प्रकृति का पर्व सरहुल पर निबंध (Sarhul Parab Par Nibandh),आदिवासी करेंगे वृक्षों की पूजा सरहुल पर्व पर निबंध सरहुल पर्व क्यों मनाया जाता है सरहुल क्या है मुंडा ओके कौन सा पर्व सरहुल के नाम से जाना जाता है सरहुल संकेत बिंदु पर्व का परिचय कैसे मनाया जाता है क्यों मनाया जाता है निष्कर्ष सरहुल पर्व का निष्कर्ष सरहुल पर्व फोटो सरहुल 2023
प्रकृति का पर्व सरहुल पर निबंध(Sarhul Parab Par Nibandh) पर आज हम इस ब्लॉग में बात करेंगे झारखंड के सबसे प्रसिद्ध त्योहार सरहुल के बारे में तो चलिए शुरू करते हैं, सबसे पहले जानते हैं | सरहुल पर्व उराँव नामक आदिवासी जाति का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह त्योहार कृषि आरंभ करने के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस त्यौहार को ‘सरना के सम्मान में मनाया जाता है। सरना वह पवित्र कुंज है,जिसमें कुछ शालवृक्ष होते हैं। यह पूजनस्थान का कार्य करता है।
प्रकृति का पर्व सरहुल पर निबंध (Sarhul Parab Par Nibandh) कैसे लिखे।
आदिवासियों का प्रमुख पर्व सरहुल है, जो झारखंड, उड़ीसा और बंगाल के आदिवासी द्वारा मनाया जाता है.
क्यों मनाया जाता है सरहुल पर्व ?
सरहुल मध्य पूर्व भारत के आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है, झारखंड उड़ीसा बंगाल और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में यह पर्व मनाया जाता है, और आदिवासियों के भव्य उत्सव में एक है। यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया पर मनाया जाता है यह पर्व नए साल की शुरुआत का प्रतीक है।
यह वार्षिक महोत्सव बसंत ऋतु के दौरान मनाया जाता है एवं पेड़ और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा होती है इस समय साल पेड़ों को अपनी शाखाओं पर नए फूल मिलते हैं इस दिन झारखंड में राजकीय अवकाश रहता है। सरहुल का शाब्दिक अर्थ है साल की पूजा सरहुल त्यौहार धरती माता को समर्पित है ।
प्रकृति का पर्व सरहुल पर निबंध(Sarhul Parab Par Nibandh) 2023
वे लोग अपने घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। अपने मकानों को सजाते हैं। दीवारों के ऊपर हाथी-घोड़े, फूल-फल आदि रंग-बिरंगे चित्र बनाते हैं। सभी लोग इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन सभी खा-पीकर मस्त होकर घंटों तक नाचते गाते हैं। नाच- गाने से गाँव की गली-गली, डगर-डगर का वातावरण झमक उठता है।
इस त्यौहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य प्रारंभिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है आदिवासियों का मानना है कि वह इस त्यौहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का रोपाई या बोवाई करते हैं ।
सरहुल का परब का महाभारत से जुड़ी कथा
सरहुल महोत्सव कई लोगों के अनुसार महाभारत से जुड़ा हुआ है, जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो मुंडा और उरांव जनजाति लोगों ने कौरव सेना की मदद की और उन्होंने इसके लिए भी अपना जीवन बलिदान किया युद्ध में कई मुंडा और उरांव सेनानियों पांडवों से लड़ते हुए मर गए थे।
इसलिए उनके शव को पहचानने के लिए उनके शरीर को साल वृक्षों के पत्तों और शाखाओं से ढका गया था जो पत्तियों और शाखाओं के पेड़ से ढके हुए थे। वह सुरक्षित थे इसके अलावा जो साल के पत्ते और शाखाओं से नहीं ढके गए थे। वह शव सुरक्षित नहीं थे इसलिए साल के पेड़ पर उनका विश्वास दर्शाया गया है जो सरहुल त्योहारों से काफी मजबूत रिस्ता रखता है ।
सरहुल का त्यौहार कैसे मनाया जाता है ?
आइए अब जानते हैं, कि कैसे मनाया जाता है सरहुल पर्व सरहुल वसंत के मौसम के दौरान मनाया जाता है, जब साल के पेड़ की शाखाओं पर नए फूल खिलते हैं, उस समय गांव के देवता की पूजा की जाती है जिन्हें आदिवासी जनजातियों का रक्षक माना जाता है ।
इस अवसर पर युवक-युवतियाँ नगाड़े, मृदंग और बाँसुरी की धुनों पर थिरक- थिरककर नाचते हैं, और आनंदविभोर हो उठते हैं। जैसे हिंदुओं की होली है, मुसलमानों की ईद है, ईसाइयों का क्रिसमस है,वैसे ही उराँवों का सरहुल है।”सरहुल”
सरहुल त्योहार में एक निश्चित दिन को गांव का पुरोहित यानी कि पाहन सरनापूजन करता है।
इस अवसर पर मुर्गे की बलि दी जाती है। और हँरिया का अर्घ्य दिया जाता है। सरहुल के अवसर पर आदिवासी लोग अपने घर अवश्य आते हैं। लड़कियां ससुराल से मायके आती हैं।
इस त्यौहार में लोग खूब नाचते गाते हैं, जब नई फूल खिलते हैं, देवताओं की पूजा साल की फूलों से की जाती है। गांव की पुजारी या पाहन कुछ दिनों के लिए व्रत रखते हैं। सुबह में बस नाहा लेते हैं , और कच्चा धागा से बना एक नया धोती पहनते हैं उस दिन के पिछली शाम मिट्टी के बर्तन लिए जाते हैं और ताजा पानी भरा जाता है, और अगली सुबह इन मिट्टी के बर्तन के अंदर पानी का स्तर देखा जाता है।
प्रकृति का पर्व सरहुल पर निबंध विस्तार में
अगर पानी का स्तर कम होता है तो इससे अकाल या कम बारिश होने की भविष्यवाणी की जाती है और यदि पानी का स्तर सामान रहता है, तो वह एक अच्छी बारिश का संकेत माना जाता है पूजा शुरु होने से पहले पाहन की पत्नी पाहन के पैर धोती है और उनसे आशीर्वाद लेती है, पूजा के दौरान पाहन तीन अलग-अलग रंग के युवा मुर्गा प्रदान करते हैं ।
पहला सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए दूसरा गांव के देवताओं के लिए और तीसरा गांव के पूर्वजों के लिए इस पूजा के दौरान ग्रामीण सरना के जगह को घेर लेते हैं जब पाहन देवी देवताओं की पूजा के मंत्र जप करते हैं, तब ढोल नगाड़ा जैसे पारंपरिक ढोल, मंदार , घंट भी साथ ही साथ बजाए जाते हैं।
पूजा समाप्त होने पर गांव के लड़के पाहन को अपने कंधे पर बैठा लेते हैं और गांव की लड़कियां रास्ते पर आगे पीछे नाचती गाती उनके घर तक ले जाती है जहां उनकी पत्नी उनके पैर धोकर स्वागत करती है तब पाहन अपनी पत्नी और ग्रामीणों को साल के फूल भेंट करते हैं ।
इन फूलों को पाहन और ग्रामीण के बीच भाईचारे और दोस्ती का प्रतिनिधि माना जाता है गांव के पुजारी हर ग्रामीण को साल के फूल वितरित करते हैं और तो और वे हर घर की छत पर इन फूलों को डालते या खोंसते हैं जिसे दूसरे शब्द में फूल खोशी भी कहा जाता है ।
सरहुल त्यौहार में प्रसाद के रूप में क्या लेते हैं ?
पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद के रूप में हरिया नामक परसाद ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है जो कि चावल से बनाए बीयर होते हैं। इसको लेने के बाद पूरा गांव गायन और नृत्य के साथ सरहुल का त्यौहार मानते है, यह त्यौहार छोटा नागपुर के लगभग हर क्षेत्र में सप्ताह भर मनाया जाता है ।
सरहुल परब को विभिन्न नाम से जाना जाता है ?
कोल्हान क्षेत्र में इस त्यौहार को बा पर्व कहा जाता है इसका अर्थ फूलों का त्यौहार होता है उरावं लोग इन्हे खद्दी पर्व के रूप में मानते है , और मुंडा जोकर के नाम से इस तरह इस पर्व का अनेक नाम है ।
धरती और प्रकृति से बेहतर फसल व फल प्राप्ति का त्योहार है सरहुल पर्व
आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, पहचान और परंपराओं के अनुसार ही सरहुल धरती और प्रकृति से बेहतर फसल व फल की प्राप्ति का त्योहार के रूप में मानाया जाता है। आदिवासी जनजाति के अंतर्गत आने वाले जाति मूलत: यह त्योहार मनुष्य जीवन का प्रकृति के साथ जीवन मरण का रिश्तों का पूरी ईमानदारी के साथ बरकरार रखने के साथ प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रहने के लिए भविष्याणि को याद करने के लिए ही मनाते हैं।
कई सदियों से चली आ रही यह परंपरा के अनुसार सभी आदिवासी समुदाय के लोग साल वृक्ष के फूल और उनके नये पत्ते को भक्ति भाव अपनी नजदीकी जंगल से लाकर घर के पूजा स्थल पर पवित्रता से उस जगह को गाय के गोबर से लिप कर शुद्ध करने के बाद ही फूल को रखते है।
सरना स्थल किसे कहते हैं ?
सरना स्थल आदिवासियों का वह पवित्र स्थान है जहां पर आदिवासी समाज पूजा पाठ करते हैं
और उस स्थान पर साल के वृक्ष मौजूद होते हैं। एक निश्चित दिन गांव पाहन और उपस्थित ग्रामीण उस स्थल पर पूजा करते हैं।
उस दिन सरना स्थल पर मुर्गा का बली दिया जाता है और उनके मांस और अरवा चावल के साथ उसको सुडी या विरयानी की तरह खाने लायक बनाया जाता है साथ में उस दिन चावल से बनी पानी जिस को स्थानीय भाषा में हड़िया झरा कहते हैं ।
उसको प्रसाद के रूप में लिया जाता है ।उसके बाद तो वहां पर उपस्थित सभी लोग गीत गोविंद करते हैं और नाच ज्ञान भी करते हैं और खुशियां मनाते हैं अस्थल को सरना स्थल कहा जाता है।
सरहुल की शोभा यात्रा की शुरुआत कब और किसने किया
आदिवासियों के सरहुल पर्व को धरती और सूर्य के विवाह के रूप में भी देखा जाता है।
झारखंड की राजधानी रांची में कई दशक पहले से ही सरहुल पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है।
सरहुल की शोभायात्रा निकाली जाती है।
जिसमें रांची की विभिन्न क्षेत्रों से आदिवासी नव युवक भाई-बहनें, माता-पिता, बुजुर्ग इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं, और अपनी कला और संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं। लगभग लाखों लोग इस शोभायात्रा में अपनी वेशभूषा में शामिल होते हैं।
जैसा कि बताया जाता है, गुमला जिले के एक छोटे से गांव में 29 अक्टूबर 1924 में जन्मे बाबा कार्तिक उरांव आदिवासियों के विकास और उनके संस्कृतियों को लेकर काफी चिंतित थे। 1967 में उन्होंने अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की स्थापना की और खुद संस्थापक अध्यक्ष भी बने तथा बाबा कार्तिक उरांव के बैनर तले ही सरहुल की शोभा यात्रा का शुरुआत हुआ जो आज पूरे आदिवासी समाज इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं।
जो आज तक भी चली आ रही है, और आगे भी चलेगी यह शोभायात्रा में आदिवासी समाज के सभी लोग शामिल होते हैं, उसी समय से आदिवासियों का संगठन भी धीरे-धीरे मजबूत होता जा रहा है ,और करीब-करीब आज आदिवासी कब संगठित रूप सरहुल के इसी जुलूस में नजर आता है।
सरहुल पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण टॉपिक
- सरहुल जनजातियों का सबसे बड़ा त्योहार है।
- यह प्रकृति से संबंधित त्योहार है।
- यह चैत माह के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृत्या को मनाया जाता है।
- इस पर्व में साल वृक्ष की अहम भूमिका होती है।
- आदिवासी इस वृक्ष को पवित्र मानते हैं तथा आभार प्रकट करने के लिए इसकी पूजा करते हैं।
- इस पर्व में सुड़ी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है जो चावल एंव बलि चढ़ाई गई मुर्गी का मांस मिली खिचड़ी होती है।
- यह चैत माह के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृत्या को मनाया जाता है।
- इस पर्व में साल वृक्ष की अहम भूमिका होती है।
- आदिवासी इस वृक्ष को पवित्र मानते हैं तथा आभार प्रकट करने के लिए इसकी पूजा करते हैं।Jac
- इस पर्व में सुड़ी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है जो चावल एंव बलि चढ़ाई गई मुर्गी का मांस मिली खिचड़ी होती है।
- पर्व के चौथे दिन सरई फूल (साल) का विसर्जन किया जाता है।
- विर्सजन स्थल को गिड़िया कहा जाता है
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