पद पद सूरदास हिंदी पाठ 1 में आपको पाठ से जुड़ी सभी महत्त्व पूर्ण सवालों का उत्तर मिलेगा, पाठ-1 पद सूरदास कक्षा 10 में उद्धव ,गोपियाँ , एवं कृष्णा की मनोरम प्रेम कथा का विवरण किया गया है , इन सभी पत्रों की प्रेम कथा में या वार्तालाप से जुड़ी सभी प्रश्नों का हल सरल भाषा में मिलेगा साथ में आप सभी को कविता का भावार्थ , आशय और अभ्यास प्रश्नो के उत्तर भी मिलेगा अध्ययन करने के लिए ।
पद पद सूरदास हिंदी पाठ 1 NCERT Solutions for Class 10th महत्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर
(1.) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर-कवि का नाम- सूरदास, कविता का नाम- पद ।
(2.) गोपियों ने उद्धव को भाग्यशाली क्यों कहा है? क्या वे वास्तव में भाग्यशाली हैं?
उत्तर-पाठ-1 पद सूरदास कक्षा 10 में गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यशाली कहने का कारण यह है कि उद्धव प्रेम रूपीबंधन से बिल्कुल स्वतंत्र हैं और उनका मन किसी के प्रेम में अनुरक्त नहीं है। इस प्रकार उन्हें विरह की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ी है। उद्धव वास्तव में भाग्यशाली नहीं। बल्कि भाग्यहीन हैं क्योंकि वे प्रेम-रस के आनंद से वंचित हैं।
(3.) कमल के पत्ते की कौन-सी विशेषता कविता में बताई गई है ?
उत्तर-कविता में यह बताया गया है कि कमल का पत्ता जल के अंदर रहते हुए भी उससे अछूता ही रहता है, उस पर जल का धब्बा तक नहीं लगता।
(4.) भोली-भाली गोपियों और चींटियों में क्या समानता दर्शायी गई है?
उत्तर-पाठ-1 पद सूरदास कक्षा 10 में भोली-भाली गोपियाँ अपने प्रिय कृष्ण की रूप-माधुरी पर मोहित होकर उनके प्रेम में | इस प्रकार लीन हो गई हैं कि अब कभी भी उनसे विमुख नहीं हो सकतीं। उनकी दशा। उन चींटियों के समान हो गई है जो गुड़ पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती हैं और स्वयं को कभी भी मुक्त नहीं कर पातीं, वहीं अपने प्राण त्याग देती हैं।
(5.) सनेह तगा से अपरस रहना’ सौभाग्य है या दुर्भाग्य ? तर्कपूर्वक सिद्ध करें।
उत्तर-‘सनेह तगा से दूर रहना’ अर्थात प्रेम न कर पाना दुर्भाग्य है, सौभाग्य नहीं। जीवन का वास्तविक आनंद प्रेम में ही है, सांसारिक उपलब्धियों में नहीं।
(6.) उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ?
उत्तर- उद्धव के व्यवहार की तुलना पानी में पड़े रहने वाले कमल के पत्ते से की गई है जल में पड़ी रहने वाली तेल की उस गगरी से की है जिसमें जल घुल-मिल नहीं पाता है।
(7.) इस पद में अप्रत्यक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है ?
उत्तर-उद्धव तुम ज्ञानी हो, नीतिज्ञ हो, प्रेम से विरक्त हो. अत: तम्हारा प्रेम-संदेश हमार लिए निरर्थक है। कृष्ण-प्रेम से अनुरक्त हम गोपियों को इससे शांति नहीं मिलगा।
(8.) गोपियाँ किस कारण अब तक मन की व्यथा सह रही थीं ?
उत्तर-गोपियाँ अब तक अपने मन की व्यथा इसलिए सह रही थीं क्योंकि उन्हें अब तक अपने प्रिय कृष्ण के लौट आने की आशा थी। वे अवधि गिनते हुए आशान्वित थीं।
(9.) ‘जोग-संदेश’ ने उन पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर-उद्धव ने ब्रज में आकर गोपियों को योग का संदेश सुनाया तो गोपियों पर इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई। उनका चित्त शांत होने के स्थान पर विरहाग्नि में जल उठा। वे पहले ही विरह की पीड़ा झेल रही थीं अब उसकी आग में दहक उठीं।
(10.) शिकायतकर्ता अपने मन की बात कह क्यों नही पा रहा ?
उत्तर – शिकायतकर्ता गोपियाँ हैं। वे कृष्ण से अनन्य प्रेम करती हैं। उनके विरह को कृष्ण के सिवा और कोई नहीं समझ सकता। परन्तु कृष्ण निष्ठुर होकर मथुरा में बैठ गए हैं। अन्य किसी को विरह की बात बताई नहीं जा सकती। उसमें संकोच होता है और कोई लाभ भी नहीं होता।
(11.) अब गोपियों की क्या दशा है ?
उत्तर-अब गोपियाँ अधीर हो रही हैं। अब वे भला धैर्य क्यों धारण करें। अब तो मर्यादा का बंधन भी टूटता जा रहा है।
(12.) गोपियाँ क्या व्यथा सह रही थीं और किसके बल पर सह रही थीं ?
उत्तर-गोपियाँ कृष्ण के वियोग की व्यथा सह रही थीं। वे यह सोचकर व्यथा सह रही थीं कि कुछ समय बाद कृष्ण अवश्य ब्रज में लौट आएँगे।
(14.) ‘धार बही’ का क्या आशय है ?
उत्तर-‘धार बही’ का आशय है- योग-संदेश की प्रबल भावना।
(15.) गोपियाँ अपने हरि की तुलना हारिल की लकड़ी से क्यों करती हैं ?
उत्तर-हारिल पक्षी अपने पंजों में एक लकड़ी को दिन-रात थामें रहती है। वह किसी भी सूरत में लकड़ी को छोड़ता नहीं है। यही स्थिति गोपियों की है। वे दिन-रात कृष्ण को मन में बसाए रखती हैं। किसी भी सूरत में उसे भूलती नहीं हैं। इस समानता के कारण गोपियाँ कृष्ण को हारिल की लकड़ी कहती हैं।
(16.) योग की आवश्यकता किन्हें है ? क्यों ?
उत्तर-योग की आवश्यकता उनको है जिनका मन चकरी की तरह चंचल है, स्थिर नहीं है। योग से उनके चंचल मन को नियंत्रण में लाया जा सकता है।
(18.) योग को गोपियाँ किसके समान बताती हैं ? क्यों ?
उत्तर-योग को गोपियाँ कड़वी ककड़ी के समान बताती हैं, क्योंकि यह स्त्रियों के लिए अव्यावहारिक है। इसे निगला नहीं जा सकता।
(19.) गोपियों की मनोदशा का वर्णन करें।
उत्तर-गोपियाँ कृष्ण के प्रेम में पूरी तरह दीवानी हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते, यहाँ तक कि सपने में भी कन्हैया का नाम रटती रहती हैं। उन्हें कृष्ण के बिना संसार में और कुछ अच्छा नहीं लगता। कृष्ण के बदले में दी गई कोई भी चीज कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ प्रतीत होती है।
(20.) ‘जिनके मन चकरी’ से क्या आशय है ?
उत्तर-इसका आशय है- ऐसे लोग जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जो कृष्ण के प्रेम में दीवाने नहीं हैं। जो किसी के प्रति आस्थावान न होकर इधर-उधर भटकते फिरते हैं।
(21.) गोपियाँ दिन-रात, सोते-जागते किस भाव में डूबी रहती हैं ?
उत्तर-गोपियाँ दिन-रात, सोते-जागते कृष्ण के प्रेम में डूबी रहती हैं।
(22.) ‘करुई ककरी’ का उपमान किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
उत्तर-‘करुई ककरी का उपमान योग-संदेश के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(23.) गोपियाँ योग-मार्ग के बारे में क्या कहती हैं ?
उत्तर-गोपियाँ योग-मार्ग को कड़वी ककड़ी के समान ‘कटु’ तथा व्याधि के समान ‘बला’ मानती हैं। उनके लिए योग-मार्ग उन्हें कृष्ण से दूर ले जाने वाला है, इसलिए व्यर्थ है।
(24.) गोपियाँ किस पर क्या कटाक्ष करती हैं ?
उत्तर-गोपियाँ कृष्ण पर कटाक्ष करती हैं कि अब उन्होंने भी राजनीति का पाठ पढ़ लिया है अर्थात् वे राजनीतिज्ञों की तरह व्यवहार करने लगे हैं।
(25.) गोपियाँ अब फिर से क्या पा लेंगी?
उत्तर-गोपियों के दिल को कृष्ण चुराकर ले गए थे। अब वे योग के माध्यम से अपने दिल को पुनः प्राप्त कर लेंगी। वे उसे फिर से पाने में सफल हो जाएँगी।
(26.) गोपियाँ राजधर्म की कौन-सी बात बताती हैं ?
उत्तर-गोपियाँ उद्धव के सम्मुख राजधर्म की बात बताते हुए कहती हैं कि राजधर्म में प्रजा को नहीं सताया जाता । अप्रत्यक्ष रूप से गोपियाँ कृष्ण पर व्यंग्य कर रही हैं कि वे राजधर्म का पालन नहीं कर रहे और हमें (प्रजा को) सता रहे हैं।
(27.) गोपियाँ कृष्ण के व्यवहार में कौन-सी राजनीति देखती हैं ?
उत्तर-गोपियों को कृष्ण का व्यवहार छलपूर्ण प्रतीत होता है। गोपियों की नजरों में कृष्ण सोचते हैं कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे । अर्थात् कृष्ण को गोपियों के पास भी न जाना पड़े और गोपियों की विरह-व्यथा भी शांत हो जाए। इसलिए उन्होंने उनका हितैषी बनते हुए प्रेम-संदेश की बजाय योग-संदेश भेज दिया ताकि गोपियों का मन वहाँ लगा रहे।
(28.) ‘बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए’ में क्या व्यंग्य छिपा है ?
उत्तर-इस पंक्ति में कृष्ण की कूटनीति पर व्यंग्य है। कृष्ण जानते हैं कि गोपियाँ कृष्ण-प्रेम के बिना कुछ नहीं चाहतीं, फिर भी उन्होंने ऊधौ को योग-संदेश देकर भेज दिया। कृष्ण के इस व्यवहार में गोपियों को कृष्ण की नासमझी नजर आती है। इसलिए वे ‘बढ़ी बुद्धि जानी’ कहकर उनका तिरस्कार करती हैं।
आप इन्हें भी अवश्य पढ़ें –
1. पद– सूरदास
2. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – तुलसीदास
3. (I) सवैया, – देव
(II) कवित्त – देव
4. आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
5. उत्साह, अट नहीं रही है – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
6. (I) यह दन्तुरित मुस्कान – नागार्जुन
(II) फसल – नागार्जुन
7. छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर
8.कन्यादान – ऋतुराज
9. संगतकार – मंगलेश डबराल
10 .नेता जी का चश्मा – स्वयं प्रकाश
11 . बालगोविंद भगत – रामवृक्ष बेनीपुरी
12 . लखनवी अंदाज़ – यशपाल
13. मानवीय करुणा की दिव्य चमक – सवेश्वर दयाल सक्सेना
14. एक कहानी यह भी – मन्नू भंडारी
15.स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन – महावीर प्रसाद द्विवेदी
16. नौबतखाने में इबादत – यतीन्द्र मिश्र
17. संस्कृति – भदंत आनंद कौसल्यायन
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