पाठ 6 – विनिर्माण उद्योग भूगोल के नोट्स | Class 10th Geography

पाठ 6 – विनिर्माण उद्योग भूगोल के नोट्स | Class 10th Geography के इस अध्ययन में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, आज हम बात करने वाले हैं, इस पाठ से जुड़ी परीक्षा उपयोगी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के बारे में, जो कई बार परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं, उम्मीद है आप को पढ़ने के बाद परीक्षा की तैयारी करने में काफी मदद मिलेगी |

पाठ 6 – विनिर्माण उद्योग भूगोल के नोट्स | Class 10th Geography

विनिर्माण उद्योग पाठ 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
विनिर्माण उद्योग पाठ 6 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
विनिर्माण उद्योग पाठ 6अति लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर

1 समन्वित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है? इस उद्योग की क्या समस्याएँ हैं ? किन सुधारों के अंतर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है ?
उत्तर-समन्वित इस्पात उद्योग और मिनी इस्पात उद्योग में अन्तर-

(क) समन्वित इस्पात उद्योग आकार में मिनी इस्पात उद्योगों की तुलना में काफी बड़े होते हैं।
(ख) समन्चित इस्पात उद्योगों में इस्पात से सम्बन्धित सभी कार्य एक ही कम्पलैक्स में होते हैं। कच्चे माल से लेकर इस्पात बनाने, इसे ढालने तथा उसे आकार देने तक। जबकि मिनी इस्पात कारखानों में रही इस्पात व स्पंज आयरन का प्रयोग होता है जो इसे संकलित इस्पात उद्योगों से मिलता है।

(ग) जबकि समन्वित इस्पात कारखाने में सभी प्रकार का इस्पात तैयार होता है वहीं मिनी इस्पात कारखाने में केवल मृदु व मिश्रित इस्पात का निर्माण होता है।

इस्पात उद्योग की समस्याएँ-

(क) इसको चीन जैसे इस्पात निर्यातक देशों की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना पड़ता है।
(ख) इसे उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धि का भी सामना करना पड़ता है।
(ग) अविकसित अवसरगना भी इसके मार्ग में कई रुकावटे पैदा करती है।
(घ) कम अमिक उत्पादकता भी एक समस्या है।
(8) कर्जा की अनियमित आपूर्ति भी इसके लिए कठिनाई पैदा कर देती है।

निम्नांकित सुधारों ने इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया है-

(क) उदारीकरण ने इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन दिया है।
(ख) निजी क्षेत्र में अनेक उद्यमियों ने भी अपने प्रयलों से इस उद्योगों को काफी प्रोत्साहन दिया है।

(ग) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी इस उद्योग को पनपने में काफी सहायता मिली परन्तु विकास के साधनों को नियम करने और अनुसंधान से इस इस्पात उद्योग की प्रगति को और तेज किया जा सकता है।

2 उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें।
उत्तर-उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के विभिन्न उपाय-

(क) जल शक्ति का प्रयोग– हमें कोयले, लकड़ी या खनिज तेज से पैदा की गई बिजली जो हवा प्रदूषित करती है, के स्थान पर जल द्वारा पैदा की गई बिजली का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे में वातावरण में कम धुओं जाएगा जिससे वह काफी शुद्ध रहेगा।

(ख) तापीय बिजली पैदा करने में अच्छी प्रकार के कोयले का प्रयोग- बहुत से वैज्ञानिकों का ऐसा सुझाव है कि यदि कोयले से तापीय बिजली पैदा करनी हो तो उत्तम श्रेणी के कोयले का प्रयोग करना चाहिए जो कम धुओं छोड़े। ऐसे में वातावरण का प्रदूषण कम होगा।

(ग) कारखानों को नगरों से दूर ले जाना- ऐसे सभी फैक्ट्रियों को जो वातावरण में घुओं एवं जहरीली गैसें छोड़ते हैं उन्हें शहरों से दूर ले जाना चाहिए ताकि वे नगरों के वातावरण को और प्रदूषित न करे। इस दिशा में उच्चतम न्यायालय ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। जब दिल्ली सरकार को यह आदेश दिया कि वे प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को कार्पोरेशन की सीमाओं से बाहर ले जाए।

(घ) प्रदूषित जल को नदियों छोड़ने से पहले जल को उपचारित करना चाहिए- यदि फैक्ट्रियों के जल को नदियों में फेंकना ही हो तो उसे पहले उपचारित कर लिया जाए तो प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(ख) प्रदूषित जल की पुनः चक्रीय क्रिया- अच्छा हो यदि फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं इकट्ठा करके रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उसे साफ किया जाए और बार-बार प्रयोग में लाया जाए। ऐसे में नदियों और आसपास की भूमि का प्रदूषण काफी हद तक रुक जाएगा।

(च) कठोर नियमों के पास किए जाने की आवश्यकता- जो उद्योग उपर्युक्त उपचारों को न अपनाए उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है। उन्हें आसपास के वातावरण को खराब करने नहीं देना चाहिए और प्रदूषण फैलाने से रोकना चाहिए। उन पर भारी जुर्माने भी किए जाने चाहिए ताकि जन-साधारण के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो सके।

विनिर्माण उद्योग पाठ 6 भूगोल के Ncert Solution for Class 10th

3 भारतीय सूती वस्त्र उद्योग किन तीन समस्याओं का सामना कर रहा है ? इन समस्याओं के हल करने के लिए तीन उपाय बताएँ।
उत्तर-भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के सामने तीन समस्याएँ-

(क) पहली समस्या यह है कि इस उद्योग की तकनीक बहुत पुरानी और बेकार हो चुकी है।
(ख) सूती कपड़े की मिलें बहुत पुरानी हो चुकी हैं जिस कारण उनके बनाएँ रखने पर बहुत खर्च आता है। भवन और मशीनरी भी जीर्ण अवस्था में हैं जिनके कारण उत्पादन खर्च बहुत आ जाता है परिणामस्वरूप बेकारी और औद्योगिक जड़ता उत्पन्न हो जाती है।

(ग) हमारे देश में पैदा होने वाली कपास लम्बे रेशे वाली नहीं होती. इसलिए हमें लम्बे रेशे वाली कपास का विदेशों विशेषकर मिश्र से आयात करना पड़ता था।

समस्याओं को हल करने के उपाय-

(क) हमें पुरानी तकनीक में सुधार करके सूती वस्त्र बनाने की नवीनतम तकनीक को अपनाना चाहिए।

(ख) सूती कपड़े की मिलों एवं कारखानों में निपुणता और बचत लानी होगी ताकि फिजुल खर्च को रोका जा सके। यह इसलिए आवश्यक है कि हमें मिलें बन्द न करनी पड़े और कारीगरों की छटनी करने की नौबत न आए।

(ग) हमें अपने देश में ही लम्बे रेशे की कपास का उत्पादन करना चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा की बचत के साथ-साथ कपड़ा भी बढ़िया बनाया जा सके।

4 लोहा और इस्पात उद्योग केवल प्रायद्वीपीय भारत में ही क्यों स्थित हैं ?
उत्तर-प्रायद्वीपीय भारत प्राचीन कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है जो खनिज सम्पदा की दृष्टि से सम्पन्न है। इस क्षेत्र में भारत के छः प्रमुख लौह इस्पात केन्द्र स्थित हैं जो निम्नांकित हैं-
जमशेदपुर, बोकारो, कुल्टी, बर्नपुर, दुर्गापुर. राउरकेला, भिलाई ।

प्रायद्वीपीय भारत में लौह-इस्पात केन्द्र के स्थित होने के कारण निम्न हैं-

(क) कच्चे माल की उपलब्धता- लौह उद्योग का कच्चा माल भारी होता है तथा अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है इसलिए लौह उद्योग कच्चे माल के क्षेत्र के निकट ही स्थापित किये जाते है। प्रायद्वीपीय भारत लौह अयस्क मैंगनीज चूना पत्थर आदि खनिजों में बनी है।

(ख) जलापूर्ति –इस सद्योग में जल अधिक मात्रा में प्रयोग होता है जिसकी पूर्ति इस क्षेत्र में प्रवाहित दामोदर महानदी गोदावरी एवं इसकी सहायक नदियों के द्वारा होती है।

(ग) शक्ति के संसाधन- राजा के साधन के रूप में कोयला एवं जल विद्युत का अधिक उपयोग होता है जो इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

(घ) परिवहन एवं व्यापार- इस क्षेत्र में सड़क एवं रेल मार्ग का अवश विकास हुआ है. साथ ही समुदी पतन की भी सुविधा है जैसे- कोलकाता विशाखापत्तनम् चेनई एवं मुम्बई।

(ड) सस्ते अभिक-घनी जनसंख्या के कारण सस्ते दर पर श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं।
कर्नाटक के दो लौह और इस्पात संयंत्र के नाम भद्रावती और विजयनगर तथा पश्चिम बंगाल के दो लौह और इस्पात संयंत्र के नाम बर्नपुर और दुर्गापुर है। jac board