संसाधन और विकास पाठ 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 10th Geography 

संसाधन और विकास पाठ 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 10th Geography के ब्लॉक पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी विद्यार्थियों को पाठ से जुड़ी हर तरह के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न जो परीक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है आपको पढ़ने के लिए मिलेगा यदि आप एक बार इसको अध्ययन कर लेते हैं तो होने वाली परीक्षाओं में आपको काफी मदद मिलेगी।

संसाधन और विकास पाठ 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 10th Geography

संसाधन और विकास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
संसाधन और विकास लघु उत्तरीय प्रश्न 
संसाधन और विकास अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

1 संसाधनों का उपयोग करते समय हमें किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा संसाधनों के संरक्षण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए?
उत्तर- ससाधनों का उपयोग करते समय हमें निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(क) प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग करते समय हमें उनकी प्रकृति, प्रकार और निक्षेपों के भण्डारों को ध्यान में रखना चाहिए।

(ख) यदि भण्डार सीमित है तो हमें उनकी कुछ मात्रा आने वाले समय और भावी पीड़ी के लिए सुरक्षित रखनी चाहिए।
(ग) महासागरीय जल, सौर ऊर्जा और जलवायु जैसे संसाधन नवीकरणीय हैं। ये प्रकृति के उत्तम उपहार है। हमें यह देखना चाहिए कि कहीं इनका दुरुपयोग न हो।

(घ) अनवीकरण योग्य संसाधन का उचित मात्रा में ही उपयोग किया जाना चाहिए।
(ङ) अपशिष्ट सामग्री का पुनः चक्रण या पुनः उपयोग।
(च) संरक्षण के नियमों को कड़ाई से लागू करना।

2 संसाधनों के अन्धाधुन्ध उपयोग से क्या-क्या समस्याएँ पैदा हो सकती हैं?
उत्तर-संसाधन प्रकृति की महान देन है. जो मनुष्य के अस्तित्व और विकास के लिए अति आवश्यक है परन्तु यदि इनका अन्धाधुन्ध उपयोग किया जाता रहा तो इससे अनेक समस्याएँ पैदा हो सकती है-

(क) पहली समस्या तो यह पैदा हो जाएगी कि हमारे संसाधन जल्दी-जल्दी समाप्त होते चले जाएंगे।
(ख) दूसरी समस्या यह हो जाएगी कि अपने लालच के कारण समाज के कुछ वर्ग इन संसाधनों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे जबकि समाज के अन्य वर्ग उनके प्रयोग से वंचित रह जाएंगे। इसका यह परिणाम होगा कि समाज दो वर्गों- संसाधन सम्पन्न और संसाधनहीन या अमीर और गरीब वर्गों में बंट कर रह जाएगा।

(ग) संसाधनों के अन्याधुन्ध प्रयोग से कई वैश्विक संकट पैदा हो जाएँगे जैसे- पर्यावरण प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण, भूमण्डलीय तापन का बढ़ना तथा ओजोन परत का गायब होते जाना। यह सभी चीजें मानव के विनाश का कारण बन सकती है।

पाठ 1- संसाधन और विकास भूगोल के नोट्स | Class 10th

3 भारत में पाई जाने वाली मृदाओं के प्रमुख प्रकारों का संक्षेप में विवरण दें।
अथवा भारत में जलोद और काली मृदाओं के वितरण संक्षेप में लिखें।
उत्तर-भारत जैसे विशाल देश में कई प्रकार की मृदाएँ पाई जाती है जैसे लैटराइट मृदा, लाल मृदा, जलोद मृदा आदि।
जलोढ़ मृदा– जलोढ़ मृदा देश के एक बड़े क्षेत्र में पाई जाती है। यह मुख्यतः उत्तरी मैदानों, तटीय मैदानों तथा छत्तीसगढ़ बेसन में विशेष रूप से मिलती है। यह भूदा बहुत अधिक उर्वर होने के कारण कृषि के लिए बहुत उपयोगी है।

यह मृदा निरन्तर चलने वाली नदियों द्वारा लाए गए माल-मसाले (अर्थात् रेत, गाद, मृतिका आदि) से बनती है। ऐसी मृदा सतलुज, गंगा ब्रह्मपुत्र (जो उत्तरी-पूर्वी भारत में बहती है), महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी (जो तमिलनाडु में बहती है। आदि नदियों की घाटियों में अधिकतर मिलती है। उत्तरी मैदान की जलोढ़ मृदा दो प्रकार की होती है- बांगर और खादर।

काली मृदा- यह लावा के फैलाव से बनी हुई है, इसलिए इसका रंग काला होता है। काली मृदा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, काठियावाड़ (गुजरात), कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु में पाई जाती है। काली मृदा को रेगड़ मृदा भी कहते हैं। कही ये मृदा गहरी और कही कम गहरी होती है। यह मृदा काफी उर्वर होती है और कपास की खेती के लिए विशेषतः उपयोगी होती है। इस मृदा में दालों आदि का उत्पादन उत्तम होता है।

लाल और पीली मृदा– इस मृदा में लोहे की मात्रा अधिक होती है. इसलिए इसका रंग लाल होता है। यह मृदा तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखण्ड में पाई जाती है। इसका विकास पठारों पर पाए जाने वाले शैलों से जलवाष्प परिवर्तनों के प्रभाव से होता है। यह मृदा उर्वर होती है और कृषि योग्य होती है। निम्न भागों में लाल मृदा पाई जाती है-

लेटराईट मृदा- लेटराईट मृदा मुख्यतः दक्कन की पहाड़ियों, कर्नाटक, केरल उडीसा, असम व मेघालय के कुछ भागों में पाई जाती है। इस प्रकार की मृदा का निर्माण अधिक वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन क्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। यह मृदा की धरातल पर पड़ी लाल परत-सी दिखाई पड़ती है और कृषि के योग्य न होने के कारण इसे वनरोपण के लिए अधिक उपयुक्त माना गया है। इस मृदा के क्षेत्रों में यूकेलिप्टस. काजू तथा अनेक पेड़ों के वन लगाए गए हैं।

पर्वतीय व वनीय मृदा- इस प्रकार की मृदाएँ प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ऐसी मृदाएँ वनस्पति और जैविक अंशों के एकत्रित होने से बनती है। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है। इस प्रकार की मिष्टियों का विस्तार पहाड़ी राज्यों विशेषकर जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पूर्वी श्रेणियों अरुणाचल प्रदेश एवं मेघालय में देखा जा सकता है।

मरुस्थलीय मृदा- ऐसी मृदाएं शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ऐसी मृदा में के कण अधिक होते है इसलिए यह उतनी उपजाऊ नहीं होती। परन्तु सिंचाई की सुविधा मिल जाने से इन मृदाओं का भी उपयोग किया जा सकता है जैसे राजस्थान के गंगानगर क्षेत्र में किया जा रहा है। मरुस्थलीय मृदाएं राजस्थान, पंजाब, हरियाणा के एक विस्तृत क्षेत्रों में मिलती हैं। jac board