झारखंड में हॉकी पाठ 11लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history के इस पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से पाठ से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर इस पोस्ट पर कवर किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, और पिछले कई परीक्षाओं में भी इस तरह के प्रश्न पूछे जा चुके हैं, इसलिए इस पोस्ट को कृपया करके पूरा अवश्य करें तो चलिए शुरू करते हैं-
झारखंड में हॉकी पाठ 11 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history
झारखंड में हॉकी पाठ 11अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1 कलकतिया स्टिक कैसे तैयार होती थी ?
उत्तर-हॉकी स्टिक और गेंद की अनुपलब्धता की समस्या का समाधान बिल्कुल देशी ढंग से निकाला गया। फैक्ट्री निर्मित हॉकी स्टिक को उन दिनों छोटानागपुर के अनेक गाँवों में कलकतिया स्टिक भी कहा जाता था।
जो उत्साही आदिवासी खिलाड़ी कलकतिया स्टिक जुगाड़ नहीं कर पाते। वे बाँस और पेड़ की टहनियों को काटकर उन्हें हॉकी स्टिक की शक्ल दे देते थे। बाँस एवं केंद की लकड़ी का प्रयोग स्टिक बनाने में ज्यादा किया जाता था। बाँस की गोलाकार जड़ों को छिलकर गेंद की शक्ल दे दी जाती थी।
बाँस का पौधा स्वाभाविक रूप से जड़ के पास हॉकी स्टिक की तरह कुछ टेढ़ा हुआ करता था, जबकि केंद की डाली को आग पर सेंककर उसके आगे के हिस्से को टेड़ा करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाता था और उसके शेष हिस्से को रस्सी से खींचकर झुकाते हुए किसी भारी पत्थर या अन्य सहारे से बांध दिया जाता था।
लगभग तीन सप्ताह तक ऐसी स्थिति में रखने में वह डाली हॉकी स्टिक की तरह टेढ़ी हो जाया करती थी। इसे कलकतिया स्टिक कहा जाता था।
2 एस्ट्रो टर्फ स्टेडियम में हॉकी क्यों खेला जाता है ?
उत्तर-एस्ट्रो टर्फ स्टेडियम में हॉकी इसलिए खेला जाता है क्योंकि एस्ट्रो टर्फ मैदान पूरी तरह समतल होता है।
इसमें कृत्रिम घास उगाई जाती है, जो साधारण घास की अपेक्षा अधिक मजबूत होती है, जिससे खेल के दौरान यह उखड़ती नही है, और एक बड़ी समस्या जैसे खेल के दौरान मैदान में गड्ढे होने की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। इस मैदान पर दिन और रात दोनों समय मैच खेले जा सकते है।
3 1928 से 1956 तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी टीम के दबदबे को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है ?
उत्तर-स्वतंत्रता से पहले ही भारतीय हॉकी टीम ने सफलता की नई इबारत लिखना प्रारंभ कर दिया। एम्सटर्डम ऑलंपिक (1928) से मैक्सिकों ओलंपिक (1968) तक भारत ने हॉकी में आठ स्वर्ण पदक जीते।
1928 से 1956 तक भारत ने हॉकी के लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर पूरे दुनिया में अपनी धाक जमा दी। इस दौरान लगातार 24 मैचों में अपना विजयी अभियान जारी रखा। भारतीय टीम का प्रभाव विश्व हॉकी में कितना था, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि इस अवधि में भारत ने विपक्षी टीमों के खिलाफ 178 गोल दागे जबकि भारत के विरुद्ध 24 मैचों में विपक्षी टीमें सिर्फ 7 गोल ही दाग सकी।
हॉकी टीम को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान दिलाने में ध्यानचंद, रूप सिंह, बलबीर सिंह, धनराज पिल्लै, जफर इकबाल, माइकल किंडो, दिलीप तिर्की व मोहम्मद शाहिद सहित अन्य लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। मेजर ध्यानचंद की प्रतिभा के कायल जर्मन तानाशाह हिटलर भी थे।
4 मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता था?
उत्तर-मेजर ध्यानचंद ने पहले ही मैच में 6 गोल, ओलम्पिक खेलों में 35 गोल और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 400 गोलों का कीर्तिमान बनाया। मेजर ध्यानचंद जब हॉकी लेकर मैदान में उतरते थे
तो गेंद इस तरह उनकी स्टिक से चिपक जाती थी जैसे वे किसी जादू की स्टिक से हॉकी खेल रहे हों।
हॉलैंड में एक मैच के दौरान हॉकी में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई। जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनकी प्रतिभा के कायल थे।
उनकी अगुवाई में ओलंपिक कॉमनवेल्थ, एशिया कप में भारतीय हॉकी ने अभूतपूर्व सफलता पायी। ध्यानचंद ने हॉकी में जो कीर्तिमान बनाएँ, उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका है। इसलिए मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था।
5 आपके अनुसार बरियातू हॉकी सेंटर को इतनी सफलता क्यों प्राप्त हुई ?
उत्तर-1974-75 में तत्कालीन बिहार सरकार ने राज्य खेल परिषद्का गठन किया और भारतीय खेल प्राधिकरण के संयुक्त प्रयास से प्रतिभाओं को तलाशने की योजना बनाई। इसके तहत 12-13 साल की प्रतिभाओं का चयन कर योग्य शिक्षकों के देखरेख में उनको प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया गया।
इसी क्रम में राँची स्थित राजकीय बालिका उच्च विद्यालय, बरियातू में आदिवासी लड़कियों के लिए हॉकी प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई। खेल मंत्रालय ने हॉकी प्रशिक्षक कुलवंत सिंह को राँची भेजा। जिसके बाद महिला हॉकी के इतिहास में सुनहरे पन्ने एक के बाद एक जुड़ते चले गए।
इस हॉकी सेंटर ने देश को 50 से ज्यादा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी दिये। ऐसी उपलब्धि संभवतः देश के किसी अन्य विद्यालय या प्रशिक्षण केन्द्र के खाते में दर्ज नहीं है। ncert note