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल लिमिटेड (BHEL) तथा स्टील अयोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) आदि।
(ख) निजी क्षेत्र के उद्योग जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है। टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि।
(ग) संयुक्त उद्योग- वैसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास में चलाए जाते हैं। जैसे- ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)|
(घ) सहकारी उद्योग-जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है। संसाधनों का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी अनुपातिक होता है। जैसे- महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल पर आधारित उद्योग।
6 स्पष्ट करें कि कृषि और उद्योग किस प्रकार साथ-साथ बढ़ रहे हैं।
अथवा. कृषि और उद्योग एक दूसरे के पूरक हैं, कैसे ?
अथवा, कृषि और उद्योग का विकास एक-दूसरे से किस प्रकार संबंधित हैं ?
उत्तर-निम्नांकित उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे के सहचर हैं-
(क) कृषि द्वारा विभिन्न कृषि-आधारित उद्योगों, जैसे- वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, रबड़ उद्योग आदि को कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है।
(ख) उद्योग द्वारा कृषि को विभिन्न सहायक चीजें, जैसे- मशीनें, कृषि, औजार, उर्वरक, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराई जाती हैं। इनसे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(ग) उद्योग विभिन्न कृषि उपकरणों, जैसे- ट्रैक्टर हार्वेस्टर, बैशर आदि द्वारा कृषि के आधुनिकीकरण में सहायता करता है। इन उपकरणों की सहायता से कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य संपन्न किया जा सकता है।
(घ) उद्योगों द्वारा कृषि से प्राप्त कच्चे मालों को विभिन्न उच्च कीमतों वाली तैयार वस्तुओं में बदला जाता है। उदाहरण के लिए, गन्ने से चीनी, कपास से वस्त्र आदि का निर्माण। इससे देश में समृद्धि आती है।
7 भारत में कृषि पर आधारित उद्योग कौन-से हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था में उनका क्या महत्व है?
उत्तर-जो उद्योग कृषि पर आधारित होते हैं उनको कृषि-आधारित उद्योग कहते हैं। इन कृषि पर आधारित उद्योगों का भारत की अर्थव्यवस्था में अपना विशेष महत्व निम्नांकित हैं-
(क) वे दैनिक जीवन में काम आने वाली अनेक वस्तुओं का निर्माण करते हैं और लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
(ख) कृषि प्रधान देश के लिए कृषि पर आधारित उद्योगों का अपना विशेष महत्व है। कच्चा माल हमारे देश में ही प्रयोग हो जाता है और तैयार होने पर उसकी कीमत कई गुणा बढ़ जाती है। ऐसे में हमारी आय में कई गुणा बढ़ोत्तरी हो जाती है।
8 रसायन उद्योग का क्या अर्थ है ? रसायन उद्योग का महत्व बताएँ।
उत्तर- रसायन उद्योग का अर्थ- वह उद्योग जो भारी रसायनों से अनेक उत्पाद जैसे औषधियाँ, रंगाई का सामान, कीटनाशक दवाएँ, प्लास्टिक, पेंट आदि बनाता है उसे रसायन उद्योग कहते हैं।
रसायन उद्योग का महत्व-भारत में अनेक रासायनिक पदार्थों का उत्पादन किया जाता है जैसे दवाइयाँ, कीटनाशक दवाइयाँ, रंगने के मसाले, रंग, प्लास्टिक आदि। कीटनाशक दवाइयों का कृषि के क्षेत्र में अपना विशेष महत्व है।
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9 किन कारणों से भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हुए हैं ?
उत्तर-भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हो रहा है तथा फैल रहा है। यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वें स्थान पर है। इसमें लघु तथा बृहत् दोनों प्रकार इकाइयाँ सम्मिलित हैं। अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।
(क) अकार्बनिक रसायनों में सलफ्यूरिक अम्ल (उर्वरक, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद, रंग-रोगन, डाई आदि के निर्माण में प्रयुक्त) नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोडा ऐश, (काँच, साबुन, शोधक या अपमार्जक, कागज में प्रयुक्त होने वाले रसायन) तथा कास्टिक सोडा आदि शामिल हैं। इन उद्योगों का देश में विस्तृत फैलाव है।
(ख) कार्बनिक रसायनों में पेट्रोरसायन शामिल हैं जो कृत्रिम वस्त्र. कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाईयाँ, औषध रसायनों के बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। ये उद्योग तेल शोधन शालाओं या पेट्रोरसायन संयंत्रों के समीप स्थापित हैं।
10 उर्वरक उद्योग पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा. उर्वरक उद्योग का क्या महत्व है ? भारत के उर्वरक उद्योग के विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर-भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए एवं जनता का जीवन-स्तर ऊँचा करने के लिए उत्पादन में वृद्धि के लिए उर्वरकों की बहुत आवश्यकता है।
अब तक के उर्वरक के प्रमुख केन्द्र सिन्दरी, नांगल, नागपुर, दुर्गापुर, हल्दिया, कोच्चि चेन्नई, राउरकेला आदि स्थानों पर स्थित हैं। क्योंकि इनके समीप कच्चा माल जैसे कोयला, पेट्रोल, बिजली, प्राकृतिक गैस आदि आसानी से उपलब्ध हैं।
11 भारत में सीमेंट उद्योग के विकास और वितरण का विवरण दें।
उत्तर-निर्माण कार्यों जैसे- घर, कारखाने, पुल, सड़कें, हवाई अड्डा, बाँध तथा अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेंट आवश्यक है। इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे- चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम की आवश्यकता होती है। रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है।
इस उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में लगाई गई हैं क्योंकि यहाँ से इसे खाड़ी के देशों के बाजार की उपलब्धता है। पहला सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में लगाया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात् इस उद्योग का प्रसार हुआ।
सन् 1989 से मूल्य व वितरण में नियंत्रण समाप्ति तथा अन्य नीतिगत सुधारों से सीमेंट उद्योग ने क्षमता, प्रक्रिया व प्रौद्योगिकी व उत्पादन में अत्यधिक तरक्की की है। भारत में विविध प्रकार के सीमेंटों का उत्पादन किया जाता है।
गुणवत्ता में सुधार के कारण, भारत की बड़ी घरेलू माँग के अतिरिक्त, पूर्वी एशिया, मध्यपूर्व, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया के बाजारों में माँग बढ़ी है। यह उद्योग उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही रूपों में प्रगति पर है।
NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 6 – विनिर्माण उद्योग भूगोल
12 चीनी उद्योग पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-चीनी उद्योग की स्थापना भारत में सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश और बिहार में निजी क्षेत्र के अधीन हुई। इन दोनों प्रान्तों में गन्ना अधिक उत्पन्न होता है।
यहाँ बिजली काफी उपलब्ध हो जाती है। मजदूरी भी यहाँ सस्ती है। अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र और अन्य दक्षिणी राज्यों में चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति पैदा हो रही है। दक्षिणी भारत में पैदा होने वाले गन्ने में चीनी की मात्रा अधिक है।
चीनी उद्योग मौसमी उद्योग है। इसलिए इसकी ठीक व्यवस्था सहकारी समितियों द्वारा हो सकती है। दक्षिणी भारत, विशेषकर महाराष्ट्र में सहकारी समितियाँ काफी संगठित और सफल हैं।
13 चीनी उद्योग के उत्तर प्रदेश में विकसित होने के कोई चार कारण बताएँ।
उत्तर-उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग के विकास के कारण- भारत में उत्तर प्रदेश चीनी उद्योग में सबसे आगे है। भारत में तैयार होने वाली चीनी का लगभग आधा भाग अकेले उत्तर प्रदेश में तैयार होता है। इसके निम्नांकित मुख्य कारण हैं-
(क) उत्तर प्रदेश गन्ने का घर है। वहाँ की भूमि उपजाऊ है, धूप खूब पड़ती है और वार्षिक वर्षा भी 100 से०मी० से अधिक है। ये सभी चीजें गन्ने के उत्पादन में बहुत सहायक होती हैं।
(ख) चीनी उद्योग के लिए आवश्यक बिजली भी वहाँ काफी उपलब्ध हो जाती है।
(ग) मजदूरी भी वहाँ सस्ती है। कुछ अपने क्षेत्र के मजदूर और विशेषकर बिहार राज्य से मजदूर बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं।
(घ) उत्तर प्रदेश एवं बिहार की जनसंख्या भी काफी है इसलिए तैयार होने वाली बहुत-सी चीनी की खपत वहाँ हो जाती है।
14 भारत में चीनी उद्योग के दक्षिण की ओर स्थानांतरण की प्रवृति की कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर- काफी समय तक उत्तरी भारत ही चीनी उद्योग का केन्द्र बना रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश में भारत की चीनी की आधी मिलें विद्यमान हैं। परन्तु अब धीरे-धीरे दक्षिण भारत में चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति पैदा हो रही है। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं-
(क) प्रयोग से सिद्ध हुआ है कि दक्षिण भारत में पैदा होने वाले गन्ने में चीनी की मात्रा अधिक है।
(ख) अनेक प्रांतों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों ने अब गन्ने की उपज की ओर अधिक दिलचस्पी शुरू कर दी है l
(ग) चीनी निर्यात की वस्तु है। क्योंकि समुद्र तटीय सुविधाएँ दक्षिण में अधिक उपलब्ध हैं. उत्तर में नहीं, इसलिए दक्षिण में चीनी उद्योग के उन्नति करने के अधिक अवसर हैं।
15 भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं ?
उत्तर-भारत की अधिकांश जूट मिलों के पश्चिम बंगाल में स्थित होने के कारण-
(क) पश्चिम बंगाल में पटसन की खेती काफी होती है। इसलिए इन उद्योगों के लिए कच्चा माल मिल जाता है।
(ख) कोलकाता बहुत बड़ा महानगर है जिसके कारण पटसन से बनने वाली बोरी और वस्त्रों की खपत हो जाती है।
(ग) बंगाल में आबादी अधिक होने के कारण इन उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर मिल जाते हैं।
(घ) बंगाल में यातायात के साधनों का काफी विकास हो चुका है इसलिए यहाँ के उद्योगों तक कच्चा माल को लाने और जूट से बने सामान को बाहर भेजने में आसानी होती है।
विनिर्माण उद्योग Class 10th Geography Chapter 6
16 भारत में पटसन उद्योग के विकास और वितरण की चर्चा करें।
उत्तर-पटसन उद्योग-
भारत पटसन व पटसन निर्मित समान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा बड़ा निर्यातक भी है। भारत में लगभग 70 पटसन उद्योग हैं। इनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किमी० लंबी तथा 3 किमी० चौड़ी एक सैंकरी मेखला में स्थित है।
हुगली नदी तट पर इनके स्थित होने के निम्न कारण हैं-
पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता, सस्ता जल परिवहन, सड़क, रेल व जल परिवहन का जाल, कच्चे माल का मिलों तक ले जाने में सहायक होना, कच्चे पटसन को संसाधित करने में प्रचुर जल, पश्चिम बंगाल तथा समीपवर्ती राज्य उड़ीसा, बिहार व उत्तर प्रदेश से सस्ता श्रमिक उपलब्ध होना, कोलकाता का एक बड़े नगरीय केंद्र के रूप बैंकिंग, बीमा और जूट के सामान के निर्यात के लिए पत्तन की सुविधाएँ प्रदान करना आदि सम्मिलित हैं।
इस उद्योग की चुनौतियों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कृत्रिम वस्त्रों से और बांग्लादेश, ब्राजील, फिलीपीन्स, मिश्र तथा थाईलैंड जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा शामिल है।
यद्यपि पटसन पैकिंग की अनिवार्य प्रयोग की सरकारी नीति के कारण इसकी घरेलू माँग बढ़ी है तथापि माँग बढ़ाने हेतु उत्पाद में विविधता भी आवश्यक है।
सन् 2005 में राष्ट्रीय पटसन नीति अपनाई गई जिसका मुख्य उद्देश्य पटसन का उत्पादन बढ़ाना, गुणवत्ता में सुधार, पटसन उत्पादक किसानों को अच्छा मूल्य दिलाना तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाना था।
पटसन के प्रमुखं खरीददार-
अमेरिका, कनाडा, रूस, अरब देश, इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया हैं।
भूगोल-chapter-6.विनिर्माण उद्योग
17 भारत में सूती वस्त्र उद्योग मुंबई तथा अहमदाबाद में अधिक केंद्रित क्यों है ?
उत्तर– मुंबई और अहमदाबाद केंद्रों में सूतीवस्त्र उद्योग के विकास के निम्नांकित कारण हैं-
(क) कच्चे माल की प्राप्ति- महाराष्ट्र तथा गुजरात की काली मिट्टी में बड़ी मात्रा में कपास की खेती होती है। अतः सूती वस्त्र के लिए आसानी से कपास प्राप्त हो जाता है।
(ख) जलवायु- ये केंद्र समुद्र के निकट स्थित है जहाँ सम तथा आर्द्र जलवायु धागा कातने तथा चुनने के लिए उपयुक्त है।
(ग) बंदरगाह की सुविधा- उत्तम किस्म के कपास उद्योगों के लिए मशीन विदेशों से आयात करने तथा तैयार माल या सिले-सिलाये कपड़े सूती कपड़े के निर्यात की सुविधा मुंबई बंदरगाह से प्राप्त होता है।
(घ) यातायात एवं शक्ति के साधनों की सुविधा- ये दोनों केंद्र देश के अन्य भागों से रेल सड़क तथ वायुमार्ग द्वारा जुड़े हैं। यहाँ ताप विद्युत तथा जलविद्युत के विकास से शक्ति के साधन उपलब्ध हैं। अतः सूतीवस्त्र उद्योग का विकास अधिक हुआ है।
18 भारत की सूचना प्राद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की चर्चा करें।
उत्तर-इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलीफोन, सेल्यूलर टेलीकॉम, टेलीफोन एक्सचेंज, पेजर, रडार, कम्प्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक अन्य उपकरण तक बनाए जाते हैं। बंगलौर भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरी है।
इलेक्ट्रॉनिक सामान के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादन केन्द्र मुंबई. दिल्ली. हैदराबाद, पुणे, चेन्नई कोलकाता तथा लखनऊ हैं। इसके अतिरिक्त 18 सॉफ्टवेयर प्राद्योगिकी पार्क, जो सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा तथा उच्च आँकड़े संचार सुविधा प्रदान करते हैं। इस उद्योग का प्रमुख महत्त्व रोजगार उपलब्ध करवाना भी है।
31 मार्च 2005 तक, सूचना प्रौद्योगिक उद्योग में लगे व्यक्तियों की संख्या 10 लाख अधिक थी। अगले तीन से चार वर्षों में यह संख्या आठ गुणा होने की संभावना है। इसमें 30 प्रतिशत महिलाएँ हैं। यह उद्योग विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने का कारण हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास है।
विनिर्माण उद्योग पाठ 6 क्लास १० नोट्स
19 छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेन्द्रित हैं। कारण बताएँ।
उत्तर-छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेंद्रित हैं। इस प्रदेश में इस उद्योग के विकास के लिए अधिक अनुकूल सापेक्षिक परिस्थितियाँ हैं। इनमें
(क) लौह अयस्क की कम लागत,
(ख) उच्च कोटि के कच्चे माल की निकटता,
(ग) सस्ते श्रमिक और
(घ) स्थानीय बाजार में इनके माँग की विशाल संभाव्यता सम्मिलित है।
20 भारत संसार का एक महत्वपूर्ण लौह-इस्पात उत्पादक देश है तथापि इनके पूर्ण संभाव्य का विकास नहीं हो पाया है। कारण बताएँ।
उत्तर-भारत संसार का एक महत्त्वपूर्ण लौह-इस्यात उत्पादक देश है तथापि हम इनके पूर्ण संभाव्य का विकास नहीं कर पाए हैं।
इसके कारण हैं-
(क) उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता,
(ख) कम श्रमिक उत्पादकता,
(ग) उर्जा की अनियमित पूर्ति तथा
(घ) अविकसित अवसंरचना आदि।
21 हमारे देश में विद्युत चालित करघों तथा हथकरघों द्वारा निर्मित लूमेज की अपेक्षा कारखानों द्वारा निर्मित लूमेज को कम रखना क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-इसका कारण कुटीर उद्योग को बढ़ावा देकर अधिक से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना है। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि कारखानों में भारी मशीनों का प्रयोग होता है तथा श्रम की कम-से-कम आवश्यकता पड़ती है।
22 हमारे लिए अधिक मात्रा में धागे के निर्यात की अपेक्षा अपने बुनाई क्षेत्र को सुधारना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-(क) बुनाई के क्षेत्र में सुधार होने पर रोजगार की संभावनाएँ बढ़ सकती है।
(ख) बुनाई में सुधार होने पर बेहतर किस्म के सूती उत्पाद व कपड़े तैयार किए जा सकते हैं।
(ग) रेशे से धागा, धागे से कपड़ा और कपड़े से परिधान बनाने के प्रत्येक चरण पर मूल्य में वृद्धि होती है।
(घ) इससे अधिक विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है।
23 महात्मा गाँधी ने सूत कातने तथा खादी बुनने पर क्यों बल दिया?
उत्तर-(क) ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके।
(ख) राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने हेतु।
(ग) कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए।
(घ) विदेशी कपड़ों पर निर्भरता कम करने तथा विदेशी कपड़े का बहिष्कार करने के लिए।
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