NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 13- मानवीय करुणा की दिव्या चमक क्षितिज भाग-2 हिंदी 2023

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 13- मानवीय करुणा की दिव्य चमक हिंदी

1.फादर बुल्के उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?

उत्तर-फादर बुल्के का व्यक्तित्व देवदार के वृक्ष के समान विशाल था। वे सभी पर अपना वात्सल्य लुटाते थे। उनकी कृपा की छाया उनकी शरण में आने वाले हर व्यक्ति पर छायी रहती थी। वे अपने आशीषों से लोगों को भर देते थे। वे पारिवारिक उत्सवों एवं साहित्यिक गोष्ठियों में शामिल होकर पुरोहित जैसे प्रतीत होते थे। उनकी छाया सुखद एवं शीतल प्रतीत होती थी। यही कारण है कि उनकी उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी। 

2.फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है? 

उत्तर-फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। वे भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि लेते थे। भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर ही वे भारत में बसने चले आए थे। यहीं उन्होंने कोलकाता और इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई की। वे भारतीय सस्कृति के प्रतीक श्री रामचंद्र एवं तलसीदास के अनन्य भक्त थे। उनका जीवन भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप था। उन्हें हिंदी से बेहद लगाव था। उन्हें भारतीय संस्कृति की सभी बातें प्रिय थीं।

3. पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख करें जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है? 

उत्तर-निम्नांकित प्रसंगों से फादर बुल्के का हिंदी-प्रेम प्रकट होता है- 

(क) फादर बुल्के ने हिंदी में एम०ए० किया। 

(ख) प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 में अपना शोध प्रबंध हिंदी में पूरा किया। विषय था- “रामकथा : उत्पत्ति और विकास” 

(ग) ब्लू बर्ड का हिंदी रूपांतर ‘नीलपंछी’ नाम से किया। 

(घ) अंग्रेजी-हिंदी शब्द कोश तैयार किया। 

(ङ) बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया। 

(च) हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए जोरदार पैरवी की। 

मानवीय करुणा की दिव्य चमक।अभ्यास प्रश्न के  उत्तर

4. इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि (व्यक्तित्व) उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखें। 

उत्तर-फादर कामिल बुल्के एक आत्मीय सन्यासी थे। वे ईसाई पादरी थे। इसलिए हमेशा एक सफेद चोगा धारण करते थे। उनका रंग गोरा था। चेहरे पर सफेद झलक देती हुई भूरी दाढ़ी थी। आँखें नीली थीं। बाँहें हमेशा गले लगाने को आतुर दिखती थीं। उनके मन में अपने प्रियजनों और परिचितों के प्रति असीम स्नेह था। वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहारा और करुणा देने में समर्थ थे। 

5. लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है? 

उत्तर-लेखक ने फादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है। फादर के मन में सब परिचितों के प्रति सद्भावना और ममता थी। वे सबके प्रति वात्सल्य भाव रखते थे। वे तरल-हृदय थे। वे कभी किसी से कुछ चाहते नहीं थे, बल्कि देते ही देते थे। वे हर दुख में साथी प्रतीत होते थे और सुख में बड़े-बुजुर्ग की भाँति वात्सल्य देते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुँह में पहला अन्न भी डाला और उसकी मृत्यु पर सांत्वना भी दी। वास्तव में उनका हृदय सदा दूसरों के स्नेह में पिघला रहता था। उस तरलता की चमक उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती थी। 

6. फादर बुल्के ने सन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे? 

उत्तर-फादर बुल्के सच्चे अर्थों में एक भारतीय सन्यासी थे। पर वे परंपरागत सन्यासी से कुछ अलग हटकर थे। उनकी छवि एक भिन्न प्रकार के सन्यासी की थी। परंपरागत सन्यासी भगवे वस्त्र धारण करता है जबकि फादर सफेद चोगा पहनते थे। परंपरागत सन्यासी सक्रिय जीवन को त्यागकर केवल ज्ञानार्जन एवं ज्ञान देने का काम करता है जबकि फादर जीवन-शैली में सन्यासी थे फिर भी समाज के तथा लोगों के पारिवारिक जीवन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहते थे। उन्होंने विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम भी किया। एक सच्चे सन्यासी की तरह उनमें मानवीय गुणों का समावेश था। वे परोपकारी थे। उनके हृदय में दूसरों के लिए करुणा एवं वात्सल्य का भाव था। वे क्रोध नहीं करते थे। उनके व्यक्तित्व में मानवीय करुणा की दिव्य चमक थी। फादर बुल्के अंतिम क्षण तक कर्म करते रहे।

 7. ‘नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है। आशय स्पष्ट करें। 

उत्तर-फादर बुल्के की मृत्यु पर रोने वालों की कोई कमी नहीं थी। उनके जाने पर अनेक लोगों की आँखों में आँसू थे। उन लोगों की गिनती करना उचित न होगा क्योंकि इससे दुःख और भी बढ़ जाएगा। 

8. “फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। आशय स्पष्ट करें। 

उत्तर-फादर बुल्के के मृत्यु के बाद याद करना एक ऐसा ही अनुभव है मानो हम उदास शांत संगीत सुन रहे हों। उनका स्मरण हमें उदास कर जाता है। इस उदासी में भी उनकी याद शांत संगीत की तरह गूंजती रहती है। 

9. आपके विचार में बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?

उत्तर-फादर बुल्के अपनी इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर सन्यासी बनने के लिए अपने धर्मगुरु के पास गए और उनके सामने सन्यास लेने के साथ भारत जाने की इच्छा प्रकट की। यद्यपि उन्होंने इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया कि उनके मन में भारत जाने की इच्छा क्यों उठी? पर हमारे विचार से फादर बुल्के के मन में भारत और हिंदी के बारे में अगाध प्रेम रहा होगा। वे भारत में रहकर भारत की संस्कृति और साहित्य का अध्ययन करना चाहते होंगे। यह बात उनके बाद के व्यवहार और लेखन से सिद्ध भी होकर रही। 

10. बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि- रेम्सचैपल’- इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं ? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ? 

उत्तर-इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति असीम लगाव की भावना अभिव्यक्त होती है। उन्हें अपनी जन्मभूमि की बहुत याद आती थी। वे अपनी जन्मभूमि को बहुत सुंदर मानते थे। हम भी अपनी जन्मभूमि को महान समझते है। इसे हम माता अर्थात् जन्मभूमि माँ के समान मानते हैं। इसे हम स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं एवं पूजते है। 

11. ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?

उत्तर-मानवीय करुणा की दिव्य चमक।अभ्यास प्रश्न के इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। विश्व में सभी मनुष्य बराबर हैं। सभी के साथ करुणापूर्ण व्यवहार करो। अपनी भाषा पर गर्व करना सीखो। दूसरो के सुख-दुःख के साथी बनो। मानवीय करुणा सर्वोपरि है। 

12. ‘परिमल’ के बारे में आप क्या जानते हैं ? 

उत्तर-परिमल’ एक साहित्यिक संस्था है। इसकी शुरुआत इलाहाबाद से हुई। आरंभ में इलाहाबाद के साहित्यिक मित्र इसके सदस्य थे। ये आपस में मिलकर हिंदी कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि पर साहित्यिक गोष्ठियाँ किया करते थे। धीरे-धीरे ये गोष्ठियाँ अखिल भारतीय स्तर की होती चली गईं। संस्था भी आसपास के क्षेत्रों में फैलने लगी। बाद में मुंबई, जौनपुर, मथुरा, पटना तथा कटनी में भी ‘परिमल’ की स्थापना हुई। इलाहाबाद में लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना. डॉ० रघुवंश, फादर कामिल बुल्के और अन्य बड़े साहित्यकार इसमें भाग लिया करते थे। डॉ० बुल्के ने रामकथा : उत्पत्ति और विकास के कुछ अध्याय परिमल में पढ़े थे। 

13. फादर कामिल बुल्के का जीवन किसलिए अनुकरणीय माना जा सकता है? 

उत्तर: फादर कामिल बुल्के का जीवन अनुकरणीय था। वह एक सच्चे इंसान थे। निदोशा उनमें एक अमर आत्मा थी। वह बहुत दयालु, स्नेही, सहकारी और दयालु था। वह जल्दी से उससे संपर्क बना लेता। उसे आत्म-पराजय का जरा भी आभास नहीं था। वे लंबे छायादार वृक्ष थे। उसकी बातों में शांति थी। वह सबका दिल जीतना जानता था।

आप इन्हें भी अवश्य पढ़ें –

1. पद– सूरदास
2. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – तुलसीदास
3. (I) सवैया, – देव
(II) कवित्त – देव
4. आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद
5. उत्साह, अट नहीं रही है – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
6. (I) यह दन्तुरित मुस्कान – नागार्जुन
(II) फसल – नागार्जुन
7. छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर
8.कन्यादान – ऋतुराज
9. संगतकार – मंगलेश डबराल

10 .नेता जी का चश्मा – स्वयं प्रकाश
11 . बालगोविंद भगत – रामवृक्ष बेनीपुरी
12 . लखनवी अंदाज़ – यशपाल
13. मानवीय करुणा की दिव्य चमक – सवेश्वर दयाल सक्सेना
14. एक कहानी यह भी – मन्नू भंडारी
15.स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन – महावीर प्रसाद द्विवेदी
16. नौबतखाने में इबादत – यतीन्द्र मिश्र
17. संस्कृति – भदंत आनंद कौसल्यायन

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