जलवायु पाठ 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर |Ncert Solution For Class 9th Geography

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जलवायु पाठ 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 9th

जलवायु पाठ 4 अति लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
जलवायु पाठ 4 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
जलवायु पाठ 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर

1 भारत की जलवायु दशाओं की क्षेत्रीय विषमताओं को उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाएँ।
उत्तर-(क) मरुस्थलीय क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु में तापमान कभी-कभी 55°C तक चढ़ जाता है। जबकि, कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में द्रास स्थान का शीत ऋतु में तापमान -45°C तक गिर जाता है।

(ख) केरल और अंडमान तथा निकोबार जैसे समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्रों में दैनिक ताप परिसर लगभग 7°C के आसपास होता है जबकि यह मरुस्थलों में 50°C (दिन का 50°C और रात का हिमांक बिंदु तक) तक होता है।

(ग) ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेड़ (मरुस्थल) का तापमान जब 50°C होता है तो उसी दिन गुलमार्ग (कश्मीर) का तापमान 20°C होता है।

(घ) इसी प्रकार शीत ऋतु में जिस दिन कारगिल का तापमान -45°C होता है तो उसी दिन तिरूवंतपुरम (त्रिवेन्द्रम) का तापमान 20°C होता है।

(ङ) सामान्यतः तटीय क्षेत्र तापमान एवं स्थल पवनों और सागरीय पवनों में कमअंतर होने के कारण सम जलवायु का अनुभव करते हैं जबकि दूसरी ओर आंतरिक क्षेत्र अपनी स्थिति के कारण बहुत अधिक मौसमी अंतर अनुभव करते हैं।

(च) भारत में एक ओर ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ अत्यन्त कम वर्षा होती है और दूसरी ओर ऐसे स्थान भी हैं जहाँ संसार की सर्वाधिक वर्षा होती है। भारत में वर्षा और हिमपात दोनों ही होते हैं।

(छ) मेघालय में 400 से०मी० से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है जबकि पश्चिमी राजस्थान और लद्दाख में 10 से०मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।

(ज) पश्चिमी विक्षोभ भारत के उत्तरी भाग में शीत ऋतु में उपयोगी वर्षा लाते हैं जबकि उसी समय पूर्वी तट पर विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात टकराते हैं।

जलवायु पाठ 4 NCERT Solutions, (कक्षा नवीं), सामाजिक विज्ञान

2 मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर-मानसून की अभिक्रिया- भारत की अवस्थिति दक्षिण एशिया क्षेत्र में होने के कारण यह मानसूनी किस्म की जलवायु के अन्तर्गत आता है।

इस क्षेत्र को 20° उ० और 200 द० के बीच का उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कहा जाता है। भारत का उत्तरी आधा भाग उपोष्ण और दक्षिणी आधा भाग (अर्थात् प्रायद्वीपीय हिस्सा) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है।

मानसून वर्ष में ऋतु चक्र के अनुसार पवन दिशा के विपर्यय का संकेत देता है। वायु की दिशा में विपर्यय निम्नांकित कारणों से होता है-

(क) ग्रीष्म में प्रचंड गर्मी पड़ने के कारण अरब सागर में उष्णता कम होने लगती है।

(ख) गंगा का मैदान भूमध्य रेखा के लगभग 5० उ० में स्थित मानसून द्रोणी में पड़ता है। यहाँ उपोष्ण और उष्णकटिबंधीय पेटियाँ मिलती हैं और मानसून की अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी शाखाएँ मिलकर भारी वर्षा करती हैं।

(ग) उत्तर भारत में निम्न दाब की दशाएँ बनने के कारण हिन्द महासागर के ऊपर 200 द० अक्षांश में उच्च दाब क्षेत्र बनता है।

(घ) तिब्बत के पठार पर तीक्ष्ण गर्मी पड़ने से खड़ी वायु धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। इसके कारण समुद्र तल से एक किमी० ऊँचाई पर पठार के ऊपर उच्च दाब बनता है जो मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा को अपनी ओर खींचता है।

(ङ) पश्चिमी जेट धाराएँ हिमालय के उत्तर की ओर चली जाती हैं तथा उनका स्थान भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट धाराएँ ले लेती हैं।

(च) उच्च दाब क्षेत्र सामान्यता उष्णकटिबंधीय पूर्व-दक्षिण प्रशांत महासागर में और निम्न दाब क्षेत्र पूर्व-दक्षिण हिन्द महासागर में बनता हैं हालाँकि किसी वर्ष में इसकी ठीक उल्टी स्थिति बनती है।

यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन है। दाब का अंतर ताहिती और डार्विन के ऊपर की स्थिति से मापा जाता है। यदि यह अंतर नगण्य है तो यह अनुमान लगाया जाता है कि मानसून देर से उठेगा और वर्षा भी औसत से कम होगी।

दाब में परिवर्तन की यह दशा महासागर की गर्म धारा एल निनो के कारण बनती है जो पेरु तट की ठंडी धारा का स्थान प्रत्येक दो से लेकर पाँच वर्ष के समयांतराल में लेती है।

यह चमत्कार या घटना एल निनो दक्षिणी दोलन या ई० एन० एस० ओ० कहलाती है। यह धारा दिसंबर माह में क्रिसमस के अवसर पर बहती है।

यह व्यवस्था भारत में भिन्न-भिन्न वर्षा कराती है। यही कारण है कि हम मासिनराम और चेरापूँजी में भारी वर्षा, पश्चिमी और पूर्वी घाटों की पवनाविमुख ढालों, राजस्थान, गुजरात के कुछ हिस्सों में अल्प वर्षा तथा राजस्थान के थार मरुस्थल में अति अल्प या वर्षा हीनता की स्थिति देखते हैं। मालवाबार तट और तमिलनाडु (कोरोमंडल तट) में शीतकालीन वर्षा होती है।

जलवायु पाठ 4 NCERT Solutions for Class 9th भूगोल

3 शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-किसी समय बिंदु (एक दिन या एक सप्ताह) तथा स्थान की मौसम दशाओं का अवधारण वहाँ का तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता और वृष्टि करती है।

मौसम को आमतौर पर ठंडा, गर्म, शांत, तूफानी, मेघाच्छन्न, साफ, गीला या शुष्क कहा जाता है। वस्तुतः वायुमंडल की दशाएँ ही मौसम हैं।

ग्रीष्म में गर्म मौसम, शीत ऋतु में ठंडा और तूफानी, वर्षा ऋतु में आर्द्र तथा अक्टूबर-नवंबर एवं मार्च-अप्रैल में सुशीतल मौसम रहता है। मौसम एक दिन में कई बार बदल सकता है।

जुलाई माह में हम एक क्षण में तीव्र उमस और गर्मी महसूस करते हैं और दूसरे ही क्षण अचानक साफ आकाश बादलों से घिर जाता है और तेज पवनों एवं तड़ित की गरज के साथ वर्षा होने लगती है।

ऐसी ही आश्चर्यजनक घटना उस समय होती है जब चक्रवाती दाब महानदी, कावेरी, गोदावरी और कृष्णा नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में विनाशलीला करता है।

शीत ऋतु की विशेषताएँ-
(क) नवंबर माह के मध्य से आरंभ होकर उत्तरी भारत में यह फरवरी माह तक रहती है। बीच के महीने अर्थात् दिसंबर और जनवरी सर्वाधिक सर्द महीने होते हैं।

(ख) इस अवधि में तापमान दक्षिण में उत्तर की ओर धीरे-धीरे गिरने लगता है। जैसे- चेन्नई में 20 से 25°C तथा उत्तर भारत में 100 से 15°C रहता है।

(ग) दिन में अपेक्षाकृत कम और रात को अधिक ठंड होती है। दिन छोटे और रातें बढ़ने लगती हैं।

(घ) इस अवधि (शीत ऋतु) में समूचे देश में भूमि शुष्क रहती है और केवल तमिलनाडु तट (कोरोमंडल तट सहित) में शीतकालीन भारी वर्षा होती है।

(ङ) तटीय क्षेत्रों में इन दिनों सामान्य तापमान रहता है जबकि उत्तरी भागों में भीषण ठंड पड़ती है। दिसंबर के मध्य में जब दिल्ली के लोग ऊनी कपड़ों से लद जाते हैं तो कोलकाता के लोग कुर्ता पहनकर ही सुबह की सैर का मजा लेते हैं।

जलवायु पाठ 4 एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान – (भूगोल)

4 भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-मानसून वे पवनें हैं जो समय-समय पर अपनी दिशा पूर्णतया बदल लेती हैं इसी के परिणामस्वरूप ऋतुओं का चक्र चलता है।

अतः मानसूनी विभिन्नता के आधार पर वर्ष को चार ऋतुओं में बाँटा गया है-

(क) शीत ऋतु- दिसंबर से फरवरी ।

(ख) ग्रीष्म ऋतु- मार्च से मई।

(ग) दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी ऋतु (वर्षा ऋतु)- जून से सितंबर ।

(घ) शरद ऋतु या पीछे हटती हुई दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी ऋतु (पीछे हटते मानसून की ऋतु)- अक्टूबर से नवंबर ।

मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ-

(क) भारत में पवनविमुख ढालों, वृष्टि छाया क्षेत्रों और थार जैसे मरुस्थली क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी स्थानों में पर्याप्त मानसूनी वर्षा होती है।

(ख) इस ऋतु के आरंभ में पश्चिमी घाटों की पवनाभिमुख ढालें भारी वर्षा प्राप्त करती हैं (अर्थात् 250 सेमी० से अधिक)।

(ग) वृष्टि छाया क्षेत्र, दक्कनी पठार और मध्य प्रदेश के कुछ भागों में भी स्वल्प वर्षा होती है।

(घ) देश के उत्तर-पूर्वी भाग में सर्वाधिक वर्षा होती है। जैसे- मासिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा ।

(ङ) भारत का मानसून विराम लेता है अर्थात् वर्षाहीन अवकाश के साथ रुकता है। वर्षा के स्थानिक वितरण का अवधारण करने वाली मानसूनी द्रोणी के कारण ही ऐसा होता है।

(च) उष्णकटिबंधीय दाब की बारंबारता और गहनता/तीव्रता के कारण भी मानसूनी वर्षा की मात्रा और दिशा बदलती है।

(छ) उत्तरी मैदानों के ऊपर मानसूनी द्रोणी का बनना वहाँ अक्टूबर-नवम्बर मास में भारी वर्षा का कारण है जबकि इस दौरान सामान्यता शीतकालीन शुष्क मौसम की दशाएँ बनती हैं।

5 भारत के जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
उत्तर-जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों को मानव द्वारा निर्मित राजनीतिक सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता क्योंकि किसी स्थान की जलवायु अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम निम्नांकित हैं-

(क) स्थिति- भारत लगभग 8° उत्तर से 37° उत्तर अक्षांशों के बीच स्थित है। कर्क वृत इसे लगभग दो बराबर भागों में विभाजित करता है। इससे दक्षिणी भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है, जबकि उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबंध में स्थित है।

(ख) ऊँचाई- उत्तर में ऊँची पर्वत श्रृंखला एक प्रभावी जलवायु विभाजक का कार्य करती है। ये मध्य एशिया में उत्पन्न होने वाली ठंडी और बर्फीली पवनों से भारतीय उपमहाद्वीप की रक्षा करती हैं

इन पर्वत श्रृंखलाओं के कारण ही भारत जाड़ों में अपेक्षाकृत गर्म जलवायु का अनुभव करता है

(ग) समुद्र से दूरी- प्रायद्वीपीय पठार के त्रिभुजाकार रूप के कारण इसे घेरे हुए महासागर तथा सागरों का समकारी प्रभाव इसके एक बहुत बड़े क्षेत्र पर पड़ता है।

उत्तरी मैदान प्रायः महाद्वीपीय स्थिति वाले हैं क्योंकि वे समुद्र से दूर हैं।

(घ) वायुदाब तथा पवनें- भारतीय ऋतु दशाएँ मुख्यतः वायुदाब के वितरण तथा धरातलीय पवनों, ऊपरी वायुमंडल की वायुधाराओं, पश्चिमी विक्षोभों के जाड़े में आगमन तथा दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित होती हैं।

हिन्द महासागर में केन्द्रित उच्चदाब क्षेत्र से पवनों उत्तर के निम्नदाब के क्षेत्र की ओर चलती हैं। ये हवाएँ समुद्र की ओर से आने के कारण आर्द्र होती हैं और देश के अधिकतर भाग में वर्षण करती हैं।

(ङ) ऊपरी वायुधाराएँ- वायुमंडल ऊपरी भागों में वायुधाराओं का प्रतिरूप बहुत ही भिन्न होता है। ये वायुधाराएँ भारत में वितरित करने में सहायक होते हैं। Ncert Solution