पहनावे का सामाजिक इतिहास पाठ 8 लघु उत्तरीय प्रश्न | Ncert Solution For Class 9th History के इस पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से आप सबों को पाठ से जुड़े सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर साथ में उनके नोट का अध्ययन करने के लिए मिलेगा जो पिछले कई परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं, और उम्मीद है आने वाली आगामी परीक्षा में भी पूछे जा सकते हैं तो चलिए शुरू करते हैं-
पहनावे का सामाजिक इतिहास Social Science History in Hindi
1 फ्रांस के सम्प्चुअरी कानून क्या थे? इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-लगभग 1294 से लेकर 1789 ई० तक फ्रांस के लोगों से ऐसी आशा की जाती थी कि वे पोशाक के विषय में प्रचलित विशेष कानूनों का पालन करें, जिन्हें सम्प्चुअरी कानून कहा जाता था।
मध्यकाल में फ्रॉस के लोगों का जीवन काफी नियन्त्रित था और वैसे ही उनके कपड़े। न केवल यह निश्चित था कि किस-किस प्रकार के कपड़े पहनने है, वरन यह भी निश्चित था कि उन्हें बनाने में किस प्रकार की सामग्री का प्रयास करना चाहिए।
वास्तव में इन सम्चुअरी कानूनों का उद्देश्य था समाज के निचले तबके के लोगों के व्यवहार पर नियंत्रण रखना। इन कानूनों द्वारा उन्हें विशेष प्रकार के कपड़े पहनने, विशेष प्रकार के व्यंजन खाने. विशेष प्रकार के पेय (मुख्यतः शराब) पीने तथा विशेष प्रकार के इलाकों में जाकर शिकार खेलने की मनाही थी।
केवल शाही खानदान और कुलीन वर्ग के लोग ही एर्माइन फर, रेशम मखमल या जरी के बने कपड़े पहन सकते थे। कुलीनों से जुड़े कपड़ों का प्रयोग करने की जनसाधारण पर पाबंदी थी।
2 आधुनिक युग में पोशाक नियमों पर महिलाओं की प्रतिक्रिया संक्षेप में लिखें।
उत्तर-आधुनिक युग में पोशाक नियमों पर महिलाओं की प्रतिक्रिया-
(क) अमेरिका में इंग्लैंड की महिलाओं की प्रतिक्रिया देखने को मिली जो उसी तरह की थी जैसे श्वेत विस्थापित पूर्वी तट के लागों में थी। महिलाओं के वस्त्रों की आलोचना की गई। लंबे स्कर्ट धूल को साफ करते थे जो बीमारी का कारण थी।
(ख) अमेरिका की महिलाओं ने लंबे स्कर्ट की आलोचना की। यह महिलाओं को काम करने में बाधा पहुंचाती थी। ये बातें उनके सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के विपरीत थी।
(ग) अमेरिका की महिलाओं को विश्वास था कि पोशाक में सुधार निश्चित तौर पर महिलाओं की स्थिति बदल देंगे और महिला काम कर सकती है तथा धन कमा सकती है।
(घ) 1870 के दशकों तक राष्ट्रीय महिला एसोसिएशन ने पोशाक सुधार के लिए आंदोलन किया। उनकी दलील थी कि-
(I) पोशाक सादा हो,
(II) स्कर्ट छोटी हो और
(II) अंगिया से मुक्ति मिले।
अटलांटिक के दोनों ओर पोशाक सुधार के लिए आंदोलन था।
पहनावे का सामाजिक इतिहास सामाजिक विज्ञान (कक्षा 9) – नोट्स
3 यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर-(क) यूरोप में यहाँ तक कि फ्रांसीसी क्रांति के बाद भी गरीब लोग धनी लोगों के समान वस्त्र नहीं पहन सकते थे और न ही भोजन कर सकते थे। भारत में सामाजिक स्तर, आय, प्रादेशिकवाद, जाति, परंपराएँ आदि शक्तिशाली रहे जहाँ तक पोशाक-संहिता का संबंध था
(ख) यूरोपीय देशों में पहनावे के फैशन ने पुरुषों और महिलाओं के अंतर पर व्यापक बल दिया। विक्टोरियन इंग्लैंड में महिलाएँ बचपन से ही कर्तव्यपरायण और आज्ञाकारी होती थीं। आदर्श महिला वह होती है जो कष्ट सहन कर सके जबकि मनुष्यों से गंभीर, मजबूत, स्वतंत्र और अक्रामक होने की आशा की जाती है।
पहनावे का पश्चिमी ढंग कुछ लोगों में आकर्षक सिद्ध हुआ. विशेषकर जिन्होंने धर्म के रूप में ईसाई धर्म को अपना लिया। यहाँ भी महिलाओं की अपेक्षा पुरुष नये ड्रैस स्टाइल से अधिक प्रभावित हुए।
रूढ़िवादी भारतीय पुरुष तथा महिलाएँ, हिंदू तथा मुसलमान अपने पहनावे में परिवर्तन नहीं करना चाहते थे। वे अपनी पहचान नहीं खोना चाहते थे।
4 विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि ‘महात्मा गाँधी राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज्यादा कुछ नहीं हैं और अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं। चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गाँधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर– महात्मा गाँधी ने वस्त्र संबंधी कई प्रयोग किये।
यथा-कमीज के साथ धोती या पायजामा, लंदन के पश्चिमी सूट, डर्बन में लुंगी-कुर्ता, काठियावाड़ी वेश-भूषा आदि। 102110 जाने पोती धारण की जिसे उन्होंने आजीवन पहना। 10310 गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भी ये बिना कुर्त की केवल छोटी धोती पहन कर गये थे।
गांधीजी के ये सार पोशाक परिवर्तन भारतीय गरीब जनता का पोशाक के प्रतीक थे। आगे सलकर यह राष्ट्र भक्ति का पर्याय बन गया। गांधीजी के इन पोशाक-प्रयोगों का भारत की राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इससे चिढ़ कर पति ने गांधीजी के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी की।
पहनावे का सामाजिक इतिहास | Social History of Clothing
5 “महिलाओं की पोशाक में परिवर्तन दो विश्व युद्धों का परिणाम है।” इस कथन का सोप में वर्णन करें।
उत्तर- (क) पहले विश्व युद्ध में वस्त्र छोटे होते गए। 1917 तक 7 लाख महिलाएँ हथियारों के कारखानों में नौकरी करती थीं। ये काम करने की पोशाक पहनती थी ब्लाउज तथा पायजामा। बाद में खाकी कोट तथा टोपी पहनी जाने लगी।
(ख) युद्ध के समय महिलाओं के कपड़ों के चमकीले रंग उड़ जाते थे। फिर हल्के रंग पहने जाने लगे। इस तरह महिलाओं के वस्त्र सादा और हल्के रंग पहने जाने लगे। इस तरह महिलाओं के वस्त्र सादा और हलके बन गए, स्कर्ट छोटी हो गई।
6. समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर- महात्मा गांधी का स्वन था कि देशवासी खादी पहनें। उन्होंने महसूस किया कि खादी वर्गभेद, धार्मिक भेदों को कम करेगी। लेकिन क्या उनके कदम पर पालना सबके लिए संभव था। यहाँ कुछ उदाहरण हैं जो महात्मा गाँधी के खादी के वन के विषय में प्रतिक्रिया दिखाते हैं।
(क) राष्ट्रवादी जैसे मोतीलाल नेहरू ने अपने महेंगे वस्त्र छोड़ दिए जो पश्चिमी पहचान के थे और भारतीय धोती-कुर्ता को अपनाया।
(ख) कुछ दलित नेताओं ने महात्मा गाँधी का अनुसरण नहीं किया। इसमें सन्देह नहीं कि बहुत से दलित नेताओं ने पश्चिमी ढंग को अपनाया। उदाहरण के लिए डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने पश्चिमी वस्त्र (सूट) कभी भी नहीं छोड़े |
(ग) कुछ लोगों ने खादी कभी भी नहीं पहनी क्योंकि यह महँगी थी। एक महाराष्ट्र की महिला ने महात्मा गाँधी को लिखा कि हम गरीब लोग खादी जो इतनी महंगी है को कैसे अपना सकते है।
(घ) सरोजिनी नायडू और कमला नेहरू जैसे राष्ट्रवादी महिलाओं ने भी हाथ से मुने गोटे कपड़े के स्थान पर रंगीन और डिजाइनदार कपड़ों का प्रयोग जारी रखा।jac board