NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 17- संस्कृति हिंदी में लेखक की दृष्टि से सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग बहुत ही मनमाने ढ़ंग से होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे – भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। और इन विशेषणों के कारण इन शब्दों की समझ और गड़बड़ा जाती है। इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं। क्लास10 हिंदी संस्कृति पाठ 17 से जुड़ी सभी महत्वपूंर्ण परीक्षा उपयोगी सवालों का हल आसान भाषा का प्रयोग करते हुए किया गया है , इस ब्लॉग में पाठ से जुड़ी हर अभ्यास प्रश्नों का जवाब बताया गया है-
NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 17- संस्कृति हिंदी Very Important Question
1 पाठ का नाम- संस्कृति।लेखक का नाम बनाएं?
उत्तर-पाठ का नाम- संस्कृति।लेखक का नाम- भदंत आनंद कौसल्यायन।
(2.) संस्कृत विद्यार्थी होने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-संस्कृत विद्यार्थी बनने के लिए आवश्यक है कि विद्यार्थी नए-नए आविष्कार करे उसमें नई-नई खोज करने की क्षमता, प्रवृत्ति और प्रेरणा हो तथा वह किसी आविष्कार तक पहुँच सके। बिना सफलता के भी वह संस्कृत नहीं कहला सकता।
(3.) कौन व्यक्ति वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है ?
उत्तर-वह व्यक्ति वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है जो व्यक्ति अपनी बुद्धि अथवा विवेक से किसी नए तथ्य का दर्शन या खोज करता है। ऐसा व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत कहलाने का अधिकारी है।
(4.) कौन व्यक्ति संस्कृत नहीं कहला सकता?
उत्तर-जिस व्यक्ति को अपने पूर्वज से कोई वस्तु अनायास ही प्राप्त हो जाए, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, पर संस्कृत नहीं कहला सकता।
(5.) न्यूटन का उदाहरण क्यों दिया गया है ?
उत्तर-न्यूटन गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कारक था। उसका उदाहरण संस्कृत मानव का स्वरूप समझाने के लिए दिया गया है। उसने नया आविष्कार किया था, अतः वह संस्कृत व्यक्ति था।
6 किसे हम न्यूटन की अपेक्षा सभ्य तो कह सकते हैं, न्यूटन जितना संस्कृत नहीं? क्यों?
उत्तर-क्लास10 हिंदी संस्कृति पाठ 17 में बताया गया है की भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से परिचित होने के अतिरिक्त और भी बातों को जानता हो, तो भी हम उसको अधिक सभ्य तो। कह सकते हैं, पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते।
7 पेट भरने और तन ढकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी क्यों नहीं है?
उत्तर-पेट भरने और तन ढकने पर भी मनुष्य इच्छाएँ शांत नहीं होती। वह निठल्ला न बैठकर कुछ न कुछ खोज करता ही रहता है।
8 हमें अपनी सभ्यता का अंश कैसे आदमियों से मिलता है?
उत्तर-जो व्यक्ति निठल्ले न बैठकर कुछ न कुछ करते ही रहते हैं ऐसे व्यक्ति सभ्यता को आगे बढ़ाते हैं। वे सभ्यता का अंश होते हैं और संस्कृति के वाहक भी।
(9.) मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान किसका परिचायक है ?
उत्तर-मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान उनकी सहज संस्कृति के कारण ही हमें प्राप्त होता है। मनीषी सदैव ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। वे कभी भी संतुष्ट होकर नहीं बैठते।
(10.) मनीषी किन्हें कहा गया है ?
उत्तर-मनीषी ऐसे संस्कृत आविष्कारकों को कहा गया है जो भौतिक आवश्यकताओं के लिए नहीं, अपितु मन की जिज्ञासा को तृप्त करने के लिए प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। सूक्ष्म और अज्ञात रहस्यों को जानना जिनका स्वभावगत गुण रहा है।
(11.) ‘आज के ज्ञान’ का क्या आशय है ?
उत्तर-‘आज के ज्ञान का यहाँ आशय है- आज का समूचा आध्यात्मिक और सौरमंडलीय ज्ञान। आज ग्रहों-उपग्रहों और सूक्ष्म किरणों की जो वैज्ञानिक जानकारी हमें उपलब्ध है, वह सब मनीषियों द्वारा प्राप्त हुई है।
(12.) मानव-संस्कृति के जनक के कौन-कौन से भाव हैं ?
उत्तर-क्लास10 हिंदी संस्कृति पाठ 17 के अनुसार मानव संस्कृति के निम्नांकित जनक हैं-
(i) भौतिक प्रेरणा आग या सुई-धागे का आविष्कार,
(ii) ज्ञानेप्सा तारों के संसार को जानने की इच्छा,
(iii) त्याग अन्य मानवों के लिए किया गया त्याग।
(13.) करुणा और त्याग के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर-(i) किसी भूखे को भोजन कराने के लिए अपना भोजन उसे दे देना,
(ii) रोगी बच्चे की सेवा में माँ का रात-भर जागते रहना।
उत्तर-लेनिन ने अपने डैस्क में रखे हुए डबल रोटी के सूखे टुकड़ों को खुद न खाकर उन्हें दूसरों को खिला दिया। मार्क्स ने मजदूरों को सुखी देखने के लिए जीवन-भर अध्ययन किया।
(15.) सिद्धार्थ कौन था? उसने कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य किया ?
उत्तर-सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का दूसरा नाम है। उन्होंने तृष्णा से व्याकुल संघर्षशील मानवता के सुख के लिए घर का त्याग कर दिया और सत्य की खोज की।
(16.) सभ्यता का परिचय दें।
उत्तर-क्लास10 हिंदी संस्कृति पाठ 17 में लेखक के अनुसार, संस्कृति का परिणाम है- सभ्यता। हमारे खान-पान, वेशभूषा, आने-जाने और युद्ध-संघर्ष के तरीके सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। आशय यह है कि मानव की भौतिक संपत्ति और साधनों को सभ्यता कह सकते हैं।
17 आत्मा विनाश के साधनों का क्या आशय है ? उन्हें क्या नाम दिया गया है?
उत्तर-आत्मविनाश के साधनों का आशय है- मनुष्यता का संहार करने वाले हथियार, बम, परमाणु बम, रासायनिक हथियार आदि। मनुष्यता का किसी भी प्रकार विनाश करने की योजना आत्मविनाश के अंतर्गत आती है। इसमें भ्रूण-हत्या, नशाखोरी, जुआ आदि दूषित प्रवृत्तियाँ भी आ जाती हैं। इन साधनों को असंस्कृति की संज्ञा दी गई है।
(18.) संस्कृति और असंस्कृति में क्या अन्तर है ?
उत्तर-संस्कृति मानव के विकास ज्ञान और कल्याण के लिए निर्मित होती है। असंस्कृति मानवता के हास, विनाश और अकल्याण के लिए ध्वंस के साधन खोजती है।
(19.) आज मानव ने आत्म-विनाश के कौन-कौन से साधन जुटा लिए है।
उत्तर-तरह-तरह के हथियार, अस्त्र-शस्त्र, परमाणु बम।वज्ञानिक उपलब्धियों का दरूपयोग करके मानव ने आत्मविनाश के साधन जुटा लिए हैं। इस प्रकार उसने प्रकृति से नाता तोड़ लिया है।
(20.) असंस्कृति किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर-मानव की जो प्रेरणा, प्रवृत्ति और योग्यता आत्म-विनाश के साधनों को खोजती है, उसे हम संस्कृति नहीं असंस्कृति कहते हैं।
(21.) लेखक किस बात से भयभीत है ? आप उसके भय को दूर करने के लिए क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-यदि मानव ने संस्कृति का कल्याणकारी भावना से सम्बन्ध विच्छेद किया तो निश्चित रूप से अनर्थ होगा। हमारा वैज्ञानिक विकास कल्याणकारी भावना को लेकर हो। हम अपनी उपलब्धियों का स्वार्थ से ऊपर उठकर सदुपयोग करें।
(22.) लेखक के अनुसार दलबंदियों की जरूरत क्यों नहीं है ?
उत्तर-लेखक के अनुसार, कोई भी प्रज्ञावान मनीषी जब किसी नई वस्तु का दर्शन करता है, तो वह किसी ऐसी वस्तु का निर्माण नहीं करता है जिसकी रक्षा की जानी चाहिए। न ही ऐसी रक्षा के लिए किसी दलबंदी की आवश्यकता है।
(23.) क्षण-क्षण परिवर्तन’ द्वारा लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर-क्षण-क्षण परिवर्तन’ द्वारा लेखक कहना चाहता है कि मानव-जीवन नित्य बदलता रहता है। धारणाएँ बदलती रहती हैं। विचार और व्यवस्थाएँ बदलती रहती हैं। इसलिए प्राचीनतम परंपराओं को ढोते रहना ठीक नहीं है। हमें नवीन परिस्थितियों के अनुसार समाज-व्यवस्था और संस्कृति में परिवर्तन कर लेने चाहिए।
(24.) संस्कृति के नाम पर कूड़े-करकट का ढेर किसे कहा गया है ?
उत्तर-संस्कृति के नाम पर पुरानी अतार्किक रूढ़ियों को ढोना; वर्ण-व्यवस्था के नाम पर समाज में भेदभाव को बनाए रखना कूड़े-करकट का ढेर है। लेखक के अनुसार, ऐसी गली-सड़ी परंपराएँ निबाहने योग्य नहीं हैं।
(25.) मानव-संस्कृति में कौन-सी चीज स्थायी है और क्यों ?
उत्तर-मानव-संस्कृति में कल्याणकारी निर्माण भी हैं और अकल्याणकारी भी। लेखक के अनुसार, कल्याणकारी निर्माण स्थायी होते हैं। क्योंकि अकल्याणकारी अर्थात विनाशकारी बातें समय के साथ अनुपयोगी सिद्ध हो जाती है। अतः वे नष्ट हो जाती हैं। परन्तु कल्याणकारी वस्तुएँ अपनी उपयोगिता के कारण लंबे समय तक जीवित रहती हैं।
(26.) लेखक किसे रक्षणीय वस्तु नहीं मानता?
उत्तर-लेखक पुरानी हिंदू-संस्कृति के नाम पर वर्ण-व्यवस्था को रक्षणीय वस्त नहीं मानता। उसके अनुसार, मानव-मानव में भेद खड़ा करने वाली संस्कृति नष्ट हो जानी चाहिए।jac.jharkhand.
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1. पद– सूरदास
2. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – तुलसीदास
3. (I) सवैया, – देव
(II) कवित्त – देव
4. आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
5. उत्साह, अट नहीं रही है – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
6. (I) यह दन्तुरित मुस्कान – नागार्जुन
(II) फसल – नागार्जुन
7. छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर
8.कन्यादान – ऋतुराज
9. संगतकार – मंगलेश डबराल
10 .नेता जी का चश्मा – स्वयं प्रकाश
11 . बालगोविंद भगत – रामवृक्ष बेनीपुरी
12 . लखनवी अंदाज़ – यशपाल
13. मानवीय करुणा की दिव्य चमक – सवेश्वर दयाल सक्सेना
14. एक कहानी यह भी – मन्नू भंडारी
15.स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन – महावीर प्रसाद द्विवेदी
16. नौबतखाने में इबादत – यतीन्द्र मिश्र
17. संस्कृति – भदंत आनंद कौसल्यायन
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