जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 लघु उतरीय प्रश्नोत्तर | Ncert Solution For Class 10th Civics के इस पोस्ट पर आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है , इस पोस्ट में पाठ से जुड़े हर महत्वपूर्ण सवाल जो कई बार पिछले परीक्षा में पूछे जा चुके है उस तरह की सभी प्रश्नो को कवर किया गया है, इस लिए इस पोस्ट को जरूर अध्ययन करें l
जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 लघु उतरीय प्रश्नोत्तर | Ncert Solution For Class 10th Civics
जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
1 दबाव-समूह क्या है? कुछ उदाहरण बताएँ ।
उत्तर-जब कुछ लोग अपनी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन बनाते हैं तो ऐसे संगठनों को दबाव-समूह या हित-समूह का नाम दिया जाता है। ऐसे लोगों का उद्देश्य राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी का नहीं होता।
शायद ऐसे लोगों को राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सेदारी की इच्छा ही न हो अथवा उन्हें ऐसा करने की कोई जरूरत महसूस न होती हो या उनके पास किसी जरूरी कौशल का अभाव हो। ऐसे दबाव-समूह थोड़े समय के लिए अस्तित्व में आते हैं और अपने सीमित उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।
जैसे वोलीविया में सन् 2000 में पानी के प्रश्न पर कुछ लोगों का दबाव-समूह बना और उनके आंदोलन करने पर सरकार को आंदोलनकारियों की सभी मांग माननी पड़ी और जैसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ किया गया करार रद्द कर दिया वैसे ही यह जल के प्रश्न पर बनाया गया दबाव-समूह भी समाप्त हो गया।
किसी भी लोकतंत्रीय सरकार में ऐसे दबाव-समूह बनते रहते हैं। कभी वकील
लोग, कभी अध्यापक लोग और कभी दुकानदार अपने अपने हितों की पूर्ति के लिए दबाव-समूह बनाते रहते हैं।
राजनीतिक दलों और सरकार पर दबाव डालकर अपने हितों के पक्ष में प्रदर्शन भी करते हैं और जैसे ही मांगे पूरी हो जाती है वे कपूर की भांति गायब हो जाते हैं। निरंतर बने रहना न उनकी इच्छा होती है और न उनका सामर्थ्य।
2 दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-दबाव समूह और आंदोलन राजनीति पर कई तरह से असर डालते हैं-
(क) विभिन्न दबाव-समूह और आंदोलन अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए जनता की सहानुभूति और समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे में वे बैठकें करते हैं, जुलूस निकालते हैं और सूचना अभियान चलाते हैं।
केवल जनता को ही नहीं ऐसे दबाव-समूह मीडिया को भी प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं ताकि मीडिया उनके मसलों पर ध्यान दे और ऐसे में सरकार और जनता का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो।
(ख) ऐसे दबाव-समूह केवल सूचना अभियान तक ही सीमित नहीं रहते वरन् वे धरना भी देते हैं हड़तालें भी करते हैं और सरकारी कामकाज में बाधा भी डालते हैं ताकि सरकार उनकी मांगों को जल्दी से माने, बहुत से मजदूर संगठन, कर्मचारी संघ आदि ऐसे ही तरीकों को अपनाते हैं ताकि सरकार पर दबाव बना रहे।
(ग) कुछ दबाव समूह अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने और सरकार को जगाने और सोए हुए को जगाने के लिए महंगे विज्ञापनों का सहारा भी लेते हैं।
(घ) कुछ दबाव-समूह विपक्ष के नेताओं को भी अपने पक्ष में लाने का प्रयत्न करते हैं और उनसे भाषणबाजी तक करवा देते हैं। अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल भी इन दबाव-समूह को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं।
3 दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है ?
उत्तर-दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में अंतर-
(क) दबाव-समूह अराजनीतिक संगठन है। वह किसी विशेष वर्ग के समान हितों को लेकर चलता है। जबकि, राजनीतिक दल एक राजनीतिक संगठन होता है जो समाज के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है।
(ख) दबाव समूह का उद्देश्य सार्वजनिक नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करना होता है, जबकि राजनीतिक दल का मुख्य उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना होता है।
(ग) दबाव समूह एक छोटा संगठन होता है, जबकि राजनीतिक दल एक बड़ा संगठन।
(घ) दबाव समूह का उद्देश्य किसी खास समूह या मुद्दे तक सीमित होता है जबकि राजनीतिक दलों का उद्देश्य व्यापक होता है।
(ङ) दबाव समूह सरकार के गठन के बाद अपना कार्य करते हैं जबकि राजनीतिक दल सरकार बनने के पहले तथा बाद दोनों स्थितियों में कार्य करते हैं।
4 दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्चों का स्वरूप कैसा होता है? वर्णन करें।
उत्तर-दबाव-समूह और राजनीतिक दलों का आपसी रिश्ता कई स्वरूप धारण कर सकता है। जिनमें से कुछ प्रत्यक्ष होते हैं तो कुछ अप्रत्यक्ष-
(क) कुछ मामलों में दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए जाते हैं। जिनका नेतृत्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में राजनीतिक दलों के नेता ही संभालते हैं।
(ख) कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करते हैं, जैसे भारत के अधिकतर मजदूर संगठन, छात्र संगठन आदि।
ऐसे संगठन या तो राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं या फिर उनकी समबन्धता राजनीतिक दलों से होती हैं ध्यान से देखने से पता चल जाता है कि ऐसे दबाव-समूह की बागडोर किसी न किसी राजनीतिक दल के किसी न किसी नेता या कार्यकर्ता के हाथ में होती है।
(ग) कई बार दबाव समूह और आदोलन स्वयं राजनीतिक दल का एक रूप अख्तियार कर लेते हैं। जैसे- असम में विदेशियों के विरुद्ध चलाया गया ‘असमय आंदोलन’ अपनी समाप्ति पर ‘असम गणपरिषद’ के नाम से राजनीतिक दल में परिणत हो गया।
इसी प्रकार तमिलनाडु के दो प्रमुख राजनीतिक दलों डी० एम० के० और ए० आई० ए० डी० एम० के० की जड़े वहाँ शुरू हुए समाज सुधार आंदोलन में ढूँढी जा सकती है।
(घ) कई बार कुछ दबाव-समूहों और आंदोलनों और राजनीतिक दलों में टकरावों की स्थिति बनी रहती है। विरोधी पक्ष लेने पर भी इन दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों में आपसी संवाद होता रहता है और आपसी बातचीत चलती रहती है।
(ङ) कई बार राजनीतिक दलों के नेता इन दबाव-समूहों से ही आते हैं, जैसे- भारतीय जनता पार्टी के नेता अरुण जेटली कभी छात्र संगठन के पदाधिकारी थे। इसी प्रकार अजय माकन भी छात्र संघ के नेता थे।
जन-संघर्ष और आंदोलन पाठ 5 से सबंधित लघु उतरीय प्रश्न के उत्तर
5 नेपाल और बोलिविया के आंदोलन किस बात में आपस में मिलते-जुलते हैं? अथवा, सिद्ध करें कि लोकतंत्र की जीवंतता से जन-संघर्ष का अन्दरूनी रिश्ता है।
उत्तर-नेपाल और बोलिविया के जन-आंदोलन में काफी मेल पाया जाता है। दोनों स्थानों पर लोगों ने सरकार के अन्यायपूर्ण कार्यों के विरुद्ध जन-संघर्ष शुरू किया। नेपाल में आंदोलन प्रजातंत्र की बहाली के लिए छेड़ा गया।
वहाँ सात पार्टियों ने सप्तदलीय गठबन्धन बनाया और वहाँ के शासक ज्ञानेन्द्र को मजबूर किया कि वह संसद को बहाल करे, सर्वदलीय सरकार का निर्माण करे और नई संविधान सभा का गठन करे।
बोलिविया में यह आंदोलन श्रमिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं द्वारा बनाए गए एक गठबन्धन ने शुरू किया ताकि पानी का ठेका किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को न दिया जाए।
ऐसे में पानी चार गुणा महंगा हो गया और गरीब लोगों के प्यासे मरने की नौबत आ गई। अंत में यह आंदोलन नेपाल की भाँति सफल हुआ और सरकार के अन्यायपूर्ण कार्य का अंत हुआ।
6 किस तरह से वर्गीय हित समूह भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर-यह पूर्णतः सत्य है कि एक वर्गीय हित समूहें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोईभी अकेला समूह पूरे समाज पर नहीं छा सकता है।
यदि एक समूह सरकार पर दबाव डालता है कि सरकारी नीतियाँ उसके पक्ष में हों तो दूसरा समूह प्रयास करता है कि नीतियों पहले समूह के अनुकूल न हों।
ऐसे स्थिति में सरकार सोचने के लिए विवश हो जाती है कि विभिन्न वर्गों के लोगों की क्या इच्छा है ? इससे एक शक्ति संतुलन तथा आपस में लड़ने वाले समूहों को शांत किया जा सकता है।jac board