संविधान निर्माण पाठ 3 लघु उतरीय प्रश्न। Ncert Solution For Class 9th Civics

संविधान निर्माण पाठ 3 लघु उतरीय प्रश्न, Ncert Solution For Class 9th Civics के इस ब्लॉग पोस्ट में आप सभी विद्यार्थी जो कक्षा नवमी में पढ़ रहे हैं, उन सभी का इस ब्लॉग पोस्ट पर स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी विद्यार्थियों को पाठ से जुड़ी महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी लघु उत्तरीय प्रश्न के बारे में पढ़ने के लिए मिलेगा जो कि पिछले कई परीक्षा में पूछे जा चुके हैं , इस तरह के प्रश्न इसलिए यदि आप इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं, तो कृपया करके पूरा पढ़ें ताकि आपकी परीक्षा की तैयारी और भी अच्छी हो सके-

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संविधान निर्माण पाठ 3 अति लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर
संविधान निर्माणपाठ 3 लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर
संविधान निर्माण पाठ 3 दीर्घ उतरीय प्रश्न के उत्तर

1 संविधान में संशोधन की तीन प्रक्रियाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-भारतीय संविधान में संशोधन की तीन प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है-
(क) दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करनेवाले सदस्यों के साधारण बहुमत से पारित प्रस्ताव राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाता है।

(ख) दूसरी प्रक्रिया के अनुसार संसद के दोनों सदनों के उपस्थित और मतदान करनेवाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से पारित होने पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाता है।

(ग) तीसरी प्रक्रिया के अनुसार संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करनेवाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित हो जाने पर तथा इस प्रस्ताव के भारतवर्ष के आधे राज्य विधायिका से अनुमोदित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर पर प्रस्ताव कानून बन जाता है।

2 संसदात्मक शासन प्रणाली क्या हैं ?
उत्तर-भारत में संसदात्मक शासन प्रणाली है। संसदात्मक शासन प्रणाली उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य का अध्यक्ष नाममात्र का अध्यक्ष होता है। वास्तविक शासन प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों द्वारा चलाया जाता है।

मंत्रिमंडल का निर्माण संसद में से किया जाता है और वह संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। भारत में राज्य का अध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष है। यद्यपि संविधान द्वारा उसे अनेक शक्तियाँ दी गई हैं, परन्तु वह वास्तव में उनका प्रयोग नहीं करता।

उसकी शक्तियों का वास्तविक प्रयोग प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों द्वारा किया जाता है। मंत्रिमंडल का निर्माण संसद में से किया जाता है और इसके सदस्य संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। मंत्रिमंडल के सदस्य उतने समय तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें संसद में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है। अतः भारत में संसदात्मक (संसदीय) शासन प्रणाली है।

3 धर्मनिरपेक्षता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-धर्मनिरपेक्षता एक अवधारणा तथा एक सिद्धांत है जिसके अनुसार राज्य द्वारा सभी धर्मो के साथ समान व्यवहार किया जाता है। धर्म के आधार पर किसी नागरिक से कोई भेद-भाव नहीं किया जाता जब तक यह देश की शांति, सुरक्षा तथा अखण्डता के लिए घातक न हो।

(क) लोगों को अपने विश्वास के अनुरूप अपने पसंद के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता होती है। इसका अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता होती है और राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता।
(ख) सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान होते हैं और समान अधिकारों का उपभोग करते हैं चाहे उनका संबंध किसी भी विश्वास, जाति, वर्ण तथा धर्म के साथ हो। भारत इस अर्थ में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।

4 धर्म निरपेक्षता अथवा पंथ निरपेक्षता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-धर्म निरपेक्षता का अर्थ है कि धर्म लोगों का व्यक्तिगत मामला है। सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।

भारत के संविधान में धर्म निरपेक्षता के जो प्रावधान दिये गये हैं, उनमें से दो निम्न प्रकार हैं- प्रथम, संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन द्वारा ‘धर्म निरपेक्षता शब्द
जोड़कर हमारे संविधान में धर्म निरपेक्षता को स्पष्टता प्रदान की गयी है।

द्वितीय, संविधान में धर्म निरपेक्ष राज्य का दूसरा आधार नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार के रूप में है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लेख करते हैं।

अनुच्छेद 25 के अनुसार सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का तथा धर्म को अबाध रूप में मानने का अधिकार है। अनुच्छेद 28 के अनुसार राज्य के धन से पूर्णतः संचालित विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान करने का निषेध किया गया है।

संविधान निर्माण पाठ 3 Ncert Notes For Class 9th Civics

5 भारतीय संविधान की प्रस्तावना से क्या तात्पर्य है ? प्रस्तावना में लिखे गये प्रमुख आदर्श कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है। संविधान की प्रस्तावना में संविधान के लक्ष्यों, उद्देश्यों तथा सिद्धांतों का संक्षिप्त और स्पष्ट वर्णन किया गया है।

भारत सरकार व राज्य सरकारों के मार्गदर्शक सिद्धांतों का वर्णन की प्रस्तावना में ही किया गया है। प्रस्तावना ही हमें यह बतलाती है कि भारत में सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गई है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श हैं कि भारत प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।

6 संविधान की प्रस्तावना अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्यों है ?
उत्तर-भारत का संविधान एक प्रस्तावना से प्रारंभ होता है। यह संविधान के दर्शन हेतु अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। यह संविधान में निहित आदर्शों तथा मूल सिद्धांतों से युक्त है।

यह वह रास्ता दिखाती है जिस पर सरकार को चलना चाहिए। यह अदालती मान्यता प्राप्त नहीं है और न ही किसी अदालत द्वारा लागू की जा सकती है। परन्तु फिर भी यह संविधान के प्रकाश स्तंभ का कार्य करती है।

7 समवर्ती सूची से क्या समझते है ?
उत्तर-भारत में संघात्मक शासन है अतः केन्द्र तथा राज्यों में शक्ति विभाजन किया गया है। कुछ विषय केन्द्र सूची में तथा कुछ राज्य सूची में दिए गए हैं। इनके अतिरिक्त एक तीसरी सूची समवर्ती सूची में भी दी गयी है।

इसमें साधारणतः वे विषय रखे गए हैं जो केन्द्र तथा राज्य दोनों के लिए सामान्य रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। संविधान में समवर्ती सूची में 47 विषय रखे गए हैं। इन पर केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। परन्तु टकराव की स्थिति में केन्द्र सरकार का बनाया हुआ कानून प्रभावी होगा।

8 सार्वभौम वयस्क मताधिकार पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-अपने वोट या मत द्वारा अपनी इच्छा को व्यक्त करने के अधिकार को मताधिकार कहते हैं। तब यह अधिकार देश में रहने वाले प्रत्येक वयस्क को, जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो जाता है तो उसे वयस्क मताधिकार कहा जाता है।

भारत में यह अधिकार प्रत्येक ऐसे नागरिक को दिया गया है जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो। पहले यह अधिकार 21 वर्ष या इससे अधिक आयु के नागरिकों को दिया गया था परन्तु बाद में यह आयु 18 वर्ष कर दी गई

ताकि अधिक से अधिक युवक चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकें ऐसा अधिकार दिये जाने में किसी जाति, धर्म, लिंग आदि का कोई भेदभाव नहीं रखा गया ताकि देश में एक वास्तविक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हो सके ।

संविधान निर्माण पाठ 3 (कक्षा नवीं), सामाजिक विज्ञान Class 9 Notes

9 क्या भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है, कैसे ?
उत्तर-भारत भी इसी प्रकार का एक पंथ-निरपेक्ष राज्य है और इसमें धर्म या मत के नाते
किसी विशेष जन-समूह को कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं। सबको पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता और समानता प्रदान की गई है।

कोई व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी समय पंथ बदलकर दूसरे पंथ में जा सकता है। मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे तथा गिरजाघर स्वतंत्र रूप से बनवाये जा सकते हैं। सरकारी नौकरियाँ योग्यता के अनुसार दी जाती हैं और उनमें धर्म या पंथ को कोई भेद-भाव नहीं किया जाता।

10 संविधान सभा की कार्य शैली के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-(क) संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, अनावरित और सहमतिजन्य तरीके से कार्य किया। सबसे पहले कुछ प्राथमिक सिद्धांतों पर निर्णय लिए गए और सहमति हुई।

इसके पश्चात् डॉ० बी० आर० अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक प्रारूप समिति ने परिचर्चा के लिए संविधान का एक प्रारूप तैयार किया।

(ख) प्रारूपी संविधान पर कई बार गहन परिचर्चा इसके खंडों के क्रम में की गई। दो हजार से भी अधिक संशोधन पर विचार किया गया।
(ग) सदस्यों ने तीन वर्ष तक लगातार 114 दिन विस्तृत वार्ता की थी। प्रत्येक दस्तावेज प्रस्तुत किया गया तथा संविधान सभा में बोले गए प्रत्येक शब्द को अभिलेख में लिया गया व परिरक्षित किया गया।

11 भारत के सन्दर्भ में धर्म निरपेक्षता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-धर्म निरपेक्ष शब्द की भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान द्वारा जोड़ गया। इससे तात्पर्य यह है कि भारत किसी धर्म या पंथ को राज्य धर्म का विरोध करता है।

प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता होगी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है। उसके अनुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक किसी भी धर्म में विश्वास कर सकता है और उसका प्रसार कर सकता है।

12 नीति निर्देश तत्त्वों का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-राज्य नीति-निर्देश तत्त्वों को वैधानिक शक्ति प्राप्त न होने पर भी ये महत्त्वहीन नहीं है। इनके पीछे जनमत की शक्ति होती है जो प्रजातंत्र का सबसे बड़ा न्यायालय | नीति-निर्देश तत्त्वों द्वारा जनता का शासन

की सफलता-असफलता को जाँच करने का मापदण्ड भी प्रदान किया जाता है। देश अथवा नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने का मार्ग निर्देशक तत्त्वों में बताया गया है। ये तत्त्व न्यायालयों के लिए भी प्रकाश स्तम्भ है।

इन तत्त्वों की महत्ता का एक कारण यह भी है कि इनमें गाँधीवादी है कि वैधानिक शक्ति प्राप्त न होने पर भी निर्देशक तत्त्वों का अपना महत्त्व और उपयोगिता है। इन नीति-निर्देशक तत्त्वों के आधार पर ही भारत में जमींदारी और जागीरदारी प्रथा का

अंत हुआ पंचायत राज व्यवस्था और स्थानीय स्वशासन को सृदृढ़ किया गया है। कमजोर वर्गों के कल्याण के कार्यक्रम चलाए गये हैं। अस्पृश्यता का लगभग अंत हो चुका है।

संविधान निर्माण पाठ 3 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर क्लास 9th Civics

13 दक्षिण अफ्रीका के नए संविधान में वर्णित कुछ तथ्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-(क) दो वर्ष तक वार्ता और परिचर्चा करने के उपरांत उन्होंने विश्व के अभूतपूर्व शालीन संविधान को तैयार किया। इस संविधान ने अपने नागरिकों को किसी देश में उपलब्ध व्यापक अधिकारों से अधिक अधिकार प्रदान किए।

(ख) उन्होंने इसके साथ ही यह निर्णय भी लिया कि समस्याओं का समाधान खोजने में सभी की भागीदारी रहेगी और किसी के साथ भी दानवी व्यवहार नहीं किया जाएगा।
(ग) किसी ने अतीत में चाहे जो भी किया हो अथवा किसी भी चीज का प्रस्तुतीकरण किया हो, उसको संविधान का एक हिस्सा बनाए जाने पर सहमति हुई दक्षिण अफ्रीका के संविधान की उद्देशिका में ऐसा उल्लेख किया गया है।

14 दक्षिण अफ्रीका के लोगों को एक संविधान बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-(क) दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण संविधान की आवश्यकता और उसकी सामर्थ्य प्रकट करता है। इस नए लोकतंत्र में शोषणकर्ता और शोषित अथवा दमनकर्ता और दमित आपस में मिल-जुलकर रहने की योजना बना रहे थे। एक-दूसरे पर विश्वास करना उनके लिए आसान नहीं था। उन्हें परस्पर भय और आशंका ने घेर रखा था।

(ख) वे अपने-अपने हितों की सुरक्षा चाहते थे। अश्वेत अधिसंख्यक यह गारंटी कराना चाहते थे कि अधिसंख्यक शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांत के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाए।
(ग) वे पर्याप्त एवं प्रामाणिक सामाजिक तथा आर्थिक अधिकार चाहते थे। श्वेत अल्पसंख्यक अपने विशेषाधिकार और संपत्ति का परिरक्षण कराने के लिए उत्सुक थे ।

संविधान निर्माण पाठ 3 Civics Social Science in Hindi Medium

15 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार- स्वतंत्रता के बाद भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य (देश) घोषित किया गया है। सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती। धर्म के मामलों में भारतीय नागरिकों को निम्नांकित अधिकार संविधान द्वारा दिए गए हैं-

(क) प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता हैं।
(ख) व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है।
(ग) सरकार द्वारा उसके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
(घ) अन्य कोई भी व्यक्ति उसके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
(ङ) सरकार किसी धर्म विशेष को महत्त्व नहीं देती।
(च) धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

16 रंगभेद की नीति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-रंगभेद की नीति का प्रभाव-
(क) रंगभेद की नीति ने लोगों को बाँट दिया तथा उनकी पहचान उनके शरीर के रंगों के आधार पर की जाने लगी।
(ख) रंगभेद की नीति खासकर काले लोगों के लिए दमनकारी थी।
(ग) काले लोगों को गोरे लोगों के इलाके में रहने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
(घ) केवल परमिट होने पर ही वे गोरे लोगों के क्षेत्र में कार्य कर सकते थे।
(ङ) काले लोगों के लिए बस, टैक्सी, होटल, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा घर, थियेटर, पर्यटन स्थल, स्वीमिंग पूल, यहाँ तक कि जन शौचालय भी अलग कर दिए गए।
(च) वे न तो संगठन का निर्माण कर सकते थे और न ही अपने साथ होने वाले भयानक व्यवहार का ही विरोध कर सकते थे। Jac Board