राजनीतिक दल पाठ 6 लघु उतरीय प्रश्न Ncert Solution For Class 10th Civics

राजनीतिक दल पाठ 6 लघु उतरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 10th Civics के इस अध्याय में आप सभी विद्यार्थी जो इस समय क्लास 10th में अध्ययन रत है उन्हें इस ब्लॉग पोस्ट पर स्वागत है , इस पोस्ट में पाठ से सबंधित जितने भी परीक्षा उपयोगी प्रश्न है उन सभी सवालों का हल इस पोस्ट पर अध्ययन करने को मिलेगा , तो चलिए शुरू करते है I

राजनीतिक दल पाठ 6 लघु उतरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 10th Civics

राजनीतिक दल पाठ 6 दीर्घ उतरीय प्रश्न के उत्तर
राजनीतिक दल पाठ 6 लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर
राजनीतिक दल पाठ 6 अति लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर

1 किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं?
उत्तर-राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है जिसके सदस्यों में एक जैसे विचार होते हैं, एक जैसी नीतियों होती है और जो देश की विभिन्न समस्याओं पर एकमत होते हैं। एक राजनीतिक दल में निम्नांकित गुण होते हैं-

(क) एक विशेष संगठन- हर एक राजनीतिक दल का एक संगठित ढांचा होता है। नीचे से लेकर ऊपर तक के पदाधिकारियों को चुनने की विशेष व्यवस्था होती है। हर एक सदस्य को यह पता होता है कि उसे क्या करना है। ऐसे व्यवस्थित संगठन के बिना कोई राजनीतिक दल लम्बे समय तक टिक नहीं सकता।

(ख) विचारधारा में एकता-एक सुव्यवस्थित संगठन के साथ किसी भी राजनीतिक दल में विचारधारा की एकता का होना आवश्यक है। हर एक दल के लक्ष्य होते हैं जो ये लोगों के सामने रखते हैं, उनका विश्वास प्राप्त करते हैं और चुनाव जीतने के प्रयत्न करते हैं। पार्टी का हर सदस्य इस उद्देश्यों और नीतियों को प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहते हैं।

(ग) संवैधानिक तरीकों में अडिग विश्वास- कोई भी राजनीतिक दल हो उसे अपने देश के संविधान में अडिग विश्वास होता है। वे स्वच्छ और स्वतंत्र चुनाव पद्धति में विश्वास रखते हैं और चुनावों के परिणामों से अपनी सहमति प्रकट करते हैं। किसी भी हालत में वे गुण्डाबाजी और चुनाव न्द्रों पर कब्जा करने की नहीं सोचते।

(घ) जीतने के पश्चात् अपनी नीतियों पर अमल करना- हर राजनीतिक दल, यदि वह अपनी सरकार बना लेता है, उन नीतियों को पूरा करने का प्रयत्न करता है जो उसने अपने अपने घोषणा-पत्रों में दे रखी होती है।

2 राजनीतिक दलों को कैसे सुधारा जा सकता है?
उत्तर-लोकतंत्र के कामकाज के लिए राजनीतिक पार्टियाँ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। चूंकि दल ही लोकतंत्र का सबसे ज्यादा प्रकट रूप है।

इसलिए यह स्वाभाविक है कि लोकतंत्र के कामकाज की गड़बड़ियों के लिए लोग राजनीतिक दल को ही दोषी ठहराते हैं। अतः चुनौतियों का सामना करने के लिए दलों को सुधारने के लिए कुछ सुझाव निम्नांकित हैं-

(क) विधायकों और सांसदों को दल बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद या विधायक को अपनी सीट भी गँवानी होगी। उन्हें इसे मानना होता है।

(ख) उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए यह आदेश जारी किया है कि चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी सम्पत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है।

(ग) चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए संगठित चुनाव करना और आयकर का रिटर्न भरना जरूरी कर दिया है। इनके अलावे राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाकर जैसे आन्दोलन और मीडिया आदि के द्वारा भी संभव हो सकता है। इस प्रकार लोकतंत्र मजबूत हो सकता है।

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 6 – राजनीतिक दल लोकतान्त्रिक राजनीति

3 लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जरूरत क्यों है?
उत्तर-लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जरूरत निम्न कारणों से है-
(क) विश्व में बड़े-बड़े देश हैं जिनमें लोकतांत्रिक व्यवस्था है क्योंकि इन बड़े देशों में एक व्यक्ति द्वारा शासन संभव नहीं है, इसलिए कई लोगों के समूह मिलकर शासन करते हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को एक समूह के रूप में संगठित करने के लिए राजनीतिक दल की जरूरत होती है।

(ख) लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के मतों द्वारा शासन वर्ग का चुनाव होता है। इसके लिए एक देश या प्रांत को कई चुनाव क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

राजनीतिक दल ही चुनावों में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने उम्मीदवार खड़ा करते हैं और बहुमत मिलने पर सरकार का गठन करते हैं। एक व्यक्ति द्वारा एक क्षेत्र में चुनाव जीतकर सरकार का गठन करना संभव नहीं है ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल की जरूरत होती है।

(ग) राजनीतिक दल में एक विचारधारा के लोग सम्मिलित होते हैं जो चुनाव में बहुमत मिलने पर सरकार का गठन करते हैं और पूरे कार्यकाल तक शासन करते हैं। लेकिन अगर विभिन्न विचारधाराओं के लोग जो विभिन्न चुनाव क्षेत्रों से जीतकर सरकार का गठन करते हैं।

यदि उनमें कोई मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो उनके द्वारा गठित सरकार क्षणिक ही होगी। ऐसी स्थिति में प्रभावी राजनीतिक दलों की जरूरत होती है।

जो सत्ता में आने पर ठीक से सरकार संचालित कर सके। इस प्रकार हम कह सकते है कि लोकतंत्र को प्रभावी और दृढ़ बनाने में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

राजनीतिक दल पाठ 6 Ncert Notes Civics

4 संघीय राजनीतिक दल और प्रान्तीय दल में क्या अंतर है ?
उत्तर-राष्ट्रीय राजनीतिक दल और प्रान्तीय दल में अन्तर- विश्व के संघीय व्यवस्था वाले लोकतंत्र में दो तरह के राजनीतिक दल हैं-

संघीय इकाइयों में से सिर्फ एक इकाई में अस्तित्व रखने वाले दल और अनेक या संघ की सभी इकाइयों में अस्तित्व रखने वाले दल। कई पार्टियों पूरे देश में फैली हुई हैं और उन्हें राष्ट्रीय पार्टी कहा जाता हैं इन दलों की विभिन्न राज्यों में इकाइयाँ हैं।

देश की हर पार्टी को चुनाव आयोग में अपना पंजीकरण कराना पड़ता है आयोग सभी दलों को समान मानता है पर यह बड़े और स्थापित दलों को कुछ विशेष सुविधाएँ देता है। इन पार्टियों को मान्यता प्राप्त दल कहते हैं।

अगर कोई दल लोकसभा चुनाव में पड़े कुल वोट का अथवा चार राज्यों के विधान सभा चुनाव में पड़े कुछ बोटों का 6% हासिल करता है तो उसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल की मान्यता मिलती है। जैसे- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, भारतीय जनता पार्टी।

जब कोई पार्टी राज्य विधान सभा के चुनाव में पड़े कुल मतों का 6 फीसदी या उससे अधिक हासिल करती है और कम से कम दो सीटों पर जीत दर्ज करती है तो उसे अपने राज्य के राजनीतिक दल के रूप में मान्यता मिल जाती है। जैसे- समाजवादी पार्टी, समता पार्टी आदि।

5 क्षेत्रीय दलों से क्या तात्पर्य है ? क्षेत्रीय दल, राष्ट्रीय दलों से किस तरह भिन्न होते हैं ?
उत्तर-क्षेत्रीय दलों का अर्थ-क्षेत्रीय दल भारत में ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनका प्रभाव पूरे राष्ट्र या देश में न होकर केवल अपने क्षेत्रों या किसी प्रांत तक ही सीमित होता है।

क्षेत्रीय दलों का प्रभाव एवं कार्य क्षेत्र किसी विशेष राज्य तथा क्षेत्र तक ही सीमित होता है। कई बार तो इन दलों का निर्माण केवल किसी क्षेत्र की किसी विशेष मांग को उभारने के लिए ही किया जाता है।

भारत के प्रमुख क्षेत्रीय दल हैं तमिलनाडु में- अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़घम (ए० आई० ए० डी० एम० के०) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी० एम० के०), आंध्र प्रदेश में- तेलगु देशम तथा जम्मू कश्मीर में- नेशनल काँफ्रेंस।

राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों में अंतर-

(क) राष्ट्रीय दल वे होते हैं जिनका प्रभाव सारे राष्ट्र या देश में होता है। इन दलों का कार्यक्षेत्र देश का कोई प्रांत या क्षेत्र न होकर बल्कि पूरा देश होता है। परन्तु क्षेत्रीय दल वे होते हैं जिनका प्रभाव तथा कार्यक्षेत्र देश के एक प्रांत या क्षेत्र तक ही सीमित होता है।

(ख) राष्ट्रीय दलों की शाखाएँ देश के अधिकतर राज्यों में फैली हुई होती हैं और इनके सदस्य भी भिन्न-भिन्न प्रांतों में रहने वाले लोग होते हैं परन्तु क्षेत्रीय दलों की शाखाएँ एक प्रांत या क्षेत्र तक ही सीमित होती है।

6 क्षेत्रीय दलों का क्या महत्व है ?
उत्तर-क्षेत्रीय दलों की भूमिका अथवा महत्व- भारत जैसे विस्तृत देश के लिए क्षेत्रीय दलों का होना एक स्वाभाविक सी बात है। इन दलों का अपना महत्व और अपनी भूमिका होती है।

(क) ये क्षेत्रीय दल किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों की समस्याओं से सम्बन्धित होते हैं इसलिए अपने-अपने क्षेत्र के लोगों की अधिक सेवा कर पाते हैं।

(ख) जब इन दलों के सदस्य संसद के लिए चुने जाते हैं तो वे अपनी स्थानीय समस्याओं की ओर सारे राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करते हैं।

(ग) साधारणतयाः ऐसे दल विरोधी दल को मजबूत करते हैं इसलिए केन्द्रीय सरकार को सतर्क रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।

7 भारत के राष्ट्रीय दलों से आप क्या समझते हैं ? इनकी क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-भारत में इस समय अनेक राष्ट्रीय दल एवं क्षेत्रीय दल हैं।
राष्ट्रीय दलों की विशेषताएँ-

(क) राष्ट्रीय दल ऐसे दलों को कहते हैं जिन्हें पिछले चुनाव में कुल मतों का कम से कम 6 प्रतिशत भाग और वह भी कम से कम 4 राज्यों में प्राप्त हुआ हो। ऐसे दलों को चुनाव आयोग राष्ट्रीय दल का दर्जा दे देता है।

(ख) ऐसे दल देशव्यापी मसलों की ओर सोचते है और क्षेत्रीय मसले क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ देते है।
(ग) उन्हें सारे देश के लोगों को ध्यान में रखकर अपनी नीतियों का निर्धारण करना पड़ता है।
(घ) ऐसे दलों का ध्यान केन्द्र में सरकार बनाने की ओर अधिक होता है और वे केन्द्र में या तो सत्ता दल या विरोधी दल की भूमिका निभाते हैं।

भारत के राष्ट्रीय दल- इस समय भारतीय संसद में निम्नांकित मुख्य राष्ट्रीय दल हैं-
(क) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस.
(ख) राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी,
(ग) भारतीय जनता पार्टी.
(घ) कम्युनिस्ट पार्टी आफ इण्डिया तथा
(ङ) कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी),
(च) 1997 में बहुजन समाज पार्टी को भी उपरोक्त शर्ते पूरी करने के कारण चुनाव आयोग द्वारा एक राष्ट्रीय दल का दर्जा दे दिया गया है।

राजनीतिक दल पाठ 6 Ncert Solution For Class 10th  Civics

8 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-
1885 में गठित इस दल में कई बार विभाजन हुए हैं। आजादी के बाद राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर अनेक दशकों तक इसने प्रमुख भूमिका निभाई है।

जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में इस दल ने भारत को एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का प्रयास किया। 1971 तक लगातार और फिर 1980 से 1989 तक इसने देश पर शासन किया।

1989 के बाद से इस दल के जन-समर्थन में कमी आई पर अभी यह पूरे देश और समाज के सभी वर्गों में अपना आधार बनाए हुए है। अपने वैचारिक रूझान में मध्यमार्गी (न वामपंथी न दक्षिणपंथी) इस दल ने धर्मनिरपेक्षता और कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यक समुदायों के हितों को अपना मुख्य एजेंडा बनाया है।

यह दल नई आर्थिक नीतियों का समर्थक है पर इस बात को लेकर भी सचेत है कि इन नीतियों का गरीब और कमजोर वर्गों पर बुरा असर न पड़े।

9 भारतीय जनता पार्टी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-भारतीय जनता पार्टी- पुराने भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करके 1980 में यह पार्टी बनी। भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेकर मजबूत और आधुनिक भारत बनाने का लक्ष्य: भारतीय राष्ट्रवाद और राजनीति की इसकी अवधारणा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (या हिन्दुत्व) एक प्रमुख तत्व है।

पार्टी जम्मू और कश्मीर को क्षेत्रीय और राजनीतिक स्तर पर विशेष दर्जा देने के खिलाफ है। यह देश में रहने वाले सभी धर्म के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने और धर्मातरण पर रोक लगाने के पक्ष में है।

1990 के दशक में इसके समर्थन का आधार काफी व्यापक हुआ। पहले देश के उत्तरी और पश्चिमी तथा शहरी इलाकों तक ही सिमटी रहने वाली इस पार्टी ने इस दशक में दक्षिण, पूर्व, पूर्वोत्तर तथा देश के ग्रामीण इलाकों में अपना आधार बढ़ाया।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता की हैसियत से यह पार्टी 1998 में सत्ता में आई। गठबंधन में कई प्रांतीय और क्षेत्रीय दल शामिल थे।

10 बहुजन समाज पार्टी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- बहुजन समाज पार्टी- स्व० कांशीराम के नेतृत्व में 1984 में गठन। बहुजन समाज जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियाँ और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं, के लिए राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास और उनका प्रतिनिधिन्च करने का दावा। पार्टी साहू महाराज, महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर और बाबा साहब अंबेडकर के विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है।

दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण और उनके हितों की रक्षा के मुद्दों पर सबसे ज्यादा सक्रिय इस पार्टी का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश में है. पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, दिल्ली और पंजाब में भी यह पार्टी पर्याप्त ताकतवर है।
अलग-अलग पार्टियों से अलग-अलग अवसरों पर समर्थन लेकर इसने उत्तर प्रदेश में तीन बार सरकार बनाई।

11 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- कांग्रेस पार्टी में विभाजन के बाद 1999 में यह पार्टी बनी। लोकतंत्र, गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता, समता, सामाजिक न्याय और संघवाद में आस्था।
यह पार्टी सरकार के प्रमुख पदों को सिर्फ भारत में जन्मे नागरिकों के लिए आरक्षित करना चाहती है। महाराष्ट्र में प्रमुख ताकत होने के साथ ही यह मेघालय, मणिपुर और असम में भी ताकतवर है। कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र सरकार में भागीदार।

12 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (सी० पी० आई० एम०) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-1964 में स्थापित; मार्क्सवादी-लेनिनवादी में आस्था। समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की समर्थक तथा साम्राज्यवाद और सांप्रदायिकता की विरोधी।

यह पार्टी भारत में सामाजिक-आर्थिक न्याय का लक्ष्य साधने में लोकतांत्रिक चुनावों को सहायक और उपयोगी मानती है। पश्चिम बंगाल. केरल और त्रिपुरा में बहुत मजबूत आधार। गरीबों, कारखाना मजदूरों. खेतिहर मजदूरों और बुद्धिजीवियों के बीच अच्छी पकड़।

यह पार्टी देश में पूँजी और सामानों की मुक्त आवाजाही की अनुमति देने वाली नई आर्थिक नीतियों की आलोचक है। पश्चिम बंगाल में लगातार 30 वर्षों से शासन में। 2004 के चुनाव में इसने करीब 6 फीसदी वोट और लोकसभा की 43 सीटें हासिल की।

13 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी० पी० आई०) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी० पी० आई०)- 1925 में गठित । मार्क्सवादी-लेनिनवाद,
धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था।

अलगाववादी और सांप्रदायिक ताकतों की विरोधी। यह पार्टी संसदीय लोकतंत्र को मजदूर वर्ग, किसानों और गरीबों के हितों को आगे बढ़ाने का एक उपकरण मानती है।

1964 की फूट (जिसमें माकपा इससे अलग हुई) के बाद इसका जनाधार सिकुड़ता चला गया लेकिन केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, आघ प्रदेश और तमिलनाडु में अभी भी ठीकठाक स्थिति है।

बहरहाल, इसका समर्थन धीरे-धीरे कम होता गया है। 2004 के चुनाव में इसे 1.4 फीसदी वोट और लोकसभा की 10 सीटें हासिल हुई। मजबूत वाम मोर्चा बनाने के लिए सभी वामपंथी दलों को साथ लाने की पक्षधर। ncert

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