परिचय
- प्रस्तावना,
- वनों का प्रत्यक्ष योगदान,
- वनों का अप्रत्यक्ष योगदान,
- उपसंहार।
प्रस्तावना
वन संपदा का संरक्षण में वन मानव-जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं, किंतु सामान्य व्यक्ति इसके महत्व को नहीं समझ पा रहा है। जो व्यक्ति वनों में रहते हैं या जिनकी जीविका वनों पर आश्रित हैं वे तो वनों के महत्व को समझते हैं, लेकिन जो लोग वनों में नहीं रहे रहे हैं वे, तो इन्हें केवल प्राकृतिक शोभा का साधन मानते हैं, पर वनों का मनुष्यों के जीवन से गहरा संबंध है। किसी भी देश की समृद्धि में वन अति महत्वपूर्ण हैं।
वन संपदा का संरक्षण जरूरी क्यों है
वनों के विकास और विस्तार से ही धरती नष्ट होने से बचेगी । आर्थिक विकास देश की तरक्की के लिए वन जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं अधिक जरूरी है वन संपदा का संरक्षण विकासऔर उनका विस्तार करना । क्योकि जिस तरह से वनों का कटाई या विनाश हो रहा है, अगर ऐसी तरह से यदि लगातार होते रहे तो सच में पृथ्वी तबाह हो जायगी ,क्योंकि वन की कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड़ेगी और अनेक प्राकृतिक आपदाएं धरती पर आने लगेंगी , इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार एवं आम जनता को जरूर ध्यान देना चाहिए ।
वन संपदा का संरक्षण के फायदे
वन संपदा का संरक्षण के अनेकों फायदे फायदे है जो नीचे दिए गए है –
- इससे पर्यावरण संतुलन बना रहेगा
- प्रकृतिक आपदा में कमी आएगी
- वन्य प्राणियों को आश्रय मिलेगा
- मृदा अपरदन में कमी आएगी
- भूमिगत जलस्तर में वृद्धि होगी
- वनों से इमरती लकड़ी मिलेगी
- जड़ी बूटी की प्राप्ति होगी
- पशुओं के लिए चरागाह मिलेगा
- पशु अभरण्य का विकाश होगा
- मनोरंजन का साधन
- बाढ नियंत्रण में सहायता
वन संपदा का संरक्षण का प्रत्यक्ष योगदान –
मनोरंजन का साधन-
वन मानव को सैर-सपाटे के लिए रमणीक क्षेत्र प्रस्तुत करते हैं। वृक्षों के अभाव में पर्यावरण शुष्क हो जाता है और सौंदर्य नष्ट हो जाता है। वृक्ष स्वयं सौंदर्य की सृष्टि करते हैं। ग्रीष्मकाल में बहुत बड़ी संख्या में लोग पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा करके इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
प्रचुर फलों की प्राप्ति- वन प्रचुर मात्रा में फलों को प्रस्तुत करके मानव का पोषण करते हैं। अनेक ऋषि-मुनि और वनवासी वनों में रह कर कंद-मूल फलों पर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। जीवनोपयोगी जड़ी-बूटियों का भंडार-वन अनेक जीवनोपयोगी जड़ी-बूटियों का भडार है। वनों में ऐसी अनेक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, जिनसे अनेक असाध्य रोगों का निदान संभव हो सका है।
वन्य पशु-पक्षियों को संरक्षण- पशु-पक्षियों की सौंदर्य की दृष्टि से अपनी उपयागिता है। वन अनेक वन्य पशु-पक्षियों को संरक्षण प्रदान करते है। वे हिरन, नीलगाय, भाल शेर चीता आदि वन्य पशुओं की क्रीड़ास्थली है। ये पशु वनो में स्वतंत्र विचरण करते हैं. भोजन प्राप्त करते हैं और संरक्षण पाते गाय, भैस, बकरी, भेड आदि पालतू पशुओं के लिए भी वन विशाल चारागाह प्रदान करते हैं।
वन संपदा का संरक्षण का अप्रत्यक्ष योगदान-
वर्षा-
भारत एक कृषि-प्रधान देश है। सिंचाई के अपर्याप्त साधनों के कारण वह अधिकांशतः मानसून पर निर्भर रहता है। कृषि की मानसून पर निर्भरता की दृष्टि से वनों का बहुत महत्व है। वन वर्षों में सहायता करते हैं। इन्हें वर्षा का संचालन कहा जाता है। इस प्रकार वनों से वर्षा होती है और वर्षा से बन बढ़ते हैं।
पर्यावरण संतुलन-
वृक्ष वातावरण से दूषित वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) ग्रहण करके अपना भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन छोड़ कर पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने में सहायक होते हैं। इस प्रकार वन पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हैं।
भूमि कटाव पर रोक- वनों के कारण वर्षा का जल मंद गति से प्रवाहित होता है।
अतः भूमि का कटाव कम होता है। वर्षा की अतिरिक्त जल को वन सोख लेते हैं और नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करके भूमि के कटाव को रोकते हैं. फलस्वरूप भूमि ऊबड़-खाबड़ नहीं हो पाती तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
बाढ नियंत्रण में सहायता-
वृक्ष की जड़ें वर्षा के अतिरिक्त जल को सोख लेती हैं, जिनके कारण नदियों का जल-प्रवाह नियंत्रित रहता है। इससे बाढ की स्थिति से बचाव हो जाता है।
उपसंहार-
निस्संदेह वन हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं, इसलिए वनों का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए जनता और सरकार का सहयोग अपेक्षित है। बड़े खेद का विषय है कि एक ओर तो सरकार वनों के संवर्द्धन के लिए विभिन्न आयोगों और निगमों की स्थापना कर रही है, तो दूसरी ओर वह कुछ स्वार्थी तत्वों के हाथों में खेल कर केवल धन के लाभ भी आशा से अमूल्य वनों को नष्ट कराती जा रही है। आज मध्य प्रदेश में केवल 18 प्रतिशत वन रह गए हैं, इसलिए आवश्यक है कि सरकार वन संरक्षण नियमों का कड़ाई से पालन करा कर भावी प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा करे। हर व्यक्ति वर्ष में एक बार वृक्ष लगा कर इस ओर अपना अमूल्य योगदान दे सकता है।