संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 दीर्घ उतरीय प्रश्न। Ncert Solution For Class 9th Civics

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 दीर्घ उतरीय प्रश्न। Ncert Solution For Class 9th Civics के इस ब्लॉग पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से पाठ से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न जो की परीक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इस पोस्ट पर कवर किया गया है इसलिए इस पोस्ट को कृपया करके ध्यान से पढ़ें ताकि आपकी परीक्षा की तैयारी और भी अच्छी हो सके तो चलिए शुरू करते हैं-

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 दीर्घ उतरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 9th

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 दीर्घ उतरीय प्रश्न के उत्तर
संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर
संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 अति लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर

1 लोकसभा तथा राज्यसभा की तुलना करें।
उत्तर-लोकसभा तथा राज्यसभा की तुलना निम्नांकित रूप से की जा सकती है- लोकसभा-
(क) लोकसभा के सदस्यों का चुनाव सीधा जनता द्वारा होता है 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
(ख) लोकसभा (निम्न सदन) का कार्यकाल 5 वर्ष है। इससे पूर्व राष्ट्रपति इसे भंग कर सकता है।
(ग) लोकसभा सदस्य की आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए।
(घ) लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 हो सकती है।
(ङ) ये अपना अध्यक्ष चुनते हैं।
(च) लोकसभा द्वारा पास अविश्वास प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।

राज्यसभा-

(क) राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों के विधानसभा सदस्य करते हैं। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
(ख) राज्यसभा (उच्च सदन) एक स्थायी सदन है। प्रत्येक दो वर्ष बाद 1/3 सदस्य रिटायर होते रहते । इस प्रकार प्रत्येक सदन को 6 वर्ष काम करने का अवसर मिल सकता है।
(ग) कम से कम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।
(घ) राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है।
(ङ) इसका पदेन सभापति, भारत का उप-राष्ट्रपति होता है।
(च) राज्यसभा के ऐसे अविश्वास प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद् त्याग पत्र नहीं देती है।

2 भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे किया जाता है ?
उत्तर-राष्ट्रपति का चुनाव- राष्ट्रपति देश का मुखिया होता हैं उसका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है। इसमें-
(क) संसद के दोनों सदस्यों के चुने हुए सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य भाग लेते हैं। इन सदस्यों का एकमत नहीं होता। बल्कि उनके कई मत होते हैं। ध्यान रहे कि लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के मनोनीत सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं होता।

(ख) राष्ट्रपति का चुनाव समानुपातिक चुनाव प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होता है। इस प्रणाली में मतदाता अपना वोट अपनी पसन्द के क्रम से देता है। इस प्रकार इसमें कोई भी वोट व्यर्थ नहीं जाता।

(ग) मतदान गुप्त पर्ची द्वारा होता है।

(घ) राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है, और संसद-सदस्यों के वोटों में बराबरी होती है।

(ङ) जीतने वाले प्रत्याशी का एक न्यूनतम कोटा प्राप्त करना होता है, जो निम्नांकित ढंग से निकाला जाता है-

न्यूनतम कोटा= (डाले गये मतों का जोड़ / रिक्त स्थान +1+1)+1

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 Ncert Notes For Class 9th Civics

3 प्रधानमंत्री की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-प्रधानमंत्री की मुख्य शक्तियाँ तथा कार्य निम्नांकित-
(क) मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना- प्रधानमंत्री का मुख्य कार्य मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना है। प्रधानमंत्री मंत्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति इस सूची के अनुसार ही मंत्रियों को नियुक्त करता है। प्रधानमंत्री ही विभिन्न मंत्रियों के बीच विभागों का बँटवारा करता है।

(ख) मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता- प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है। इन बैठकों का कार्यक्रम भी प्रधानमंत्री द्वारा तैयार किया जाता ।

(ग) मंत्रियों को हटाना- यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री की नीति से असहमत होता है, तो प्रधानमंत्री उसे त्याग-पत्र देने के लिए कह सकता है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से कहकर उसे पद से हटवा सकता है।

(घ) राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी- प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी का काम करता है। वह राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में सूचित करता है तथा राष्ट्रपति की बात को मंत्रिमंडल के पास पहुँचाता है। मंत्री प्रधानमंत्री की पूर्व स्वीकृति से ही
राष्ट्रपति से मिल सकते हैं।

(ङ) नीति निर्धारण करना- देश की आंतरिक तथा बाहरी (विदेश) नीति के निर्धारण में प्रधानमंत्री बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(च) नियुक्तियाँ- राष्ट्रपति सभी उच्च सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है।

(छ) राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार- प्रधानमंत्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। राष्ट्रपति अपने सभी कार्य प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है।

(ज) संसद का नेता- प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही राष्ट्रपति द्वारा संसद का अधिवेशन बुलाया जाता है तथा स्थगित किया जाता है। संसद में सरकार की ओर से सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ प्रधानमंत्री द्वारा ही की जाती है।

(झ) योजना आयोग का अध्यक्ष- प्रधानमंत्री योजना आयोग, जो देश के आर्थिक विकास के लिए नीतियों का निर्माण करता है, का अध्यक्ष होता है।

(ञ) राष्ट्र का नेता- प्रधानमंत्री राष्ट्र का भी नेता है। जब देश पर किसी भी प्रकार का कोई संकट आता है, तो समस्त देश प्रधानमंत्री की ओर देखता है। प्रधानमंत्री से ही यह आशा की जाती है कि वह देश को उस संकट से मुक्ति दिलाएगा। इस प्रकार प्रधानमंत्री ही देश का वास्तविक शासक होता है।

4 प्रधानमंत्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? भारत सरकार में प्रधानमंत्री की स्थिति का विवेचना करें।
उत्तर-प्रधानमंत्री का निर्वाचन अथवा नियुक्ति- लोकसभा के आम चुनाव के बाद जिस राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है उसी दल के नेता को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नियुक्त कर देता है। संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री का कार्यकाल लोकसभा में उसके बहुमत पर निर्भर करता है।

भारत के प्रधानमंत्री की स्थिति- हमारे देश में प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह न केवल मन्त्रिपरिषद् का ही नेता होता है बल्कि लोकसभा और सारे राष्ट्र का नेता होता है। भारतीय प्रधानमंत्री के पद को इतना शक्तिशाली बनाया गया है कि उसकी तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से की जा सकती है। संविधान सभा में बोलते हुए प्रो० टी० के० शाह ने कहा था,

‘प्रधानमंत्री की शक्तियों को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि यदि वह चाहे तो किसी भी समय देश का अधिनायक बन सकता है। प्रधानमंत्री ही अपने मन्त्रिमंडल के सहयोग से देश के लिए प्रशासनिक और आर्थिक नीतियों तैयार करता है। वह ही वैदेशिक नीति भी तैयार करता है।

वह विभिन्न प्रशासकीय विभागों में सामंजस्य स्थापित करता है वह विदेशों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है अथवा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेता है। भारत के राष्ट्रपति की सभी शक्तियों का प्रयोग भी प्रधानमंत्री ही करता है।

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 Ncert Question And Answer Civics

5 भारत के राष्ट्रपति की कार्यपालिका तथा विधायी शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-राष्ट्रपति की प्रशासकीय या कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ-
(क) देश का शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है। देश के सभी निर्णय राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं। वह सरकार की कार्यविधि के संबंध में नियम बनाता है।

(ख) वह बड़ी-बड़ी नियुक्तियाँ करता है। जैसे- प्रधानमंत्री, मंत्रियों, राज्यपालों, राजदूतों तथा न्यायाधीशों आदि की नियुक्ति ।

(ग) वह तीनों सेनाओं का प्रधान होता है और वह युद्ध व संधियों की घोषणा करता है।

(घ) वह दूसरे देशों के राजदूतों का स्वागत करता है और उनके द्वारा उनकी सरकारों से अपने देश के संबंधों को सुनिश्चित करता है।

(ड) वह विभिन्न राज्य सरकारों को निर्देश देता और उन पर नियंत्रण रखता है।

(च) वह संघ क्षेत्रों और सीमावर्ती प्रदेशों के प्रबन्ध को भी देखता है।

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ-

(क) राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलाता है और उसे स्थगित करता है। वह लोकसभा भंग कर सकता है। परन्तु इन शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति प्रधान मंत्री की सलाह पर करता है।

(ख) आम चुनाव के बाद संसद के दोनों सदनों के पहले अधिवेशन या वर्ष के पहले अधिवेशन का आरम्भ राष्ट्रपति के अभिभाषण से होता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि राष्ट्रपति का यह अभिभाषण मंत्रिमंडल द्वारा ही तैयार किया जाता है।

(ग) कोई भी विधेयक उसके हस्ताक्षरों के बिना कानून नहीं बन सकता। संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता हैं। यदि कोई विधेयक धन-विधेयक न हो, तो राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार के लिए उसे संसद के पास भेज सकता है, परन्तु यदि संसद उस विधेयक को उसी रूप में राष्ट्रपति के पास भेज दे तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं।

(घ) राष्ट्रपति अध्यादेश भी जारी कर सकता है जो तुरन्त ही कानून का रूप धारण कर लेता है।
परन्तु संसद का अधिवेशन शुरू होने के छ: सप्ताह के बाद यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है। यदि संसद चाहे तो वह इस अवधि से पहले भी इसे रद्द कर सकती है।

6 भारत के राष्ट्रपति के न्यायिक और वित्तीय शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ-
(क) वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
(ख) वह किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकता है।
(ग) वह किसी भी अपराधी की सजा को कम या बिल्कुल हटा सकता मृत्यु-दण्ड को भी माफ कर सकता है।
(घ) उस पर किसी भी न्यायालय में कोई भी मुकदमा नहीं चल सकता।
(ङ) कोई भी न्यायालय उसे अपने सामने नहीं बुला सकता।

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ-

(क) वित्त विधेयक को लोकसभा में पेश करने की अनुमति देता है।
(ख) केन्द्रीय सरकार का बजट राष्ट्रपति की अनुमति से ही वित्तमंत्री लोकसभा में रखता है। इन सभी शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति अपनी इच्छा से नहीं करता बल्कि मंत्रिमंडल की सलाह से करता है।
(ग) वह हर पाँच वर्ष के बाद या इससे पहले जब ऐसी आवश्यकता अनुभव हो, वित्तीय कमीशन की नियुक्ति करता है।
(घ) वह आयकर की राशि को केन्द्र और राज्यों में बाँटता है।

7 किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है ? राष्ट्रपति शासन लागू करने के क्या प्रभाव होते हैं ?
उत्तर-यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिर्पोट मिलने पर या अन्यथा, संतुष्ट हो कि किसी राज्य की शासन व्यवस्था संविधान के अनुसार नहीं चलाई जा सकती तो वह उस राज्य के शासन के सभी या कुछ काम स्वयं सँभाल सकता है।

इसलिए आम तौर पर इसे “राष्ट्रपति शासन लागू करना कहा जाता है। इस घोषणा की अवधि दो माह होती है। यदि इसे दो माह के बाद जारी रखना हो तो संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है। संसद द्वारा घोषणा की पुष्टि कर दिए जाने पर भी यह घोषणा जारी होने की तिथि से छह महीने बाद समाप्त हो जाएगी। तथापि, इसे और छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता |

इस प्रकार राष्ट्रपति शासन सामान्यतः एक वर्ष तक चल सकता है। एक वर्ष के बाद इसे केवल दो परिस्थितियों के अन्तर्गत बढ़ाया जा सकता है, अर्थात् (क) जब संपूर्ण भारत में या राज्य के किसी भाग में आपात स्थिति की घोषणा लागू हो, और (ख) चुनाव आयोग प्रमाणित कर दे कि उस राज्य की विधानसभा के चुनाव कराना कठिन है। किंतु ऐसी कोई भी घोषणा तीन वर्ष से अधिक समय तक लागू नहीं रहेगी।

राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रभाव- राष्ट्रपति शासन लागू करने के निम्नांकित परिणाम होते हैं-
(क) राज्य विधानमंडल को भंग किया जा सकता है या निलंबित। राज्य विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी।
(ख) राष्ट्रपति कार्यपालिका संबंधी सभी काम राज्यपाल को सौंप सकता है।

संस्थाओं का कामकाज पाठ 5 अभ्यास प्रश्न के उतर Class 9th Civics

8 उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-उच्चतम न्यायालय संविधान के संरक्षक के रूप में यह उच्चतम न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह संविधान की गरिमा को बचाए रखे।

अगर कोई सरकार मनमाने ढंग से संविधान में संशोधन कर दे या उसे तोड़-मरोड़ दे तो उच्चतम न्यायालय का यह परम कर्तव्य होगा कि जनहित को ध्यान में रखकर उस पर अंकुश लगाए या संविधान की मर्यादा बनाए रखने के लिए मनमाने संशोधन उनमें न होने दे।

वह किसी केन्द्रीय या प्रान्तीय सरकार द्वारा पास किए गए कानून की वैधिकता का परीक्षण भी कर सकती है। यदि कोई संसद या राज्य विधान मण्डल ऐसा कोई कानून पास कर दे जो संविधान की धाराओं के विरुद्ध हो तो उच्चतम न्यायालय ऐसे कानून को अवैध घोषित कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भारतीय नरेशों के प्रिवी-पर्स के मामले में सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को अवैध घोषित कर दिया था। यू० एस० ए० में उच्चतम न्यायालय अपने-आप ही कानूनों की वैधिकता अवैधिकता की परख करता रहता है

परन्तु भारत में ऐसा नहीं है- यहाँ उच्चतम न्यायालय तभी दखल देता है जब कोई पीड़ित व्यक्ति अपनी पीड़ा निवारण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कोई निवेदन-पत्र देता है। 1976 ई० में 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में संशोधन किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय के पुनर्निरीक्षण के अधिकार को समाप्त कर दिया गया था।

ऐसे में परन्तु शीघ्र ही इस 42वें संशोधन अधिनियम के रद्द किये जाने पर उच्चतम न्यायालय को दोबारा संविधान के संरक्षण का अधिकार मिल गया। इस अधिकार द्वारा उच्चतम न्यायालय नागरिकों को किसी भी सरकार के मनमाने कार्यों से बचा सकती है।

9 न्यायपालिका को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रखने के लिए क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं? अथवा, हम कैसे कह सकते हैं कि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र हैं ?
उत्तर-न्यायपालिका को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रखने के लिए निम्न कदम उठाए गए हैं-
(क) सरकार अथवा कार्यपालिका के नियंत्रण से बाहर- न्यायपालिका अपने कार्यों के लिए न तो कार्यपालिका पर निर्भर है और न उसके प्रति उत्तरदायी। इस प्रकार वह निष्पक्ष तथा स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।

(ख) न्यायाधीशों की नियुक्ति- न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परंतु राष्ट्रपति उनको उनके पद से हटा नहीं सकता। उनको उनके पद से हटाया जाना कोई आसान काम नहीं है। अतः वे निडर होकर अपना कार्य करते हैं।

(ग) न्यायाधीशों को पद से हटाया जाना- न्यायाधीशों को पद से हटाना एक कठिन प्रक्रिया के बाद संभव है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए संसद के एक सदन में एक प्रस्ताव पारित करना होता है कि न्यायाधीश ने कोई ऐसा कार्य किया है जो संविधान के अनुसार गलत है। यह प्रस्ताव दोनों सदनों के 2/3 सदस्यों के द्वारा पारित होना चाहिए। ऐसा होने पर राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा सकता है। यह एक कठिन प्रक्रिया है। आज तक किसी न्यायाधीश को इस प्रक्रिया द्वारा उसके पद से नहीं हटाया गया है।

(घ) वेतन तथा अन्य सुविधाएँ- न्यायाधीशों को अच्छे वेतन तथा अन्य सुविधाएँ दी जाती हैं ताकि वे अपना काम ढंग से कर सके ।उन्हें आय के अन्य साधनों की जरूरत नहीं रहती जिससे वे बिना प्रलोभन के कार्य कर सकते हैं।

(ङ) न्यायाधीश पर उनके दिए गए निर्णयों के लिए कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। उनकी आलोचना भी नहीं हो सकती। अतः न्यायापालिका स्वतंत्र तथा निष्पक्ष कार्य कर सकती है। NCERT