झारखंड में हॉकी पाठ 11दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history के इस पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से पाठ से जुड़े सभी महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर इस पोस्ट पर कवर किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है,और पिछले कई परीक्षाओं में भी इस तरह के प्रश्न पूछे जा चुके हैं, इसलिए इस पोस्ट को कृपया करके पूरा अवश्य करें तो चलिए शुरू करते हैं-
झारखंड में हॉकी पाठ 11 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history
झारखंड में हॉकी पाठ 11अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1 महिला हॉकी में जनजातीय युवतियों का वर्चस्व क्यों है ?
उत्तर-महिला हॉकी की चर्चा के बिना झारखंड के हॉकी को नहीं समझा जा सकता है। लगभग चार दशक में राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड की जनजातीय महिला हॉकी खिलाड़ियों ने अपनी सशक्त मौजूदगी का अहसास कराया है।
शारीरिक रूप से मजबूत और प्रतिभा की धनी झारखंड की जनजातीय खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखरने के लिए केन्द्र सरकार ने भी दिलचस्पी दिखाई। खेल मंत्रालय ने हॉकी प्रशिक्षक कुलवंत सिंह को राँची भेजा।
जिसके बाद महिला हॉकी के इतिहास में सुनहरे पन्ने एक के बाद एक जुड़ते चले गए। कुलवंत सिंह के मार्गदर्शन में पहले सत्र के लिए 33 लड़कियों का चयन किया गया। खिलाड़ियों की नैसर्गिक प्रतिभा और कुलवंत सिंह के कठिन परिश्रम का फल जल्द देखने को मिला।
1976 में ही अखिल भारतीय ग्रामीण खेलकूद में झारखंड की टीम उपविजेता बनी। 1978 ई० में बिहार खेल प्राधिकरण का गठन किया गया। जिसके तहत कई अन्य खेलों को भी प्रोत्साहन दिया गया।
साल 1983 झारखंड की महिला हॉकी के लिए अविस्मरणीय वर्ष रहा। झारखंड की सावित्री पूर्ति का चयन रूस जानेवाली भारतीय टीम में कर लिया गया। भारतीय टीम में स्थान हासिल करनेवाली व बिहार-झारखंड की पहली महिला खिलाड़ी बनीं। टीम में नौवीं कक्षा की छात्रा अलमा गुड़िया को सुरक्षित खिलाड़ी के रूप में चुन लिया गया था। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज भी अनवरत जारी है।
2 हॉकी खिलाडियों के लिए जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी किस प्रकार प्रेरणास्रोत रहा है?
उत्तर-हॉकी खिलाडियों के लिए जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी एक प्रेरणास्रोत है। राँची के संत पॉल उच्च विद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनकी हॉकी की प्रतिभा को कैनन कॉसग्रेव ने पहचाना।
जयपाल सिंह मुंडा बाद में उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड चले गए। शिक्षा प्राप्त करने के दौरान इंग्लैंड में भी हॉकी का जलवा दिखाया। उनकी प्रतिभा के कारण ही ब्रिटिश प्रशासन
ने 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम का कप्तान नियुक्त किया।
जयपाल सिंह ने शानदार नेतृत्व में ही देश ने पहली बार हॉकी का स्वर्ण पदक हासिल किया। इस सफलता के साथ जयपाल सिंह मुंडा की पहचान राष्ट्रीय हीरो के रूप में हुई। झारखंड के खिलाड़ियों के लिए वे एक प्रेरणास्रोत बन गए।
वास्तव में जयपाल सिंह की इन उपलब्धियों ने झारखंड के खिलाड़ियों को आत्मबल दिया कि वे भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं। जयपाल सिंह के बाद कई आदिवासी खिलाड़ियों ने देश का प्रतिनिधित्व किया। JAC BOARD