स्त्री शिक्षा की आवश्यकता क्यों है
स्त्री शिक्षा की आवश्यकता क्यों है इस बात को प्राय सभी लोगों को पता है इसलिए भारत में महिला शिक्षा वर्तमान परिदृशबहुत कम लड़कियों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है और उनमें से भी कई बीच में ही स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा कई लड़कियाँ रूढ़िवादी सांस्कृतिक रवैये के कारण स्कूल नहीं जा पाती हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न
स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन पाठ 15- हिंदी।NCERT Solutions for Class 10th।अभ्यास प्रश्न
1. कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया ?
उत्तर-कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। वे स्त्रियों को पढाना गह-सुख के नाश का कारण समझते थे। इनमें से कई तो स्वयं उच्च शिक्षित थे। वे यह कहकर स्त्री-शिक्षा का विरोध करते थे । कि संस्कृत नाटकों में स्त्रियाँ संस्कृत में बात न करके प्राकृत में बात करती हैं, जो उनके अपढ़ होने का प्रमाण है। लेखक निम्नांकित तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन करता है-
(क) संस्कृत नाटकों में प्राकृत बोलना स्त्रियों के अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है । क्योंकि उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत ही थी।
(ख) पुराने समय में भी अनेक स्त्रियाँ विदुषी थीं । जिन्होंने बड़े-बड़े विद्वानों एवं ब्रह्मवादियों के छक्के छुड़ाए थे।
(ग) पहले स्त्रियों की शिक्षा की जरूरत समझी या नहीं, पर अब उनकी शिक्षा की आवश्यकता है। अतः उन्हें पढ़ाना चाहिए।
(घ) हमें पुराने नियमों, आदर्शों और प्रणालियों को तोड़कर स्त्रियों को पढ़ाना चाहिए।
2. ‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-कुतर्कवादियों का कहना है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं । अतः उन्हें पढ़ाना नहीं चाहिए। उनके अनुसार उन्हें पढ़ाने से घर के सुख का नाश होता है। लेखक उनकी दलील का खंडन करते हुए कहता है । स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं तो उन पुरुषों को पढ़ाने से कौन-सा सुफल होता है । जो एम० ए०, बी० ए० शास्त्री और आचार्य होकर भी स्त्रियों पर हंटर फटकारते और डंडों से उनकी खबर लेते हैं ? यदि स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ उनको पढ़ाने का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी शिक्षा का ही परिणाम मानना चाहिए।इसलिए स्त्री शिक्षा की आवश्यकता है
3. द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है- जैसे- “यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबध में से छाँटकर समझें और लिखें।
उत्तर-निबंध से छाँटे गए ऐसे अंश, जिनमें व्यंग्य का सहारा लिया गया है। आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं। और, लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग- ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलेजों में भी शिक्षा पाई है।
जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्व समझाना है।
(क) पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडिताओं के नामोल्लेख देखकर कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अपढ़ और गँवार बताते हैं।
(ख) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का छूट । ऐसी दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
4. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है- पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर-पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है। उस जमाने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी। पंडितों ने अनेक ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचे । भगवान शाक्य मुनि और उनके चेले प्राकृत में ही धर्मोपदेश देते थे। बौद्धों का धर्मग्रंथ ‘त्रिपिटक’ भी प्राकृत में रचा गया। अतः पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनकी अनपढ़ता का चिह्न नहीं है। उस समय संस्कृत कुछ गिने-चुने लोग ही बोलते थे। दूसरे लोगों एवं स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम था।इसलिए स्त्री शिक्षा की जरुरी थी ।
5 परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों- तर्क सहित उत्तर दें। उत्तर-परंपरा में कई बातें चली आ रही हैं। हो सकता है उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए वे परंपराएँ उचित हों, पर अब परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाते हों। स्त्री-पुरुष एक समान हैं। वे दोनों समाज के अभिन्न अंग हैं। एक अंग के कमजोर रह जाने से समाज की गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल पाएगी। परंपरा की उन बातों को त्याग देना हमारे लिए हितकर है जो भेदभाव को बढ़ावा देती हों। स्त्रियाँ भी समाज की उन्नति में उतनी ही सहभागी हैं जितने पुरुष।
6. तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-तब की शिक्षा प्रणाली में पुस्तकों में दी गई सामग्री को रटने पर बल दिया जाता था। उस समय संस्कृत के श्लोकों को रटवाया जाता था। स्त्रियों के लिए शिक्षा उतनी सहज एवं सलभ नहीं थी जितनी आज है। आज की शिक्षा-प्रणाली में विद्यार्थी के स्वाभाविक विकास पर बल दिया जाता है। आज स्त्रियों की शिक्षा के महत्व को भी स्वीकारा गया है।
7. महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे ?
उत्तर-महावीर प्रसाद द्विवेदी खुली सोच वाले निबंधकार थे। उनके युग में स्त्रियों की दशा बहुत शोचनीय थी। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था। पुरुष-वर्ग उन पर मनमाने अत्याचार करता था। द्विवेदी जी इस अत्याचार के विरुद्ध थे। वे लिंग-भेद के कारण स्त्रियों को हीन समझने के विरुद्ध थे।
इसलिए उन्होंने अपने निबंधों में उनकी स्वतंत्रता की वकालत की। उन्होंने पुरातनपंथियों की एक-एक बात को सशक्त तर्क से काटा। जहाँ व्यंग्य करने की जरूरत पड़ी, उन पर व्यंग्य किया। वे चाहते थे कि भविष्य में नारी-शिक्षा का युग शुरू हो। उनकी यह सोच दूरगामी थी। वे युग को बदलने की क्षमता रखते थे। उनके प्रयास रंग लाए। आज नारियाँ पुरुषों से भी अधिक बढ़-चढ़ गई हैं। वे शिक्षा के हर क्षेत्र में पुरुषों पर हावी हैं।
8. महावी रप्रसाद द्विवेदी जी का भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखें।
उत्तर-महावीरप्रसाद द्विवेदी के काल को हिंदी साहित्य में ‘द्विवेदी युग’ के नाम से जाना जाता है। भाषा की दृष्टि से द्विवेदी युग संक्रमण का काल था। द्विवेदी जी से पूर्व गद्य-पद्य दोनों क्षेत्रों में ब्रजभाषा का वर्चस्व था। महावीरप्रसाद द्विवेदी जी ने गद्य में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया।
उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से खड़ी बोली को गद्य की भाषा बनाया तथा इसके व्याकरणिक नियम स्थिर किए। द्विवेदी जी की भाषा खड़ी बोली है। यह सरल है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग भी है; जैसे- नियमबद्ध, कटु, द्वीपांतर, तर्कशास्त्रता, ईश्वर-कृत आदि। लेखक की शैली तर्कपूर्ण है। इसमें हास्य-व्यंग्य के छींटे भी हैं।
9.स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन नामक निबंध का उद्देश्य स्पष्ट करें ?
अथवा इस निबंध में लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर-इस निबंध में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने बलपूर्वक कहा है कि प्राचीन भारत में भी स्त्री-शिक्षा थी। गार्गी, अत्रि-पत्नी, विश्ववरा, मंडन मिश्र की पत्नी आदि अनेक विदुषी स्त्रियाँ हुईं। आज के युग में स्त्री-शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। शिक्षा कभी अनर्थ नहीं करती। यदि स्त्री-शिक्षा के लिए कुछ संशोधनों की जरूरत पड़े तो कर लेने चाहिए, किन्तु उसका विरोध हरगिज नहीं करना चाहिए।
10. महावीर प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि आधुनिक है, सिद्ध करें।
उत्तर-महावीर प्रसाद द्विवेदी आधुनिक चेतना के लेखक रहे हैं। उन्हें सुधारवादी लेखक कहा जाता है। उन्होंने परंपराओं को भी सँवारने और बदलने की वकालत की। वे स्पष्ट कहते हैं- मान लें कि पुराने जमाने में भारत की एक भी स्त्री पढ़ी-लिखी न थी। न सही उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की जरूरत न समझी गई होगी। पर अब तो है । अतएव पढ़ाना चाहिए। हमने सैकड़ों पुराने नियमों, आदेशों और प्रणालियाँ को तोड़ दिया है या नहीं ? तो, चलिए, स्त्रियों को अपढ़ रखने की इस पुराना चाल को भी तोड़ दें।
11. द्विवेदी जी ने किन्हें विक्षिप्त और ग्रह ग्रस्त कहा है ?
उत्तर-द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के अकारण विरोधियों और पुरातनपंथियों को तथा ग्रहग्रस्त कहा है। ऐसे लोग आधुनिक युग में रहकर भी दकियान से चिपके हुए हैं। वे नारी को पढ़ाने-लिखाने के विरोधी हैं। इस प्रका पर मनमाना हुक्म चलाना चाहते हैं।
आप इन्हें भी अवश्य पढ़ें –
1. पद– सूरदास
2. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – तुलसीदास
3. (I) सवैया, – देव
(II) कवित्त – देव
4. आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
5. उत्साह, अट नहीं रही है – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
6. (I) यह दन्तुरित मुस्कान – नागार्जुन
(II) फसल – नागार्जुन
7. छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर
8.कन्यादान – ऋतुराज
9. संगतकार – मंगलेश डबराल
10 .नेता जी का चश्मा – स्वयं प्रकाश
11 . बालगोविंद भगत – रामवृक्ष बेनीपुरी
12 . लखनवी अंदाज़ – यशपाल
13. मानवीय करुणा की दिव्य चमक – सवेश्वर दयाल सक्सेना
14. एक कहानी यह भी – मन्नू भंडारी
15.स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन – महावीर प्रसाद द्विवेदी
16. नौबतखाने में इबादत – यतीन्द्र मिश्र
17. संस्कृति – भदंत आनंद कौसल्यायन
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