अभ्यास का महत्व निबंध परिचय
करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान के इस निबंध में विशेष कर अभ्यास का महत्व के बारे में ही चर्चा की गई है, इनके चर्चा के मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं , साथ में उनका विस्तार से विश्लेषण भी किया गया है
- प्रस्तावना,
- अभ्यास का महत्व,
- प्रकृति द्वारा प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग,
- सफलता की कुंजी,
- आवश्यक सावधानियाँ,
- उपसंहार।
करत-करत अभ्यास जड़मति हो सुजान/सफलता की कुंजी/अभ्यास का महत्व/बुद्धिजीव/विद्वान
प्रस्तावना-
निरंतर अभ्यास से वस्तुतः जो जड़मति (बुद्धिजीव) हैं, वे सुजान (विद्वान) बन जाते हैं, जो सुजान हैं, वे कुशल बन जाते हैं, जो कुशल हैं, वे अपनी कला में पूर्ण बन जाते हैं एवं जो पूर्ण हैं, उनकी पूर्णता स्थिर हो जाती है। इस प्रकार अभ्यास की कोई सीमा नहीं, उसका कोई अंत नहीं। उसकी महिमा अनंत और परिणाम असीम है। यह सफलता-सार्थकता का कारण और रहस्य है।
अभ्यास का महत्व-
संसार के जन्म से कोई विद्वान या सब-कुछ बन कर नहीं आता। आरंभ में सभी जड़मति अर्थात अबोध होते हैं, अनजान होते है। अन्यास ही उनका विद्वान, कुशल और महान् बनाता है। क्या एडीसन ने पहले ही दिन बिजली के प्रकाश का आविष्कार कर दिया था ? क्या महाकवि कालदास जन्म से ही कवि थे? क्या ध्यानचंद पहले खेल में ही विश्व विजयी बने थे? नहीं । आज संसार में जो लोग विद्या, बल और प्रतिष्ठा के ऊँचे आसनों पर बैठे हैं. कभी वे सर्वथा अबोध, निर्बल और गुनाम व्यक्ति थे। इसके लिए उन्हें श्रम करना पड़ा, लगन से लगातार जुटे रहना पड़ा तथा घोर साधना करनी पड़ी। इसी को अभ्यास कहते है। इस तरह अभ्यास का महत्व के बारे पत्ता चलता है ।
प्रकृति द्वारा प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग-
अभ्यास का महत्व निबंध से मनुष्य को जानना चहिये की प्रकृति द्वारा दी गयी शक्तियों का सदुपयोग करना ही अभ्यास है। इसी से शक्तियों का विकास होता है। भगवान बुद्धि सबको देता है, जो लोग अभ्यास से उसे बढ़ा लेते हैं, वे बुद्धिमान और विद्वान बन जाते हैं सफलताएँ उनके चरण चूमती हैं। आदमी उन्नति का शिखर छू लेता है। जो बुद्धि से काम नहीं लेते, वे बुद्धू के बुद्धू रह जाते हैं। बेकार पड़े लोहे को भी जंग लग जाता है। इसी प्रकार हम जिस अंग से काम नहीं लेते. वह अंग दुर्बल रह जाता है।
सफलता की कुंजी-
अभ्यास ही सफलता की कुंजी है। केवल शिक्षा में ही नहीं, जीवन के किसी भी क्षेत्र में जो सफलता चाहता है, उसके लिए अभ्यास आवश्यक है। काम को बार-बार करने से अभ्यासी व्यक्ति का हाथ सध जाता है। वह वस्तु के सूक्ष्म से सूक्ष्म गुण-दोषों को पहचान सकता है। अभ्यास कर्ता के अनुभव में वृद्धि होती है, उसकी कमियाँ दूर हो जाती हैं और वह शनैः-शनैः पूर्णता की ओर अग्रसर होता है। कल का जड़मति आज अपने कला-कौशल का विशेषज्ञ बन जाता है। फिर संसार की सब विभूतियाँ उसके चरण चूमने लगती हैं। सतत् अभ्यास करते रहने वालों ने ही संसार में कुछ कर दिखाया है। इनसे उनकी अभ्यास का महत्त्व झलकता है ।
आवश्यक सावधानियाँ-
अभ्यास का महत्व के इस निबंध के माध्यम से यदि कोई भी आदमी का अभ्यास अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। अच्छा अभ्यास पड़ गया तो जीवन सँवर जाएगा। बुरा अभ्यास पड़ गया, तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा। अतः हमें यत्न करना चाहिए कि बुरे अभ्यास से बचें। शीघ्रता, जल्दबाजी या उतावलापन अभ्यास का सबसे बड़ा शत्रु है। आज बीज बोकर कल फसल नहीं काटी जा सकती। मीठा फल पाने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। अभ्यास करते हुए सहज पके सो मीठा होय के महामंत्र को भुलाना नहीं चाहिए।
उपसंहार-
अभ्यास मस्तिष्क को एक सुनियोजित प्रशिक्षण दे देता है। और मानव हर स्थिति में तदनुकूल आचरण करता है। हम सुजान से जड़मति न बनें, अपितु जड़मति से सुजान बनें। निरंतर अभ्यास का यही चरम लक्ष्य है। व्यक्ति समाज और राष्ट्र आदि सभी प्रगति और विकास का यही मूल मंत्र है। अत: विशेष रूप से सावधान रह कर प्रयत्न और अभ्यास की आदत डालनी चाहिए। समय खोना, जीवन को नष्ट करना है।