सूरदास का जीवन परिचय – Biography of Surdas in Hindi Jivan Parichay, प्रिय पाठक इस पोस्ट में आप सभी का स्वागत है gyanmanchrb के एक नए आर्टिकल में आज हम सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay के बारे में पढ़ेंगे इसलिए यदि आप किस पोस्ट पर विजिट किए हैं तो कृपया करके इस पोस्ट को पूरा अध्ययन करें तो चलिए सूरदास के बारे में सरल भाषा में विस्तार से जानते हैं
सूरदास जी का जीवन परिचय || Surdas ka Jivan Parichay
जिन्हें माना जाता है वात्सल्य रस का सम्राट ,जानिए आप विस्तार से सूरदास जी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के बारे में।
15 वीं सदी को अपनी रचनाओं से प्रभावित करने वाले कवि, महान संगीतकार एवं संत थे सूरदास जी। सूरदास जी सिर्फ एक सदी को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपने काव्य से रोशन किया हुआ है। सूरदास जी की रचना की प्रशंसा करते हुए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि काव्य गुणों की विशाल वनस्थली में सूरदास जी का एक अपना ही सहज सौन्दर्य है। सूरदास जी उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिनका सौंदर्य पद पद पर माली के कृतित्व की याद दिलाता है। बल्कि उस अकृत्रिम वन भूमि की तरह है, जिसका रचयिता स्वयं रचना में घुलमिल गया हो।
सूरदास जी का जीवन परिचय || Surdas ka Jivan Parichay – Biography of Surdas in Hindi Jivani
सूरदास कौन थे ? वात्सल्य रस के सम्राट महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ई.वी. में रुनकता नामक गांव में हुआ था। हालांकि कुछ लोग सीही के सूरदास की जन्मस्थल मानते है। इनके पिता का नाम पंडित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे और उनके माता जी का नाम जमुना दास था। सूरदास जी को पुराणों और उपनिषदों का विशेष जानकार था।
सूरदास जी अंधे थे:– सूरदास जी जन्म से अंधे थे या नहीं। इस बारे में कोई प्रमाण सबूत नहीं है। लेकिन माना जाता है कि श्री कृष्ण बाल मनोवृत्तियों और मानव स्वभाव का जैसा वर्णन सूरदास जी ने किये थे। ऐसा कोई जन्म से अंधा व्यक्ति कभी कर ही नहीं सकते। इसलिए माना जाता है कि वह अपने जन्म के बाद अंधे हुए होंगे। वहीं हिंदी साहित्य के ज्ञाता श्यामसुन्दर दास ने भी लिखा है कि सूरदास जी वास्तव में अंधे नहीं थे, बल्कि श्रृंगार और रूप-रंग आदि का जो वर्णन महाकवि सूरदास ने किया वह कोई जन्मान्ध व्यक्ति नहीं कर सकता है।
सूरदास का विवाह:- माना जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनके विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना जाता है। कहा भी जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।सूरदास का जीवन परिचय | Surdas Ka Jivan Parichay
सूरदास के गुरु:-
अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात् सूरदास जी हमेशा दीनता के पद गाया करते थे। तभी सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे थे । साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्रीनाथ के मंदिर में भजन कीर्तन किया करते थे। महान् कवि सूरदास आचार्य वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। और यह अष्टछाप कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता था ।
श्रीकृष्ण गीतावली:- कहा जाता है कि कवि सूरदास जी से प्रभावित होकर ही तुलसीदास जी ने महान ग्रंथ श्री कृष्ण गीतावली की रचना की थी। और इन दोनों के बीच में तबसे ही प्रेम और मित्रता का भाव बढ़ने लगा था।
सूरदास का राजघरानों से संबंध:- महाकवि सूरदास जी के भक्तिमय गीतों की गूंज चारों तरफ फैल रही थी। जिसे सुनकर स्वयं महान् शासक अकबर भी सूरदास की रचनाओं पर मुग्ध हो गए थे। जिससे उनके कार्य से प्रभावित होकर अपने पास रख लिया था। आपको बता दें कि सूरदास के काव्य की ख्याति बढ़ने के बाद हर कोई सूरदास जी को पहचानने लगे। ऐसे में अपने जीवन के आखरी दिनों को सूरदास ने ब्रज में व्यतीत किये , जहां रचनाओं के बदले उन्हें जो भी प्राप्त होते थे । उसी से सूरदास जी अपना जीवन बसर किया करते थे।
सूरदास की रचनाएं:-
माना जाता है कि सूरदास जी ने हिन्दी काव्य में लगभग सवा लाख पदों की रचना की है । साथ ही सूरदास जी द्वारा लिखे पांच ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं, सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो है । तो वहीं दूसरी ओर सूरदास जी (Surdas Ka Jivan Parichay) अपनी कृति सूर सागर के लिए काफी प्रसिद्ध है, जिनमें उनके द्वारा लिखे गए 10,0000 गीतों में से 8,000 ही मौजूद हैं। उनका मानना था कि कृष्ण भक्ति से ही मनुष्य जीवन को सद्गति प्राप्त हो सकता है।
इस प्रकार सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति कर बेहद ही खूबसूरती से उनकी लीलाओं का व्याख्यान किया है। जिसके लिए उन्हें अपने काव्य में श्रृंगार, शांत और वात्सल्य तीनों ही रसों को अपनाया है। इसके अलावे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में सूरदास जी द्वारा रचित 25 ग्रंथों की उपस्थिति भी मिलती है। सूरदास जी के काव्य में भावपद और कलापक्ष दोनों ही समान अवस्था में मिलते है। इसलिए इन्हें सगुण कृष्ण भक्ति काव्य धारा का प्रतिनिधि कवि भी कहा जाता है।
सूरदास जी की भाषा शैली:-
सूरदास जी ने अपनी काव्यगत रचनाओं में मुक्तक शैली का उपयोग किया है। साथ ही उन्होंने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग भी किया है। तो वहीं सभी पद गेय हैं और उनमें माधुर्य गुण की प्रधानता भी है। इसके अलावे सूरदास जी ने सरल और प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है।
सूरदास जी की काव्यगत विशेषताएं:-
सूरदास जी को हिंदी काव्य का श्रेष्ठ माना जाता है। उनकी काव्य रचनाओं की प्रशंसा करते हुए डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि सूरदास जी (Surdas Ka Jivan Parichay) जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। और उपमाओं की बाढ़ आ जाती है और रूपकों की बारिश होने लगता है। साथ ही सूरदास ने भगवान श्री कृष्ण के बाल्य रूप का अत्यंत सरल और सजीव चित्रण किया हुआ है। सूरदास जी ने भक्ति को श्रृंगार रस से जोड़कर काव्य को एक अद्भुत दिशा की ओर मोड़ दिया था। साथ ही सूरदास जी के काव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य़ का भी जीवांत उल्लेख मिलते है। इतना ही नहीं सूरदास जी ने काव्य और कृष्ण भक्ति का जो मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है , वह अन्य किसी कवि की रचनाओं में नहीं मिलता।
सूरदास के दोहे:- Surdas ke dohe
चरण कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु लांघते अंधे को सब कछु दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।
भावार्थ:- सूरदास के अनुसार, श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ लांघ सकते है। अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है। बहरे को सब कुछ सुनाई देने लगते है और गूंगा व्यक्ति भी बोलने लगता है। और इसके साथ ही एक गरीब व्यक्ति अमीर बन जाता है। ऐसे में श्री कृष्ण के चरणों की वंदना क्यों नहीं करेगा।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।
भावार्थ:- उपयुक्त दोहे से तात्पर्य यह है कि श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें यह कहकर चिढ़ाते हैं, कि आपने मुझे पैसे देकर खरीदा है। अब बलराम के साथ खेलने नहीं जाऊंगा। ऐसे में श्री कृष्ण बार-बार माता यशोदा से पूछते है कि बताओ ना माता मेरे असली माता -पिता कौन है। माता यशोदा गोरी हैं परंतु मैं काले कैसे हूं। श्रीकृष्ण के इन प्रश्नों को सुनकर ग्वाले सुनकर मुस्कुराते हैं।
अबिगत गति कछु कहत न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल कौ रस अंतर्गत ही भावै।
भावार्थ:- जिस प्रकार से एक गूंगा व्यक्ति मीठे फल का स्वाद चख तो सकता है लेकिन इसका स्वाद के बारे में किसी से बात तक नहीं कर सकता है । ठीक उसी प्रकार से निराकार ब्रह्मा की गति के विषय में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है ।
जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
भावार्थ:- यशोदा जी भगवान श्री कृष्ण को पालना में झूला रही है। कभी उन्हें झूला झूलती है और कभी उन्हें प्यार से पुचकारती है। कभी गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू आकर उसे क्यों नहीं सुलाती है।
मैया मोहि मैं नहीं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो।।
भावार्थ:- सूरदास के अनुसार, श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा जी से कहते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया है। आप सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देते हैं। और जिसके बाद में शाम में ही लौटता हूं। ऐसा में मैं कैसे माखन चोर हो सकता हूं।
सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
मां भारती का यह पुत्र 1583 ई.वी. में गोवर्धन के पास स्थित पारसोली गांव में सदैव के लिए दुनिया से विदा हो गया। सूरदास जी (Surdas Ka Jivan Parichay)ने काव्य की धारा को एक अलग ही गति प्रदान की है । जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है। और हिंदी काव्य के क्षेत्र में उनकी रचनाएँ एक अलग ही स्थान रखती है। साथ ही ब्रज भाषा को साहित्यिक दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास जी को ही जाता है।