भारत में राष्ट्रवाद पाठ-3 परिचय
भारत में राष्ट्रवाद लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर इतिहास पाठ -3 के इस ब्लॉग में आप सभी विद्यार्थियों के लिए पाठ से जुड़ी परीक्षा उपयोगी सभी महत्वपूर्ण लघु उतरिये प्रश्नो का विस्तार से विश्लेषण किया गया। आप सभी विद्यार्थियों से मेरी उम्मीद है की इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद बहुत सारे प्रश्नों के हल आसानी से समझने में आपको काफी मदद मिलेगी ।
लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
(1.)उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी ?
उतर-वियतनाम और दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी ।औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे। उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। लेकिन हर वर्ग और समूह पर उपनिवेशवाद का असर एक जैसा नहीं था। उनके अनुभव भी अलग थे और स्वतंत्रता के मायने भी भिन्न थे। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस ने इन समूहों को इकट्ठा करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया। परंतु इस एकता में टकराव के बिंदु भी निहित थे।
(2.) पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर-सबसे पहली बात यह है कि विश्वयुद्ध ने एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफा हुआ। इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। 1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुना हो चुकी थीं, जिसके कारण आम लोगों के हालात बहुत खराब हो गए थे। गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था। 1918-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया। उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
(3.) भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में क्यों थे ?
उत्तर-भारत में राष्ट्रवाद पाठ -3 में रॉलेट एक्ट, 1919 ई०- 1919 ई० के गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट में दी गई रियायतों से कॉग्रेस असन्तुष्ट थी और समस्त भारत में निराशा का वातावरण छाया हुआ था। सरकार को डर था, कि अवश्य कोई नया आंदोलन प्रारंभ होगा। इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बंद कर सकती थी और उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था। इस एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया और सरकारी दमन- इस एक्ट के विरुद्ध सभी भारतीय एक साथ खड़े हो गए।
उन्होंने इसे ‘काले बिल का नाम दिया। यह राष्ट्रीय सम्मान पर ऐसा धब्बा था । जिसे भारतीयों के लिए सहना बड़ा कठिन था। ऐसे कठिन समय में महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर संभाली और इसे नवीन कार्यक्रम और कार्यविधि प्रदान की। उन्होंने इस एक्ट के विरुद्ध सत्य और अहिंसा के आधार पर सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। दिल्ली में एक भीड़ पर पुलिस ने गोली चला दी जिसमें पाँच व्यक्ति मारे गए और 20 घायल हुए। इसके विरोध में बड़े-बड़े शहरों में हड़ताले हुईं और दुकानें बन्द कर दी गई। अनेक लोगों को सरकार ने पकड़ कर जेल में डाल दिया। महात्मा गाँधी ने भी जब वास्तविक स्थिति का अध्ययन करने के लिए दिल्ली और पंजाब की ओर जाने का प्रयत्न किया तो उन्हें भी पकड़ लिया गया।
पाठ-3 इतिहास क्लास 10th
(4.)गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने को क्यों फैसला किया ?
उत्तर-असहयोग आंदोलन अपने पूरे जोरों पर चल रहा था। जब महात्मा गाँधी ने 1922 ई० को उसे वापस ले लिया। इस आंदोलन के वापस लिए जाने के निम्नांकित कारण थे:- (क) महात्मा गाँधी अहिंसा और शांति के पूर्ण समर्थक थे, इसलिए जब उन्हें यह सूचना मिली कि उत्तेजित भीड़ ने चौरी चौरा के पुलिस थाने को आग लगा कर 22 सिपाहियों की हत्या कर डाली है तो वह परेशान हो उठे। उन्हें अब विश्वास न रहा कि वे लोगों को शान्त रख सकेंगे। ऐसे में उन्होंने असहयोग आंदोलन को वापस ले लेना ही उचित समझा।
(ख) दूसरे वे सोचने लगे कि यदि लोग हिंसक हो जाएँगे तो अंग्रेजी सरकार भी उत्तेजित हो उठेगी और आतंक का राज्य स्थापित हो जाएगा और अनेक निर्दोष लोग मारे जाएँगे। महात्मा गाँधी जलियांवाला बाग जैसे हत्याकांड की पुनरावृत्ति नहीं करना चाहते थे इसलिए 1922 ई० में उन्होंने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।
(5.) सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है ?
उत्तर-सत्याग्रह सच्चाई और अहिंसा का एक ढंग है, जिसे अपनाकर महात्मा गांधी ने दक्षिणी अफ्रीका की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था बाद में यही पद्धति उन्होंने भारत की ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कार्यों का विरोध करने में अपनाई। यदि आपका उद्देश्य सच्चा और न्यायपूर्ण है तो आपको अंत में सफलता अवश्य मिलेगी, ऐसा महात्मा गाँधी का विचार था। प्रतिरोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।
बाद में सत्याग्रह का यही सिद्धांत का प्रयोग उन्होंने अनेक स्थानों पर किया जैसे:- 1916 में बिहार के चंपारन इलाके में दमनकारी बागान मालिकों के विरुद्ध किसानों को बचाने में , 1917 ई० में गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों के फसल खराब हो जाने के कारण सरकारी करों से बचने में और 1918 में गुजरात के अहमदाबाद के सूती कपडा के कारखानों के मजदूरों को उचित वेतन दिलाने आदि में किया ,परतु उन्हें हर बार सफलता प्राप्त हुई।
(6.) जलियांवाला बाग हत्याकांड पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर- भारत में राष्ट्रवाद पाठ -3 के जरिये विस्तार से जानेंगे की जलियांवाला बाग हत्याकांड– रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गाँधी और सत्यपाल किचलू गिरफ्तार हो चुके थे। इस गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए13 अप्रैल 1919 ई० के वैशाखी पर्व के दिन अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक जनसभा का आयोजन किया गया था। अमृतसर के सैनिक प्रशासक जनरल डायर ने इस सभा को अवैध घोषित कर दिया था, परंतु सभा हुई थी। तब उसने वहाँ पर गोली चलवाई थी, इसमें सैकड़ों व्यक्ति मौत का शिकार हो गए थे। इस हत्याकांड के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने एक हंटर आयोग स्थापित किया था, और उस आयोग की रिर्पोट के बाद जनरल डायर को अनेक सम्मान दिए थे। इससे महात्मा गाँधी असहयोगी हो गए थे, और उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाने कानिश्चय किया था।
(7.) साइमन कमीशन पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-साइमन कमीशन– 1919 ई० के एक्ट के अनुसार यह निर्णय हुआ था कि प्रत्येक दस वर्ष के बाद सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैंड से एक कमीशन भारत आएगा। इसलिए 1928 ई० में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग भारत आया था। इस आयोग में एक भी भारतीय न था, जबकि इसका उद्देश्य भारत के हितों की देखभाल करना था, अतः भारतीयों ने इसका स्थान-स्थान पर बहिष्कार किया। जहाँ भी यह आयोग गया, वहाँ पर भारतीयों ने इसका काले झंडे दिखाकर ” साइमनवापस जाओ ” के नारों के साथ बहिष्कार किया।
अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारिय का दमन बड़ी क्रूरता से किया। जब यह आयोग लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपत राय ने प्रदर्शन कर रहे जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस के भीषण लाठी प्रहार से लालाजी को कई गहरी चोटें लगीं जिनके फलस्वरूप बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसी तरह लखनऊ में जुलूस का नेतृत्व पंडित जवाहर लाल नेहरू कर रह थे उन पर भी जब लाठी से प्रहार होने लगा, तो गोविंद बल्लभ पंत ने तुरंत अपने सिर उनके सिर पर रख दिया जिसके फलस्वरूप पंतजी को पक्षाघात हो गए ” और जीवन भर वे अपनी गर्दन सीधी रखकर न बैठ पाए।
भारत में राष्ट्रवाद पाठ-3 सामाजिक विज्ञानं क्लास 10
(8.) भारत माता की छवि और जर्मेनिया की छवि की तुलना करें।
उत्तर-भारत में राष्ट्रवाद के माद्यम से आज जानकारी हासिल करेंगे की 1948 ई० में जर्मन चित्रकार फिलिप वेट ने अपने राष्ट्र को जर्मेनिया के रूप में प्रस्तत किया। वे बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने दिखाई गई हैं क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है।भारत में भी अबनिंद्रनाथ टैगोर जैसे अनेक कलाकारों ने भारत राष्ट्र को भारत माता के प्रतीक के रूप में दिखाया है। एक चित्र में उन्होंने भारत माता को भोजन और कपड़े देती हुई दिखाया है। एक अन्य चित्र में भारत माता को अन्य ढंग से दिखाया गया है अबनिंद्रनाथ टैगोर के चित्र से बिल्कुल भिन्न है। इस चित्र में भारत माता को शेर और हाथी के बीच खड़ी दिखाया गया और उसके हाथ में त्रिशूल है। भारत माता की ऐसी छवि शायद सभी जातियों को रास न आए ।
(9.) 1920 के असहयोग आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा असहयोग आंदोलन सन् 1920 में प्रारंभ होकर 1922 को समाप्त हुआ।इसके प्रभाव निम्नांकित थे :- (क) इस आंदोलन से जनता में नया उत्साह उत्पन्न हो गया।
(ख) हिंदू-मुस्लिम मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने लगे।
(ग) लोगों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दीं। (घ) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।
(10.) स्वराज दल का गठन क्यों किया गया था ? इसका कार्य क्या था ?
उत्तर-(क) स्वराज्य दल का गठन 1923 ई० में कांग्रेस के स्पेशल अधिवेशन (दिल्ली) में अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुआ था। कांग्रेस ने स्वराज्यवादियों को अनुमति दे दी कि वे चुनाव में भाग ले सकते हैं। उन्होंने केंद्रीय और प्रांतीय धारा सभाओं में बहुत अधिक सीटें पाई।
(ख) इससे अंग्रेजों को परेशानी हुई कि वे अपनी नीतियों और प्रस्तावों को आसानी से पास न करवा पाएँगे।
(ग) स्वराज्यवादियों ने अंग्रेज विरोधी भावना बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(11.) साइमन आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-1927 ई० में साइमन कमीशन का गठन ब्रिटिश सरकार ने इसलिए किया था कि वह पता लगाए कि 1919 के कानून में जो द्वैध शासन लागू किया था उसमें क्या कमियाँ थीं। 1928 ई० को साइमन कमीशन भारत आया, परन्त लोगों ने इसका बहिष्कार जिसके निम्नांकित कारण थे:-
(क) इस कमीशन में सभी अंग्रेज थे, कोई भी भारतीय नहीं था, जबकि इसका संबंध भारतीयों की समस्याओं से था।
(ख) इस कमीशन की कार्य सूची में स्वराज्य का कोई जिक्र नहीं हुआ। अतः कमीशन आने पर लोगों ने काले झंडे दिखाकर अपना विरोध प्रदर्शित किया तथा साइमन वापस जाओ के नारे लगाए। लाहौर में प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय पर भीषण लाठी प्रहार पुलिस ने किया। बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इससे भारत का युवा वर्ग भड़क उठा।
(12.) रोलेट एक्ट पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-रोलेट एक्ट, दूसरा मुख्य कारण था जिसने असहयोग आंदोलन को जन्म दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के काल में भारतीयों के मुक्ति संघर्ष के प्रयासों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को बुरी तरह भयभीत कर दिया था तथा वह यह महसूस करने लगा था कि राष्ट्रवाद की चुनौती का सामना करने के लिए उसे दमनकारी कानूनों के हथियारों से लैस होना चाहिए। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एक कमेटी जिसकी अध्यक्षता रालेट ने की। 10 दिसंबर, 1917 ई० को नियुक्त की गई।
अप्रैल 1918 ई० में समिति ने रिपोर्ट दी जिसे आधार बनाकर सरकार ने दो विधेयक विधान सभा में प्रस्तुत किए तथा मार्च, 1919 ई० में वह कानून बन गया। इन कानूनों के निहितार्थ को शंकरन नायर ने, जो वायसराय की परिषद् के सदस्य थे। इन शब्दों में व्यक्त किया “इसका निष्कर्षतः यह अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी मुक्तावस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है तथा अखबारों की आजादी शासकीय कार्यपालिका की मर्जी पर निर्भर है इन विधेयकों का सभी क्षेत्रों में विरोध किया गया।
(13.) राष्ट्रीय आंदोलन में गदर पार्टी की भूमिका के बारे में लिखें।
उत्तर- भारत में राष्ट्रवाद पाठ -3 गदर पार्टी– गदर पार्टी की स्थापना अमेरिका और कनाडा में रहने वाले कुछ देशभक्त क्रांतिकारी भारतीयों द्वारा 1913 ई० में की गई। इसकी मुख्य नेता रासबिहारी बोस, राजा महेन्द्र प्रताप, लाला हरदयाल, अब्दुल रहमान, मैडम कामा आदि थे। इस पार्टी का भी स्वतंत्रता लाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसने विदेशों में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण कार्य किया।
(14.) गाँधी-इर्विन समझौता कब हुआ था ? इसकी किसी एक शर्त का उल्लेख करें।
उत्तर-मार्च, 1931 ई० को तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन और महात्मा गाँधी में एक समझौता हुआ जो गाँधी इर्विन समझौता के नाम से प्रसिद्ध है।
(क) इस समझौता के अनुसार सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन से संबंधित सभी बन्दी रिहा कर दिए गए।
(ख) महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर दिया और दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में भाग लेना भी स्वीकार कर लिया।
(15.) खिलाफत आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-खिलाफत आन्दोलन:-
(क) प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफवाह फैली हुई थी कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जायेगी।
(ख) खलीफा के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया।
(ग) मोहम्मद अली और शौकत अली बन्धुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कारवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ वार्तालाप की।
(घ) सितम्बर 1920 में महात्मा गांधी सहित दूसरे नेताओं ने यह बात मान ली कि खिलाफत आन्दोलन के समर्थन और स्वराज्य के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू किया जाना चाहिए।
(16.) भीमराव अम्बेडकर कौन थे ? उन्होंने दलित वर्गों के लिए क्या किया?
उत्तर-भीमराव अम्बेडकर दलित वर्ग के एक अन्य महान नेता थे। अपने सारे जीवन काल में (1891-1956 ई०) वे किसी न किसी रूप में अपने लोगों की सेवा करते ही रहे। उन्होंने दलित वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए अनेक संस्थाओं की नींव रखी। वे निरन्तर दलित वर्ग के लोगों को निर्विरोध मंदिरों में जाने तथा सार्वजनिक तालाबों एवं कुओं से पानी भरने के अधिकार प्राप्त कराने के लिए संघर्ष करते रहे।
उनको स्थान-स्थान पर अपमानित होना पड़ा परन्तु उन्होंने अन्याय और शोषण के विरुद्ध अपनी जंग जारी रखी। उन्होंने अपना उदाहरण कायम करके अपने लोगों को यह बता दिया कि कैसे एक दलित वर्ग का व्यक्ति ऊँची से ऊँची शिक्षा पा सकता है और ऊँचे से ऊँचे पद को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने युगों से पिसते चले आ रहे लोगों में स्वाभिमान और आदर की भावनाएँ पैदा की और उन्हें अपने पांव पर खड़ा होना सिखाया | वास्तव में दलित लोगों के वे मसीहा थे।
(17.) असहयोग आंदोलन आरंभ करने के पीछे क्या कारण थे ?
उत्तर-महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक आंदोलन चलाया, जिसे असहयोग आंदोलन कहते हैं। इस आंदोलन के मुख्य कारण निम्नांकित हैं:-
(क) जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए अन्यायपूर्ण कार्यों का विरोध करना
(ख) ब्रिटिश सरकार से स्वराज्य प्राप्ति के लिए आग्रह करना।
(ग) देश में हिंदू-मुस्लिम एकता को दृढ़ करना।
(18.) भारतीय इतिहास में 26 जनवरी, 1930 का क्या महत्व है ?
उत्तर-1929 ई० में लाहौर में पं० जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में काँग्रेस का एक महत्त्वपूर्ण अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया गया और यह भी निश्चित हुआ कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए। इस तरह 26 जनवरी 1930 ई० का दिन सारे भारत में पहले स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया और अनेक स्थानों पर तिरंगा झंडा फहराया गया। हमारे राष्ट्रीय संघर्ष में इस दिन का विशेष महत्व है।
(19.) सविनय अवज्ञा आन्दोलन में विभिन्न वर्गों और समूहों ने क्यों हिस्सा लिया ?
उत्तर-विभिन्न वर्गों और समूहों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में हिस्सा लिया। क्योंकि ‘स्वराज’ के मायने सभी के लिए अलग-अलग थे:-
(क) जयादातर व्यवसायी स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखते थे जहाँ कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियाँ नहीं होगी और व्यापार व उद्योग निबंध ढंग से फल-फूल सकेंगे।
(ख) धनी किसानों के लिए स्वराज का अर्थ था, भारी लगान के खिलाफ लड़ाई।
(ग) महिलाओं के लिए स्वराज का अर्थ था, भारतीय समाज में पुरुषों के साथ बराबरी और स्तरीय जीवन की प्राप्ति ।
(घ) गरीब किसानों के लिए स्वराज का अर्थ था उनके पास स्वयं की जमीन होगी। उन्हें जमीन का किराया नहीं देना होगा और बेगार नहीं करनी पड़ेगी।
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