राष्ट्रीय आंदोलन पाठ 10 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर | Ncert Solution For Class 8th history

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राष्ट्रीय आंदोलन पाठ 10 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history

राष्ट्रीय आंदोलन पाठ 10 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
राष्ट्रीय आंदोलन पाठ 10 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
राष्ट्रीय आंदोलन पाठ 10 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1 भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों पर चर्चा करें।
उत्तर-पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति ने राष्ट्रवादी भावना जगाने में अहम भूमिका निभाई। अंग्रेजी का ज्ञान होने पर भारतीय पाश्चात्य साहित्य, इतिहास व दर्शन से रु-ब-रु हुए। वाल्टेयर रूसो और मेजिनी जैसे लोगों के विचार से भारतीय अवगत हुए।

भारतीय अपनी स्थिति की तुलना यूरोपीय देशों से करने लगे। जिससे अपनी दुर्दशा पर भारतीयों को गहरा आघात लगा। इसके लिए वे अंग्रेजों को दोषी मानने लगे। इससे भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना पनपी। समाचार पत्रों, प्रेस एवं राष्ट्रीय साहित्य ने भी राष्ट्रवादी भावना को उभारने में मदद की।

राजा राममोहन राय ने राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना कर संवाद कौमुदी (बांग्ला) व मिरातुल अखबार (फारसी) जैसे पत्रों का संपादन कर राजनीतिक जागरण की दिशा में पहल की। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटक भारत दुर्दशा के माध्यम से अंग्रेजों की भारत के प्रति आक्रामक नीति का उल्लेख किया।

अन्य भाषाओं में भी रचित साहित्यों ने देशप्रेम की भावना को जागृत किया। अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के प्रति भी भारतीयों का रोष काफी बढ़ा। अंग्रेजों के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक नीतियों ने भारतीयों को यह समझने पर मजबूर कर दिया कि उनकी हितों की रक्षा अंग्रेजी शासन में नहीं हो सकती।

बुद्धिजीवी एवं पूँजीपति वर्ग भी अंग्रेजों से क्षुब्ध थे। ब्रिटिश आधिपत्य की समाप्ति के लिए शक्ति से अधिक जनसंगठन की आवश्यकता से ही राष्ट्रीय चेतना बढ़ी। अंग्रेजों का आर्थिक शोषण से भारत के लोग त्राहिमाम थे।

दादा भाई नौरोजी ने अंग्रेजों के धन निष्कासन के सिद्धांत के प्रति लोगों को सचेत किया। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में ब्रिटिश शासन के आर्थिक परिणामों की बहुत तीखी आलोचना की है।

अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के कारण भारत का बड़ा हिस्सा उनके अधीन हो गया, समान शासक के प्रति नाराजगी ने भारतीयों को एकता के सूत्र में पिरोया। रेल, डाक, तार सेवा जैसे तीव्र परिवहन एवं संचार साधनों ने राष्ट्रवाद को बढ़ाने में सहयोग दिया।

बौद्धिक पुनर्जागरण के तहत राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती ने भारतीयों के अंतरात्मा को जगाया। जिससे राष्ट्रवाद के उदय में काफी सहयोग मिला।

2 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों की क्या भूमिका रही?
उत्तर-क्रांतिकारी युवा वर्ग के नेता लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक एवं बिपिन चंद्र पाल (लाल, बाल, पाल) थे। इन युवा नेताओं को यकीन था कि ब्रिटिश सरकार राजनीतिक भिक्षावृत्ति से इनकी मांगों को नहीं मानेंगी।

अपनी मांगों को मनवाने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त कई अन्य कारणों ने भी उग्र राष्ट्रीयता के उदय को प्रोत्साहित किया। मध्य भारत के आकाल एवं पूना के प्लेग की बीमारी से हजारों लोगों की मृत्यु हो गयी थी।

सरकार ने राहत पहुँचाने के बजाय अमानवीय और बर्खतापूर्ण व्यवहार किया था। इसी कारण प्लेग कमश्निर रैड और आमट को चापेकर बंधु (दामोदर व बालकृष्ण) ने गोली मार दी। यह किसी अंग्रेज की भारत में पहली राजनीतिक हत्या थी।

अंग्रेजों की तीव्र आर्थिक शोषण की नीति ने भी भारत में उग्र राष्ट्रीयता को जन्म दिया। अबीसिनिया द्वारा इटली को हराना और 1905 में जापान द्वारा रूस को शिकस्त देने जैसी अंतराष्ट्रीय घटनाओं ने उग्र राष्ट्रीय नेताओं को प्रेरित किया।

लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति ने उग्र राष्ट्रीयता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। बाल गंगाधर तिलक ने “स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है. इसे मैं लेकर रहूँगा” का नारा दिया। उन्होंने महाराष्ट्र में गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना के प्रसार का प्रयास किया।

उग्र विचाराधारा के समर्थक सर्वाधिक बंगाल में थे। बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को बारींद्र कुमार घोष एवं भूपेंद्र नाथ दत्त ने फैलाया। उन्होंने युगांतर नामक पत्रिका निकाली। दोनों के सहयोग से ही 1907 में अनुशीलन समिति का गठन किया गया।

जिसका उद्देश्य ‘खून के बदले खून’ था। प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास किया। पुलिस के घेरे से बचने के लिए चाकी ने स्वयं को गोली मार ली जबकि खुदीराम बोस को 11 मई 1908 ई० को फाँसी दे दी गयी।

पंजाब और महाराष्ट्र में भी क्रांतिकारियों ने कई घटनाओं को अंजाम दिया। 28 अप्रैल 1916 ई० को एनी बेसेंट और तिलक ने मिलकर स्वशासन प्राप्ति के लिए होमरूल लीग की स्थापना की थी। इस प्रकार, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

3 भारत को आजाद कराने में महात्मा गाँधी का क्या योगदान रहा? अथवा, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की क्या भूमिका थी?
उत्तर-भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गाँधीजी का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। स्वदेश लौटने पर गाँधीजी ने 1917 ई० में बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों पर यूरोपीय मालिकों के अत्याचारों के विरुद्ध प्रथम सत्याग्रह किया।

युद्ध के समय गाँधीजी ने अंग्रेजों के प्रति सहयोग की नीति अपनाई। युद्ध के बाद घटित घटनाओं ने सहयोगी गाँधीजी को असहयोगी गाँधी में परिवर्तित कर दिया। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रवादी आंदोलन जन आंदोलन बन गया। उनके नेतृत्व में अनेक शक्तिशाली आंदोलन चले।

समाज के सभी वर्गों के लोग प्रभावित हुए और उनके अंदर वीरता और आत्मविश्वास की भावना जागी। रॉलेट ऐक्ट के विरुद्ध मार्च, 1919 में गाँधीजी ने सत्याग्रह किया। सरकार को इस ऐक्ट को वापस लेना पड़ा।

जालियाँवाला हत्याकांड, तुर्की पर किए जा रहे अत्याचारों तथा स्वराज्य प्राप्ति के लिए गाँधीजी ने लोगों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार से पूर्ण असहयोग करें। गाँधीजी को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।

जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी ने ग्राम-उत्थान, छुआछूत उन्मूलन और हिंदू-मुस्लिम एकता आदि रचनात्मक कार्यों की शुरुआत की। सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारम्भ डांडी यात्रा से गाँधीजी ने किया। नमक बनाकर स्वयं सरकारी कानून भंग किया। गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन सरकार ने इस सम्मेलन में भी स्वराज्य देने की
माँग स्वीकार नहीं किया।

गाँधीजी ने 1940 ई० में व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद गाँधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का नारा मिशन भेजा।

स्वाधीनता की प्राप्ति में देर न होने देने के लिए कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। माउंटबेटन योजना के अनुसार दो राष्ट्र के सिद्धांत को मान लिया गया। गाँधीजी ने सांप्रदायिक दलों के सामने दुःखी मन से देश का विभाजन स्वीकार कर लिया।

4 उन घटनाओं पर चर्चा करें जिनके फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ।
उत्तर-निम्नांकित घटनाओं के कारण पाकिस्तान का जन्म हुआ-
(क) 1930 के दशक से ही मुस्लिम लीग भारत में मुसलमानों को हिंदुओं से एक अलग राष्ट्र मानने लगी। यह पार्टी उन सांप्रदायिक घटनाओं से प्रभावित हो गयी थी जो हिंदुओं एवं मुसलमानों के कुछ गुटों के मध्य 1920 तथा 1930 के दशक के कुछ वर्षों में घटित हुई थी।

(ख) इसके अतिरिक्त 1937 की प्रांतीय विधानसभाओं के जो चुनाव हुए थे और चुनाव परिणामों ने जिस तरह मुस्लिम या लीग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था तो उसने समझा कि कांग्रेस वस्तुतः बहुसंख्यक हिंदुओं का समर्थन सदैव ही प्राप्त करती रहेगी तथा देश में लोकतंत्रीय ढाँचे मि में मुसलमान केवल दूसरी श्रेणी के नागरिक बन कर रह जायेंगे।

(ग) मुस्लिम लीग ने कांग्रेस पार्टी से यह प्रार्थना की कि वह यूनाइटेड प्रोविंस में लीग के साथ मिलकर संयुक्त सरकार गठित करे। सत्ता के नशे में मस्त कांग्रेस ने उसकी यह प्रार्थना जब ठुकरा दी तो लीग उससे बहुत नाराज हो की गयी।

(घ) 1930 के दशक में कांग्रेस सर्वसाधारण मुसलमानों को का बड़ी भारी संख्या में अपनी ओर खींचने में भी विफल रही तथा इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों में अपना सामाजिक आधार बढ़ाने का मौका मिल गया। जब 1940 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में अधिकांश नेता जेलों में बंद थे तो मुस्लिम लीग ने अपने समर्थन को और भी विस्तृत करना चाहा।

5 गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर-गाँधीजी ने नमक कानून को तोड़ने को इसलिए चुना क्योंकि अब वह स्वराज्य के संघर्ष के लिए अनेक वर्षों से चल रहे आंदोलन को पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति (अथवा पूर्ण स्वतंत्रता) के उद्देश्य की ओर शीघ्र से शीघ्र ले जाना चाहते थे।

कांग्रेस द्वारा दिसम्बर 1929 में लाहौर में ही रावी नदी के तट पर इस लक्ष्य प्राप्ति की घोषणा कर दी गई थी। गाँधीजी ने उन्हीं दिनों यह घोषित कर दिया कि अब एक दिन भी ब्रिटिश शासन के अधीन रहना देशवासियों के लिए घोर पाप करने के समान होगा ।

क्योंकि ब्रिटिश शासन ने भारतवासियों का न केवल आर्थिक एवं राजनीतिक शोषण ही किया था बल्कि सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक शोषण भी किया था।

गाँधीजी मानते थे कि स्वराज्य अपने आप नहीं मिलेगा इसलिए अब प्रबल संघर्ष एवं आंदोलन करना ही होगा। गाँधीजी जानते थे कि नमक सभी लोगों की आवश्यकता है परन्तु इसे बनाने का एकाधिकार केवल सरकार को ही प्राप्त है।

1930 में महात्मा गाँधी ने घोषणा की वह नमक कानून को तोड़कर यह जताने की कोशिश करेंगे कि अब हम अंग्रेजी सरकार के कानूनों को नहीं मानेंगे और इसके लिए एक मार्च का वह नेतृत्व करेंगे। नमक भोजन का अभिन्न अंग था। नमक अभियान गरीब एवं अमीर सभी के लिए समान था।

6 स्वतंत्रता के बाद देश को भाषा के आधार पर राज्यों में बाँटने के प्रति हिचकिचाहट क्यों थी ?
उत्तर- स्वतंत्रता के बाद देश को भाषा के आधार पर राज्यों में बाँटने के प्रति निम्न कारणों से हिचकिचाहट थी-

(क) कांग्रेस ने अपने पुराने दिए गए वायदे को पूरा नहीं किया-1920 के दशक में इंडियन नेशनल कांग्रेस जो स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान प्रमुख पार्टी थी ने वायदा किया था कि यदि उसे एक बार भारत स्वतंत्रता के बाद सत्ता मिल जाती है।

तो वह भाषायी आधार पर राज्यों का गठन करेगी तथा हर भाषा से संबंधित लोगों, अपना अलग-अलग प्रांत मिलेगा। जो भी हो, देश 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ।

गाँधीजी के द्वारा कई बार देश विभाजन का विरोध करने के बावजूद देश स्वतंत्र तो हुआ लेकिन देश का विभाजन भी हुआ और भारत के साथ-साथ पाकिस्तान भी अस्तित्व में आया।

(ख) सांप्रदायिक दंगों एवं भारी जन हानि के कारण- देश विभाजन के कारण लगभग 10 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तथा लाखों लोग अपंग हो गये या भयंकर रूप से घायल एवं अपमानित हुए। कांग्रेस अब भाषा के आधार पर राज्यों के गठन को शुरू करके फिर हिंसा एवं दंगों का दौर शुरू नहीं करना चाहती थी।

(ग) तत्कालीन राजनीतिक क्षितिज के दो बड़े राजनीतिक सितारों ने भी इसका अपना समर्थन नहीं दिया- उस समय के दो महान नेतागण प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा उप-प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल भाषायी राज्यों के निर्माण के विरुद्ध थे। विभाजन के उपरांत, नेहरू ने कहा था, “विघटनकारी प्रवृत्तियाँ आगे बढ़ गयी हैं उन्हें रोकने के लिए. राष्ट्र को मजबूत एवं संगठित होना ही है।’ अथवा जैसा कि पटेलजी ने कहा था ‘भारत की यह प्रथम एवं अंतिम आवश्यकता है कि इसमें इसे एक ही राष्ट्र बनाये रखा जाये।

7 कारण बताएँ कि आजादी के बाद भी भारत में अंग्रेजी क्यों जारी रही।
उत्तर-(क) स्वतंत्रता के उपरांत राष्ट्रीय भाषा या संपर्क भाषा का मामला भी संविधान सभा के सामने आया। इसके अनेक सदस्य कहने कि देश की गुलामी के साथ ही विदेशी भाषा अंग्रेजी को भी अलविदा कह देना चाहिए और जो स्थान ब्रिटिश काल में अंग्रेजी को मिला हुआ था वे देश की सर्वाधिक जनसंख्या द्वारा बोली, समझी, लिखी तथा पढ़ी जाने वाली भाषा हिंदी को दे दिया जाना चाहिए।

(ख) गैर-हिंदी भाषी लोगों की कुछ अलग राय थी। संविधान सभा में बोलते हुए टी० टी० कृष्णामाचारी ने कहा मैं आपको दक्षिण के लोगों की तरफ से एक चेतावनी दे रहा हूँ, उनमें से कुछ ने तो यह धमकी तक दे डाली कि वे भारत से अलग हो जायेंगे, यदि हिंदी उन पर थोपी गई तो।”

(ग) अंततः एक समझौता फार्मूला बनाने एवं फैसला लेने में प्रबुद्ध नेतागण सफल हो गये। ‘कार्यालय या सरकारी भाषा’ तो हिंदी बन जायेगी लेकिन न्यायालयों में, सरकारी सेनाओं में एवं संवादवहन के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य के मध्य अंग्रेजी भाषा आजादी के बाद भी जारी रहेगी।

8 सविनय अवज्ञा आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-मार्च 1930 ई० में गाँधीजी द्वारा भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया। स्वतंत्रता की माँग को सही ढंग से रखने के लिए और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए गाँधी जी ने अपने नये हथियार सविनय अवज्ञा आंदोलन का इस्तेमाल किया।

इस काल में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव था। आर्थिक संकट से सारी भारतीय जनता और ब्रिटिश पूंजीपति वर्ग में असंतोष फैला हुआ था। गाँधीजी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए आंदोलन की शुरुआत कर दी।

गाँधीजी ने 12 मार्च 1930 को अपने 78 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर स्थित दाँडी तट पर पहुँचे और समुद्र के जल से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया और सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कर दी।

सुभाषचंद्र बोस ने डांडी यात्रा की तुलना नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनी के रोम मार्च से की थी। इस आंदोलन में किसानों, महिलाओं, आदिवासियों ने बढ़-चत कर हिस्सा लिया।

सरकार ने इस आंदोलन का क्रूरतापूर्वक दमन किया। हजारों आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया गया। सरकार भी गाँधीजी और कांग्रेस के महत्व को समझने को बाध्य हुई। आंदोलन को सिर्फ ताकत से नहीं दबाया जा सकता।

सरकार संवैधानिक सुधार के लिए तैयार हो गई। इसी उद्देश्य से लंदन में पहले गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। जो असफल रहा। बाध्य होकर ब्रिटिश सरकार ने गाँधीजी के साथ एक समझौता वार्ता की, जिसे ‘गाँधी-इरविन पैक्ट’ कहा जाता है।

9 भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में टाना भगतों का क्या योगदान था?
उत्तर-सुविख्यात ‘टाना भगत आंदोलन के जनक जतरा भगत का जन्म 1888 ई० में गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के अन्तर्गत चिगरी नावाटोली गाँव में हुआ था। सभी टाना भगतों को एकजुट करके 1914 ई० में टाना भगतों ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन का बिगुल बजा दिया।

टाना भगतों ने गाँधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। टाना भगतों में गाँव-कस्बों में जाकर हज़ताल को सफल बनाया। नागरमल मोदी, गुलाक नारायण तिवारी, जानकी साहु, पूर्णचंद्र, रामचंद्र प्रसाद सहित बड़ी संख्या में टाना भगतों को गिरफ्तार कर लिया गया।

आंदोलन शीघ ही झारखंड के गाँव-कस्बों में फैल गई। असहयोग आंदोलन के दौरान झारखंड में कांग्रेस का सर्वत्र प्रचार हो गया। लोग विदेशी वस्तुओं को त्यागकर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने लगे।

टाना भगत गाँव में आश्रम स्थापित करने लगे और अपने को गाँधी दर्शन में समर्पित कर दिया। स्वयं गाँधीजी ने स्वीकार किया कि उनके सारे शिष्यों में टाना भगत सर्वोत्कृष्ट हैं। टाना-भगत हजारों की संख्या में 1922 ई० के बिहार के गया कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने पैदल पहुंचे थे। jac