ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 8th

ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 8th के इस ब्लॉग पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी को पाठ से जुड़े दीर्घ उत्तरीय प्रश्न जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, और पिछले कई परीक्षाओं में इस तरह के प्रश्न पूछे जा चुके हैं, उन सभी प्रश्नों के उत्तर इस ब्लॉग पोस्ट में आप सभी को पढ़ने के लिए मिलेगा इसलिए इस पोस्ट को कृपया करके पूरा पढ़ें ताकि आपको परीक्षा की तैयारी करने में और भी आसानी हो सके-

ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 8th

ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1 अंग्रेजों ने कृषि में सुधार की आवश्यकता क्यों महसूस की?
उत्तर-कंपनी के ज्यादातर अफसरों को यह लगने लगा था कि जमीन में निवेश करना और खेती में सुधार लाना जरूरी है। यह काम किस तरह किया जा सकता था? इस सवाल पर दो दशकों तक बहस चली।

आखिरकार कंपनी ने 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इस बंदोबस्त की शर्तों के हिसाब से राजाओं और तालुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई। उन्हें मा किसानों से लगान वसूलने और कंपनी को राजस्व चुकाने का जिम्मा सौंपा गया।

उनकी ओर से चुकाई जाने वाली राशि | स्थायी रूप से तय कर दी गई थी। इसका मतलब यह था कि भविष्य में कभी भी उसमें इजाफा नहीं किया जाना था। अंग्रेजों को लगता था कि इससे उन्हें नियमित रूप से राजस्व मिलता ।

रहेगा और जमींदारों को जमीन में सुधार के लिए खर्च करने का प्रोत्साहन मिलेगा। उन्हें लगता था कि क्योंकि राज्य की । ओर से राजस्व की माँग बढ़ने वाली नहीं थी इसलिए जमींदार बढ़ते उत्पादन से फायदे में रहेंगे।

2 स्थायी बंदोबस्ती के मुख्य प्रावधान क्या थे ?
उत्तर-स्थायी बंदोबस्त को 22 मार्च, 1773 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में शुरू किया गया।

इसकी प्रमुख प्रावधान निम्नांकित है-
(क) जमींदारों व लगान वसूल करने वालों को पहले की भाँति । अब केवल मात्र मालगुजारी वसूल करने वाले कर्मचारी के स्थान पर उन्हें हमेशा के लिए जमीन का मालिक
बना दिया तथा स्थायी तौर पर एक ऐसी राशि तय कर दी गई जो वे सरकार को दे सकें। जमींदारी के स्वामित्व के अधिकार को पैतृक व हस्तांतरणीय बना दिया गया।

(ख) किसानों को मात्र रैयतों का नीचा दर्जा दिया गया तथा उनसे भूमि संबंधी अन्य परंपरागत अधिकारों को छीन लिया गया।

(ग) अगर किसी जमींदार से प्राप्त लगान की रकम, कृषि-सुधार अथवा प्रसार या किसानों से अधिक रकम उगाहने के कारण राजस्व की रकम बढ़ जाती तो जमींदार को बढ़ी हुई रकम रखने का अधिकार दे दिया गया।

(घ) स्थायी बंदोबस्त से सबसे अधिक हानियाँ किसानों को हुई। इस व्यवस्था ने उनसे परंपरागत भूमि संबंधी व अन्य अधिकार छीन लिए। इस व्यवस्था के कारण बंगाल, बिहार, मद्रास के उत्तरी जिलों, वाराणसी जिले इत्यादि के किसान पूर्णतया जमींदारों की दया पर निर्भर हो गए।

वे अपनी जमीन पर ही मजदूरों के रूप में काम करने वालों की स्थिति में आ गए। उनका सरकार के साथ कोई सीधा संबंध नहीं रह गया। उन्हें जमींदारों के अनेक प्रकार के अत्याचार व शोषण सहना पड़ा।

ग्रामीण जीवन एवं समाज पाठ 3 अभ्यास प्रश्नोत्तर (हिस्ट्री) इतिहास क्लास 8th

3 किसान नील विद्रोह के लिए क्यों बाध्य हुए ?
उत्तर-नील की खेती निज और रैयत दो प्रकार की होती थी। बागान मालिकों ने फैक्ट्री के आस-पास की भूमि पट्टे पर लेने की कोशिश की और वहाँ के किसानों को जमीन से हटवा दिया।

रैयती व्यवस्था के तहत रैयतों को बागान मालिक के साथ एक अनुबंध करना पड़ता था जिसकी शर्त के अनुसार रैयत अपने जमीन के एक चौथाई भाग पर नील की खेती करेगा और
उत्पादन बागान मालिक को ही बेचेगा। बागान मालिक रैयतों को कर्ज देता था।

उत्पादन की कम कीमत देता था जिससे किसान कर्ज के चंगुल से नहीं निकल पाता था। नील की खेती से खेत अनुपजाऊ हो जाती थी। उसमें दूसरी फसल नहीं हो पाती थी

लेकिन अंग्रेज किसानों को नील की खेती करने के लिए बाध्य करता था। किसानों का शोषण बढ़ता जा रहा था। अतः किसान नील विद्रोह के लिए बाध्य हो गए थे।

4 नील विद्रोह का वर्णन करें।
उत्तर-औपनिवेशिक शासन में किसानों ने अंग्रेजी शासन एवं जमींदारों
के खिलाफ कई विद्रोह किये। इसमें नील विद्रोह पहला किसान विद्रोह था। यह आंदोलन बंगाल में नदिया जिले के गोविंदपुर गाँव से शुरू हुआ था।

यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें हिंदू एवं मुसलमानों दोनों ने बराबर का हिस्सा लिया। मार्च 1859 ई० में सैकड़ों रैयतों ने नील की खेती करने और बागान मालिकों को लगान चुकाने से इनकार कर दिया।

नील की फैक्ट्रियों को निशाना बनाया गया। बागान मालिकों के लिए काम करनेवालों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। लगान वसूल करनेवाले गुमाश्ता की पिटाई की गयी। कई जमींदारों ने भी इस आंदोलन में रैयतों का साथ दिया।

वे किसानों को एकजुट करने के लिए गाँव-गाँव घूमें। 1860 ई० की शुरुआत तक यह आंदोलन बंगाल के उन जिलों तक फैल गया, जहाँ नील की खेती होती थी। विद्रोह के फैलाव में बुद्धिजीवी वर्ग ने भी अपनीभूमिका निभायी उन्होंने रैयतों की दुर्दशा और बागान मालिकों के अत्याचार पर प्रकाश डाला।

5 महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
उत्तर-गाँव के एक-एक खेत का अनुमानित राजस्व को जोड़कर हर गाँव या ग्राम समूह (महाल) से वसूल होनेवाले राजस्व का हिसाब लगाया जाता था।

इस राजस्व को स्थायी रूप से तय नहीं किया गया। बल्कि उसमें समय-समय पर संशोधनों की गुंजाइश रखी गई। राजस्व इकट्ठा करने और उसे कंपनी को अदा करने का जिम्मा जमींदार के बजाय गाँव के मुखिया सौंप दिया गया।

इस व्यवस्था को महालवारी बंदोबस्त का नाम दिया गया। स्थायी बंदोबस्त में राजाओं और तालुकदारों को जमींदारी को रूप में मान्यता दी गई उन्हें किसानों से लगान वसूलने और कंपनी को राजस्व चुकाने का जिम्मा सौंपा गया उनकी ओर से चुकाई जाने वाली राशि तय कर दी गई थी इसका मतलब था कि भविष्य में कभी भी उस में इजाफा नहीं किया जाना था।Jac Board