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Jaiv Prakram Utsarjan Prashn Uttar | जैव प्रक्रम उत्सर्जन | पाठ-6 Class 10th Science
जैव प्रक्रम उत्सर्जन लघु उत्तरीय प्रश्न पाठ-6 क्लास 10th में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए परीक्षा उपयोगी प्रश्नों के उत्तर –
पाठ 6 जैव प्रक्रम ( पोषण, श्वसन, वहन, उत्सर्जन ) अभ्यास प्रश्न के देखें
पाठ 6 जैव प्रक्रम ( पोषण, श्वसन, वहन, उत्सर्जन ) अति लघु उत्तरीय प्रश्न के देखें
पाठ 6 जैव प्रक्रम लघु उत्तरीय प्रश्न के देखें –
⇒ पोषण
⇒ श्वसन, वहन
⇒ उत्सर्जन
1. उत्सर्जन किसे कहते है ?
उत्तर- वह जैव प्रक्रम जिसमें हानिकारक उपापचयी वर्त्य पदार्थों (जैसे- यूरिया,अमोनिया तथा जल) का निष्कासन होता है. उत्सर्जन कहलाता है।
2. अपोहन (डायलिसिस) किसे कहते है?
उत्तर- वह प्रक्रिया जिसके द्वारा रक्त में उपस्थित पदार्थों के छोटे अणु छान लिये जाते है परन्तु प्रोटीन जैसे बड़े अणु नहीं छन पाते, अपोहन कहलाती है।
3. डायलिसिस का नियम क्या है?
उत्तर- अपोहन में सेल्युलोज की नलिका विलयन के टंकी से जुड़ी रहती है। जब रूरि प्रवाहित होता है तो अशुद्धि टंकी में आ जाती है। स्वच्छ रूधिर रोगी के शारीर में पुनः प्रविष्ट करा दिया जाता है।
4. नेफॉन (वृक्का) किसे कहते है ? उत्सर्जन में इसकी क्या भूमिका है ?
उत्तर-गुदों के भीतर असंख्य वृक्क नलिकाएँ होती है जिन्हें अंग्रेजी में नेफॉन कहते हैं।
उत्सर्जन में नेगॉन की भूमिका- वृक्क नलिकाएँ मूत्र छनन क्रिया से सीधे संबंधित होती हैं। वृक्क नलिका की रचना और कार्य का विवरण इस प्रकार है- प्रत्येक नेफोन का एक सिरा कप जैसी रचना बनाता है जिसे बोमेन कैप्सूल कहते हैं। इसके अन्दर रक्त केशिकाओं का जाल होता है जिसे केशिका गुच्छ कहते हैं।
कोशिका गुच्छ में उच्च रक्त चाप के कारण उत्सर्जी पदार्थ छन कर बोमेन कैप्सूल में चले जाते हैं और वहाँ से कुंडलित नाल और हेनेल्स लूप संग्राहक नलिका में पहुंचते हैं। संग्राहक नलिका मूत्राशय तक जाती है। इस प्रकार छने हुए उत्सर्जी पदार्थ मूत्राशय में पहुंचते हैं जहाँ उन्हें समय-समय पर त्याग दिया जाता है।
उत्सर्जन लघु उत्तरीय प्रश्न पाठ-6
5 मानव उत्सर्जन तन्त्र का वर्णन करें।
उत्तर-गुर्दे मूत्र-वाहिनी. मूत्राशय और मूत्र-उत्सर्जन नली को सम्मिलित रूप से उत्सर्जन तन्त्र कहते हैं।
मानव के शरीर में उदर भाग में पीछे की ओर दो गुर्दे होते हैं। प्रत्येक गुर्दे मूत्र वाहिनी नलिका द्वारा मूत्राशय से संबन्धित होता हैं। मूत्राशय एक थैलीनुमा रचना होती है जिसमें मूत्र इक्छा रहता है। मूत्राशय जनन नलिका द्वारा बाहर खुलता है। इसी नलिका से होकर शरीर से बाहर मूत्र का निष्कासन किया जाता है।
जैव प्रक्रम उत्सर्जन लघु उत्तरीय प्रश्न पाठ-6 Class 10th (Jaiv Prakram Utsarjan Prashn Uttar)
6. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है ?
उत्तर-मूत्र बनने की मात्रा का नियमन उत्सर्जी पदार्थों के सांदण, जल की मात्रा तंत्रिकीय आवेश तथा उत्सर्जी पदार्थों की प्रकृति द्वारा होता है।
7 मानव वृक्क में मूत्र छनन क्रिया को समझाएँ।
उत्तर-मानव वृक्क की वृक्कनालिकाओं के बोमैन कैप्सूल में रक्त की छनन क्रिया होती है। वहाँ से रक्त के उत्सर्जी पदार्थ जल के साथ संग्राहक नलिका से होते हुए मूत्राशय तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार मानव वृक्क में मूत्र-छनन क्रिया सम्पन्न होती है।
7. पौधों में उत्सर्जन किस प्रकार होता है ?
उत्तर-पौधों में विभिन्न पदार्थों का उत्सर्जन निम्न प्रकार से होता है-
(i) प्रकाश संशलेषण की प्रक्रिया में उत्पन्न ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्सर्जी उत्पाद हैं जिनका उत्सर्जन पत्तियों में उपस्थित रघों द्वारा होता है।
(ii) पौधों द्वारा प्राप्त किए गए अतिरिक्त जल का उत्सर्जन वाष्पोत्सर्जन द्वारा होता है। इसमें रंघ्र मुख्य भूमिका निभाते हैं।
(ii) पत्तों के गिरने तथा छाल के उतरने से संग्रहीत उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन होता है।
8. अमीबा में खाद्यों के अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण तथा अनपचे भोजन का उत्सर्जन कैसे होता है?
उत्तर-अमीबा में खाद्यों के अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण तथा अनपचे भोजन का उत्सर्जन-
(i) अमीबा अपनी सतह पर अंगुलियों जैसे अस्थायी प्रवर्ध बनाता है। इन्हें कूटपाद कहते है। कूटपाद भोजन को घेरकर एक खाद्य-धानी बनाते हैं और स्वयं गायब हो जाते हैं।
(ii) कोशिका द्रव्य में उपस्थित पाचक इन्जाइम रिक्तिका या खाद्य-धानी में प्रवेश करते हैं और भोजन को पचाते हैं। खाद्य-धानी कोशिका में भ्रमण करती रहती है और बचे हुए भोजन के कण विसरित होकर कोशिका द्रव्य में मिलते रहते हैं।
(iii) रिक्तिका घूमते-घूमते कोशिका की सतह से चिपककर फट जाती है। तब अनपचा भोजन कोशिका से बाहर निकल जाता है।
10 चयनात्मक पुनरावशोषण क्या है ? यह क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-बोमैन कैप्सूल के कोशिका गुच्छ में उच्च रक्तचाप के कारण बहुत से पदार्थ छनकर संग्राहक नलिका में चले जाते हैं। इन पदार्थों में कुछ आवश्यक पोषक पदार्थ भी होते हैं। जब छने हुए पदार्थ जल के साथ आगे बढ़ते हैं तब हेनेल्स लूप एवं कुंडलित नाल से इन पदार्थों को फिर से वापस शोषित कर लिया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को चयनात्मक पुनरावशोषण कहा जाता है।चयनात्मक पुनरावशोषण अनिवार्य प्रक्रम है क्योंकि ऐसा नहीं होने पर बहुत से पोषण तत्व रक्त से छनकर शरीर से बाहर चले जाएँगे और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।( ncert)