ब्रिटिश काल में शिक्षा पाठ 7 लघु उत्तरीय प्रश्न ,Ncert Solution For Class 8th History के इस पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी को पाठ से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न के उत्तर एक साथ मिलने वाले हैं, जिन्हें अध्ययन करके आप परीक्षा की तैयारी और अच्छी तरीका से कर सकते हैं, इसमें जितने भी कवर किए गए क्वेश्चन पिछले कई परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं, और उम्मीद है आने वाले परीक्षा में भी इस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं |
ब्रिटिश काल में शिक्षा पाठ 7 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर Ncert Solution For Class 8th
ब्रिटिश काल में शिक्षा पाठ 7 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
ब्रिटिश काल में शिक्षा पाठ 7 लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
ब्रिटिश काल में शिक्षा पाठ 7 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
1 विलियम जोन्स व कोलब्रुक भारत के प्राचीन ग्रंथों के – अध्ययन पर जोर क्यों देते थे ?
उत्तर-विलियम जोन्स व कोलबुक भारत के प्रति एक खास तरह का रवैया रखते थे। उनका मानना था कि भारत की सभ्यता 10 प्राचीन काल में अपने वैभव के शिखर पर थी,
परंतु बाद में समझने के लिए प्राचीन काल में लिखे गये पवित्र कानूनी ग्रथों को खोजना और समझना बहुत जरूरी था उन्हें विश्वास कि ये परियोजना न केवल अंग्रेजों को भारतीय संस्कृति सीखने में मदद देगी, बल्कि भारतीयों को भी अपनी विरासत को दोबारा अपनाने और अतीत के लुप्त वैभव को समझने में मदद देगी।
2 कंपनी अंग्रेजों को पश्चिमी ज्ञान के बदले भारतीय ज्ञान को प्रोत्साहन क्यों देना चाहती थी ?
उत्तर-कंपनी के बहुत सारे अधिकारियों ने दलील दी कि अंग्रेजों को पश्चिमी ज्ञान की बजाय भारतीय ज्ञान को ही प्रोत्साहन देना चाहिए।
वे चाहते थे कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित करने और संस्कृत व फारसी साहित्य व काव्य पढ़ाने के लिए संस्थानों की स्थापना की जाए। इन अधिकारियों का ये भी मानना था कि हिन्दुओं और मुसलमानों को वही पढ़ाया जाना चाहिए जिससे वे पहले ही परिचित हैं और जिसे वे आदर और महत्त्व देते हैं।
उन्हें अनजाने विषयों की शिक्षा न दी जाए। इन अफसरों की राय में, केवल तभी अंग्रेज ‘देशी जनता का दिल जीत सकते हैं; केवल तभी अजनबी शासक अपनी प्रजा से आदर की उम्मीद कर सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए 1781 में अरबी, फारसी, इस्लामिक कानून के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता में एक मदरसा खोला गया।
1791 में बनारस में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की गई ताकि वहाँ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा दी जा सके और देश का शासन चलाने में मदद मिले। इसी कारण कंपनी अंग्रेजों को पश्चिमी ज्ञान के बदले भारतीय ज्ञान को प्रोत्साहन देना चाहती थी।
3 वुड के नीति पत्र में क्या प्रावधान थे?
उत्तर-कंपनी के नियंत्रक मंडल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड के नीति पत्र को भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा के नाम से जाना जाता है। इस दस्तावेज में भारत की भावी शिक्षा हेतु एक वृहद योजना प्रस्तुत की गई थी।
इस दस्तावेज में यूरोपीय शिक्षा का व्यावहारिक लाभ आर्थिक क्षेत्र में बताया गया था। उसके मुताबिक यूरोपीय शिक्षा के माध्यम से भारतीयों को व्यापार और वाणिज्य के विस्तार से होने वाली लाभों और देश के संसाधनों के विकास का महत्व समझाने में मदद मिलेगी।
4 अंग्रेजी भाषा को लेकर मैकॉले के क्या विचार थे?
उत्तर-गहन ऊर्जा और आवेशपूर्वक मैकॉले ने अंग्रेजी भाषा सिखाने की जरूरत पर जोर दिया। उनका मानना था कि अंग्रेजी के ज्ञान से भारतीयों को दुनिया की श्रेष्ठतम साहित्यिक कृतियों
को पढ़ने का मौका मिलेगा;
यहाँ के लोग पश्चिमी विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में हुए विकास से अवगत हो पाएँगे। इस प्रकार, उनका कहना था कि अंग्रेजी पढ़ाना लोगों को सभ्य बनाने, उनकी रुचियों, मूल्यों और संस्कृति को बदलने का रास्ता हो सकता है।
5 जेम्स मिल प्राच्यवादी के घोर आलोचक क्यों थे ?
उत्तर-उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से ही बहुत सारे अंग्रेज अफसर शिक्षा के प्राच्यवादी दृष्टिकोण की आलोचना करने लगे थे। उनका कहना था कि पूर्वी समाजों का ज्ञान त्रुटियों से भरा हुआ और अवैज्ञानिक है। उनके मुताबिक, पूर्वी साहित्य अगंभीर और सतही था।
इसीलिए उन्होंने दलील दी कि अंग्रेजों को अरबी और संस्कृत भाषा व साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा देने पर इतना खर्चा नहीं करना चाहिए। प्राच्यवादियों पर हमला करने वालों में जेम्स मिल प्रमुख थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेजों को देशी जनता को खुश करने और उसका दिल जीतने के लिए जनता की इच्छा के हिसाब से या उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा नहीं देनी चाहिए।
उनकी राय में शिक्षा के जरिए उपयोगी और व्यावहारिक चीजों का ज्ञान दिया जाना चाहिए। इसलिए भारतीयों को पूर्वी समाजों के काव्य और धार्मिक साहित्य की बजाय ये पढ़ाया जाना चाहिए कि पश्चिम ने किस तरह कीm वैज्ञानिक और तकनीकी सफलताएँ हासिल कर ली हैं।
6 महात्मा गाँधी बच्चों को हस्तकलाएँ क्यों सीखाना चाहते थे?
उत्तर-महात्मा गाँधी की धारणा थी कि बच्चों को स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों पर ही जोर दिया जाता है जबकि जीवन अनुभवों और व्यावहारिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है। उनका मानना था कि सिर्फ साक्षरता ही काफी नहीं है। व्यक्ति की आत्मा और दिमाग विकसित होना चाहिए।
पढ़ना, लिखना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है बल्कि व्यक्ति को हुनर सीखने के लिए हाथ से काम करना पड़ता है जिससे यह सीखा जा सकता है कि चीजें किस तरह काम करती है। और ऐसा करने में व्यक्ति का मस्तिष्क और समझने की क्षमता का विकास होता है। अतः महात्मा गाँधी बच्चों को हस्तकला सीखाना चाहते थे।
7 भारत में ब्रिटिश शिक्षा के दो प्रमुख उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर भारत में ब्रिटिश शिक्षा के दो प्रमुख उद्देश्य-
(क) ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि भारतीयों को केवल रंग एवं रूप में ही भारतीय रहने दिया जाये तथा उनके विचार, रुचि, सोच एवं मूल्यों की प्राथमिकता पूर्णतया पश्चिमी या अंग्रेजों जैसी ही हो। कंपनी किसी सीमा तक इस उद्देश्य में सफल भी रही।
(ख) इस शिक्षा का उद्देश्य यह था कि कंपनी के कार्यालयों में बाबुओं की एक लंबी फौज तैयार हो सके जो कम वेतन पर भी बड़े फक्र से अपनी सेवाएँ देने के लिए तैयार हो
8 शांतिनिकेतन की स्थापना की क्या पृष्ठभूमि थी ?
उत्तर-जब गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर एक बालक थे तो वे स्कूल जाने से घृणा किया करते थे। उन्होंने स्कूल को एक दम घोंटने वाला तथा दमनकारी संस्था पाया।
उन्हें स्कूल एक जेल जैसा दिखाई देता था क्योंकि वहाँ वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकता था जैसा करना उन्हें सुहाना लगता था। इसलिए जब अन्य बच्चे अपने अध्यापकों को ध्यान से सुनते थे, तो टैगोर का मस्तिष्क कहीं और घूम रहा होता था। विद्यालय के दिनों में टैगोर को जो अनुभव कलकत्ता में मिला था उसने उनके विचारों को शिक्षा के बारे में बदल दिया।
बड़ा होने पर, वह चाहते थे कि वे एक स्कूल की स्थापना करें जहाँ बच्चा खुश रहे, जहाँ वह मुक्त हो तथा कुछ रचनात्मक कार्य कर सके।जहाँ वह अपने विचारों एवं इच्छाओं को अपनी इच्छानुसार अभिव्यक्त कर सके।
इसलिए सन् 1901 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कलकत्ता के पास ही शांतिनिकेतन की स्थापना की ताकि वह शिक्षा संबंधी अपने दर्शन, विचार एवं संस्कारों को व्यावहारिक जामा पहना सकें।jac boad