जाति व्यवस्था की चुनौतियाँ पाठ 9 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर Ncert Solution For Class 8th history के इस post में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस post के माध्यम से पाठ से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न के उत्तर को कवर किया गया है, जो विद्यार्थी के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इस तरह के प्रश्न पिछले कई Exams में भी पूछे जा चुके हैं, उन सभी प्रश्नों को इस पोस्ट पर कवर किया गया है, इसलिए इस पोस्ट को जरूर पूरा पढ़ें तो चलिए शुरू करते हैं-
जाति व्यवस्था की चुनौतियाँ पाठ 9 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history
जाति व्यवस्था की चुनौतियाँ पाठ 9 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
जाति व्यवस्था की चुनौतियाँ पाठ 9 उत्तरीय प्रश्नोत्तर
जाति व्यवस्था की चुनौतियाँ पाठ 9 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1 राजा राममोहन राय ने जाति व्यवस्था की आलोचना के लिए किन माध्यमों का सहारा लिया ?
उत्तर-राजा राममोहन राय ने जाति व्यवस्था की आलोचना करने वाले एक पुराने बौद्ध ग्रंथ का अनुवाद किया। प्रार्थना समाज ने सभी जातियों की आध्यात्मिक समानता पर बल दिया।
यह संगठन भक्ति परंपरा का समर्थक था। जाति उन्मूलन के लिए काम करने के लिए बम्बई में 1840 में परमहंस मंडली का गठन किया गया। इन समाज सुधारकों और संगठनों के
सदस्यों में कई लोग ऊँची जातियों के थे, लेकिन उन्होंने निचली जातियों के लिए आंदोलन किये।
2 रामास्वामी नायकर ने कांग्रेस पार्टी क्यों छोड़ दी?
उत्तर-मध्यवर्गीय परिवार में पले-बढ़े ई० वी० रामास्वामी नायकर अपने प्रारंभिक जीवन में संन्यासी थे। वे लोगों के बीच ‘पेरियार’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने संस्कृत शास्त्रों का गंभीरता से अध्ययन किया।
बाद में वे कांग्रेस के सदस्य भी बन गये। राष्ट्रवादियों द्वारा आयोजित एक दावत में उन्होंने देखा कि वहाँ बैठने के लिए जातियों के हिसाब से अलग-अलग इंतजाम किया हुआ है। इस बात से नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
3 ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव फुले) गुलामगीरी पुस्तक के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते थे ?
उत्तर-1873 ई० में ज्योतिराव फुले ने ‘गुलामगीरी’ नामक एक पुस्तक लिखी। इससे एक दशक पहले अमेरिका गृह युद्ध हो चुका था। जिसके बाद अमेरिका में दास प्रथा समाप्त कर दी गई थी।
यह पुस्तक उन्होंने उन सभी अमेरिकियों को समर्पित किया, जिन्होंने गुलामों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया। इस तरह उन्होंने भारत की निम्न जातियों और अमेरिका के काले गुलामों की दुर्दशा को समान बताने का प्रयास किया।
4 स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की आध्यात्मिक शक्ति को कैसे प्रस्तुत किया ?
उत्तर-स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। 1893 ई० में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने भाषण दिया और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
उन्होंने भारत की आध्यात्मिक शक्ति को समस्त विश्व के सामने रखा। न्यूयॉर्क में उन्होंने भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार के लिए वेदांत सोसाइटी का गठन किया। पेरिस में
1900 ई० में आयोजित द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में भी उन्होंने भाग लिया।
स्वामी विवेकानंद ने मूर्तिपूजा, बहुदेववाद आदि का समर्थ नहीं किया। उनके अनुसार ईश्वर दोनों है। उन्हें नव हिंदू जागरण का संस्थापक कहा जाता है।
5 दयानंद सरस्वती ने शिक्षा पर विशेष जोर क्यों दिया ?
उत्तर-उत्तर भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार का सबसे प्रभावशाली आंदोलन दयानंद सरस्वती ने शुरू किया था। 1875 ई० में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की और 1877 ई० में लाहौर को अपना मुख्यालय बनाया। आर्य समाज के सदस्य दस सिद्धांतों का अनुसरण करते थे।
इनमें प्रथम है- वेदों का अध्ययन। शेष सिद्धांत सद्गुण और नैतिकता से संबंधित है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार, स्त्रियों के उत्थान तथा जाति प्रथा के बंधनों को कमजोर करने में दयानंद और आर्य समाज के विचारों का काफी गहरा प्रभाव पड़ा।
शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा। उन्होंने भारत के पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण अशिक्षा को माना था।
6 डिरोजियो एवं यंग बंगाल मूवमेंट पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-हेनरी लुइस विवियन डिरोजियो कलकत्ता स्थित हिंदू कॉलेज में एक अध्यापक थे। उन्होंने 1820 के दशक से अपने प्रगतिशील क्रांतिकारी विचारों द्वारा अपने विद्यार्थियों एवं नवयुवकों को प्रोत्साहित किया तथा उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे सभी अधिकारियों से अपनी जिज्ञासा को तृप्त करने के लिए उनसे प्रश्न पूछे।
उनके युवा शिष्यों ने युवा बंगाल आंदोलन के कार्यकर्ताओं के रूप में पुरानी परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों पर धावा बोल दिया। उन्होंने डिरोजियो के मार्गदर्शन में नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ अनुभवों एवं विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की माँग की।
शीघ्र ही डिरोजियो की हैजे के कारण मौत हो गयी। कुछ समय के बाद यंग बंगाल आंदोलन भी धीमा पड़ गया।
7 ‘सिंह सभा आंदोलन’ पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-सिंह सभा आंदोलन-सिखों में भी समाज धर्म सुधार संगठन बनाये गये। प्रथम सिंह सभा की स्थापना 1873 में अमृतसर तथा दूसरी सिंह सभा की स्थापना 1879 में लाहौर में की
गई। इन सभाओं ने सिख धर्म में सुधार लाने की कोशिश की।
ये सभाएँ सिखों को सभी तरह के अंधविश्वासों से छुटकारा दिलाना चाहती थी। जाति भेदभाव एवं उन रीति-रिवाजों को छोड़ने के लिए प्रयास किये गये जो उनकी दृष्टि में गैर-सिख रीति-रिवाज, विश्वास या परम्पराएँ थीं।
उन्होंने सिखों के बीच शिक्षा को प्रोत्साहित किया, उन्होंने आधुनिक ढंग की शिक्षा को, सिख सिद्धांतों एवं उपदेशों के साथ समन्वित करने की कोशिश की।
8 ‘सैय्यद अहमद खान एवं अलीगढ़ आंदोलन’ पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-सैय्यद अहमद खान एवं अलीगढ़ आंदोलन-1875 में सैय्यद अहमद खान ने मोहम्मद एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की अलीगढ़ में स्थापना की, जो कालांतर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कहलाया।
इस संस्था ने मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा दी, जिसमें पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान भी शामिल था। अलीगढ आंदोलन ने अनुवाद कार्यों के माध्यम से उर्दू भाषी लोगों में नया ज्ञान, नया दृष्टिकोण तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रचार-प्रसार किया। संक्षेप में अलीगढ़ आंदोलन शिक्षा का मुसलमानों पर असाधारण प्रभाव पड़ा।JAC Bord